नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर (Indore News)। इंदौरियों से यदि कोई कहे कि इस बार रविवार की छुट्टी किसी झरने के आसपास बिताई जाए तो पहला जवाब यही होगा कि चिलचिलाती गर्मी में जब भू-जल स्तर कम हो गया तो झरने कहां से बहेंगे। बात सही है पर झरना ना सही वादियां और जलराशि का आनंद तो लिया ही जा सकता है। ऊंचाई से गिरते झरने की गूंज नहीं, चिड़िया के उड़ान भरने पर पंखों की आवाज तक तो महसूस की ही जा सकती है।
ठंडक बेशक बहुत ना मिले, लेकिन सुकून भरे पल तो जिए ही जा सकते हैं और वर्षा के दिनों में पर्यटकों की भीड़ नहीं एकांत का आनंद तो लिया ही जा सकता है। गर्मी में भी जो स्थान सुबह के वक्त आपको सुकून, आनंद और प्रकृति की नेमत का अनुभव करा दे वह स्थान है चिड़िया भड़क।
इस बार की यात्रा एक ऐसे स्थान की जो खूबसूरत भी है तो खतरों से भी भरा है। जहां राइडिंग का भी आनंद लिया जा सकता है और ट्रैकिंग का भी। जहां सुगमता से भी पहुंचा जा सकता है और रोमांचक सफर का भी मजा लिया जा सकता है। जहां सूरज की तपन भी है और पानी की शीतलता भी। यह स्थान शहर से दूर भी है और पास भी।
ट्रैवलर और टाइगर महू राइडर्स क्लब की वर्णिनी मोहंती के अनुसार चिड़िया भड़क शहर के भागदौड़ से दूर एक शांत, सुरम्य स्थान है। यहां के जंगल और वहां मौजूद तरह-तरह के पक्षी आकर्षण का पहला केंद्र है। जंगलों के बीच यह स्थान चट्टानों से घिरा है। इसकी खास बात यह है कि क्षेत्र में यदि वर्षा हो जाए तो झरना भी बह निकलता है अन्यथा चट्टानों के बीच में घिरा पानी तो मिल ही जाता है।
यह स्थान ट्रैकिंग और बर्ड वाचिंग के लिए आदर्श स्थल है। माना जाता है कि कभी यहां इतनी चिड़िया होती थीं कि इस स्थान का नाम ही ‘चिड़िया भड़क’ रख दिया गया। वैसे अभी भी यहां तरह-तरह के पक्षी देखे जा सकते हैं बस उसके लिए आपको सुबह-सुबह वहां पहुंचना होगा। वैसे सुबह जाने का एक लाभ यह भी है कि इस समय यहां गर्मी ज्यादा नहीं लगेगी और तपन बढ़ने से पहले लौट भी सकेंगे।
शहर से यहां की दूरी 60 किमी है इस हिसाब से यहां पहुंचने में आपको ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। खंडवा रोड पर बड़वाह से करीब तीन किमी पहले ‘काटकूट’ का बोर्ड लगा है। इस बोर्ड के समीप से आदंर की ओर जाते मार्ग पर जब आप करीब 12 किमी आगे जाएंगे तो बरझर गांव आएगा। वैसे बरझर गांव तक का रास्ता जंगल और खेतों के बीच से होकर गुजरता है जो और भी सुहावना लगता है। बरझर गांव के बाद लगभग 2.5 किमी की ट्रैकिंग करनी होती है।
पर्यटन प्रेमी जब यहां जाएं तो प्रकृति संरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी निभाएं। यहां प्लास्टिक आदि की बोतल, पोलीथिन की थैलियां, पैक्ड फूड की थैली आदि यहां फेंककर नहीं आएं। चूंकि यहां मधुमक्खी के छत्ते भी हैं, इसलिए यहां धुआं न करें।
बेहतर होगा आप अपने साथ सीड बाल या फलों के बीज-गुठलियां ले जाएं और जंगल व मार्ग में डाल आएं ताकि वर्षा आने पर बीज अंकुरित हो जाएं और हरियाली बढ़ाने की दिशा में हम सार्थक प्रयास कर सकें।
यहां घांस के मैदान, जल प्रपात, जंगल, चट्टाने सब कुछ नजर आएंगी। जो एक बेहतर हेबिटाट है। इसके अलावा यहां आपको मधुमक्खियों के छत्ते भी देखने को मिल सकते हैं। इसलिए पर्यटक सावधानी बरतें और शोर, धुंआ या तेज गंध से परहेज करें।
यहां कोई खानपान की सुविधा उपलब्ध नहीं है, इसलिए सारी आवश्यक सामग्री अपने साथ लेकर जाएं। बेहतर होगा कि पानी भी साथ लेकर जाएं। जूते व कपड़े ऐसे पहने जो ट्रैकिंग में परेशानी की वजह न बने।