नईदुनिया, इंदौर। मध्यप्रदेश विधानसभा का मानसून सत्र इन दिनों जारी है, जहां राज्य के अलग-अलग हिस्सों के विधायक अपने-अपने क्षेत्र की समस्याएं उठा रहे हैं। लेकिन इस बार मालवा-निमाड़ अंचल की राजनीति से जुड़े कई प्रभावशाली चेहरों की गैरहाजिरी स्पष्ट रूप से महसूस की जा रही है। ये वो नेता हैं, जो न केवल बार-बार विधायक चुने गए बल्कि अपने क्षेत्र की आवाज को सदन में बुलंदी से रखने के लिए जाने जाते थे।
उज्जैन जिले से छह बार विधायक रह चुके पारस जैन इस बार विधानसभा का हिस्सा नहीं हैं। 1990 में पहली बार विधायक बने जैन को उनकी दमदार आवाज और सक्रियता के लिए जाना जाता था। पार्टी में उनकी इतनी प्रतिष्ठा थी कि उन्हें टिकट मांगने की जरूरत नहीं पड़ती थी, पार्टी खुद उनके पास टिकट लेकर जाती थी। लेकिन 2023 के चुनाव में उन्हें टिकट नहीं दिया गया और इसी कारण आज सदन में उनकी ‘पहलवानी’ आवाज गुम है।
सज्जन सिंह वर्मा: कांग्रेस के तेजतर्रार नेता सज्जन सिंह वर्मा अपने कटाक्ष और त्वरित टिप्पणी के लिए पहचाने जाते थे। उन्होंने पांच बार सोनकच्छ विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और क्षेत्र के पर्याय बन चुके थे। 2023 में कांग्रेस ने उन्हें फिर से टिकट दिया, लेकिन वे चुनाव हार गए। इस हार के साथ ही विधानसभा की चर्चित आवाजों में से एक अब गायब है।
दिलीप गुर्जर: नागदा सीट से चार बार विधायक चुने गए दिलीप गुर्जर कांग्रेस के जमीनी नेता माने जाते थे। उन्हें अपने समर्थकों के बीच 'नेताजी' के नाम से जाना जाता है। मगर 2023 के विधानसभा चुनाव में वे भाजपा प्रत्याशी सुधीर गुप्ता से हार गए। उनके हारने से भी विधानसभा में एक असरदार आवाज़ की कमी खल रही है।
विजयलक्ष्मी साधौ: महेश्वर विधानसभा से पांच बार विधायक रही डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ भी इस बार विधानसभा में मौजूद नहीं हैं। उन्हें 'मैडम' कहकर पुकारा जाता था और वे कांग्रेस की एक मुखर महिला नेता थीं। कई बार कैबिनेट मंत्री रही साधौ 1985 से सक्रिय राजनीति में थीं, लेकिन 16वीं विधानसभा से वे बाहर हैं।