Heritage Of Indore: इंदौर का गोपाल मंदिर की छत की मजबूती देखने के लिए उस पर चलाया था हाथी
Heritage Of Indore:इतिहास को अपने में समेटे यह केवल एक मंदिर मात्र नहीं बल्कि वास्तुकला का सुंदर और मजबूती का ऐसा बेजोड़ नमूना है।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Sat, 04 Jun 2022 08:05:20 AM (IST)
Updated Date: Sat, 04 Jun 2022 08:05:20 AM (IST)

Heritage Of Indore: इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। शहर का ऐतिहासिक गोपाल मंदिर जहां 190 वर्ष से राधा-कृष्ण की आराधना के स्वर गूंजते आ रहे हैं, जहां दशकों से सत्संग की धारा बह रही है वहां अब संस्कृति के रंग भी सजेंगे। लकड़ी और पत्थर से बना यह मंदिर एक बार फिर अपने भव्य रूप में सजकर तैयार हो गया है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत इस मंदिर को 20 करोड़ रुपये में संरक्षित किया गया। संरक्षण के साथ यहांं नवीनीकरण का कार्य भी हुआ ताकि इसे और भी आकर्षक बनाया जा सके। इतिहास को अपने में समेटे यह केवल एक मंदिर मात्र नहीं बल्कि वास्तुकला का सुंदर और मजबूती का ऐसा बेजोड़ नमूना है जिसका परीक्षा हाथी से भी कराई जा चुकी है।
राजबाड़े के समीप राधा-कृष्ण को समर्पित इस मंदिर का निर्माण यशवंतराव होलकर प्रथम की पत्नी कृष्णाबाई ने सन 1832 में कराया था। उस वक्त इस मंदिर के निर्माण में 80 हजार रुपये खर्च हुए थे। मुख्य मंदिर पत्थर से बना हुआ है। मंदिर परिसर में अन्य कक्ष आदि पत्थर और लकड़ी से बनाए गए हैं। सागवान और कालिया की लकड़ी से बने मंदिर को मराठा और राजपूत शैली में आकार दिया गया है। इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर की मजबूती को परखने के लिए हाथी की मदद ली गई थी। मंदिर के सभामंडप की छत कितनी मजबूत है यह देखने के लिए मिट्टी से मार्ग तैयार कर हाथी को मंडप की छत पर लाया गया था। मंडप की छत पर बहुत देर तक हाथी को चलाया गया। परीक्षण सफल होने के बाद ही मंदिर भक्तों के लिए खोला गया था।
आज भी यहां जारी है नारदीय कीर्तन परंपरा
एक एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में बने इस मंदिर के गर्भगृह में सफेद संगमरमर की राधा-कृष्ण की मूर्ति के अलावा वरुण, भगवान वराह, पद्मावती लक्ष्मी, गणेशजी और गरुड़ की मूर्तियों के अलावा हाथी भी बने हैं। हर वर्ष मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण लीला को झांकी से दिखाया जाता है और महाराष्ट्रीयन श्रावण मास में यहां नारदीय कीर्तन परंपरानुसार कथा भी होती है।
प्राचीन पद्धति से किया संरक्षण कार्य
गर्भगृह और सभामंडप के अलावा मंदिर प्रांगण में विभिन्ना कक्ष और हाल भी बने हैं। मंदिर के संरक्षण का कार्य प्राचीन पद्धति के अनुरूप ही हुआ है। इनकी छत और दीवारों की मरम्मत चूना, ईंट के चूर्ण, गुड़ और मैथीदाने के मिश्रण से की गई है। मंदिर के नवीनीकरण के तहत लकड़ी पर नक्काशी का कार्य राजस्थान, पंजाब और सहारनपुर के कलाकारों ने किया।
फिर होंगी सभाएं, ठहर सकेंगे संत
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के सीईओ ऋषव गुप्ता के अनुसार यहां 500 लोगों की क्षमता वाला एम्फीथिएटर बनाया गया है। सांस्कृतिक आयोजनों के लिए भी सभागृह तैयार किया गया है। इसमें आकर्षक विद्युत सज्जा भी की गई है। मंदिर में आने वाले साधु-संतों के ठहरने के लिए परिसर में कुछ कक्ष भी तैयार किए गए हैं।
सभी फोटो: प्रफुल्ल चौरसिया आशु