इंदौर/भोपाल। पूरे 129 साल से मौसम विभाग हर साल बारिश का पूर्वानुमान लगाए जा रहा है, बिना इस बात की चिंता किए कि भविष्यवाणी कितनी बार सटीक रही? इस साल भी यही हुआ। पहले 22 अप्रैल फिर 2 जून को कमजोर मानसून की भविष्यवाणी की गई। सूखे की आहट भांपने में हमेशा फेल रहे विभाग ने इस बार सूखे की आशंका जता दी। इससे केंद्र सरकार के साथ किसान और बाजार भी 'पसीना-पसीना' हो गए। हालांकि जून में ही जून में ही मानसून अनुमान से 16 प्रतिशत अधिक बरसा गया।
अब गुजरात, पश्चिम बंगाल, ओडीशा, झारखंड और मध्यप्रदेश में हालात पानी-पानी हैं। ऐसे में सब यही पूछ रहे हैं कि आखिर भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) कब सटीक जानकारी देना शुरू करेगा? तो देश के जीडीपी में कृषि का हिस्सा सिर्फ 15 प्रतिशत है, लेकिन सूखा या अतिवृष्टि लगभग 70 करोड़ लोगों और पूरे बाजार को चिंता में डाल देता है। पिछले नवरात्र में बाजार इसीलिए फीका रहा, क्योंकि ओला-बारिश से फसलें चौपट हो गई। किसान खरीदारी करने पहुंचा ही नहीं।
प्रदेश में औसत से ज्यादा बारिश पूरे देश की तरह प्रदेश में भी कमजोर बारिश का अनुमान था, लेकिन प्रदेश में 1 जून से 6 अगस्त तक औसत 593.4 मिमी बारिश हो चुकी है। यह सामान्य से 16 प्रतिशत ज्यादा है। प्रदेश की सामान्य बारिश 413.7 मिमी है। माथे पर दाग है 2009 का सूखा उस साल अप्रैल में सामान्य मानसून फिर जून में सामान्य से कुछ कम बारिश का अनुमान था। दोनों बिल्कुल गलत साबित हुए। देश ने 30 साल का सबसे विकराल सूखा झेला। अनुमान और वास्तविक बारिश में 22 प्रतिशत का अंतर रहा। इस झटके के बाद केंद्र सरकार ने 2010 में मानसून मिशन शुरू किया।
भारतीय व अमेरिकी मॉडल में अंतर
1. मौसम अनुमान के लिए भारत में 13 टूडीडब्ल्यूआर डॉप्लर रडार हैं, जबकि अमेरिका में 158 रडार हैं, वो भी हाई रिजोल्यूशन वाले नेक्स्ट जनरेशन रडार।
2. अमेरिका और यूरोप में डायनामिक मॉडल का उपयोग होता है। इससे छोटे क्षेत्र में बारिश का अनुमान भी लगाया जा सकता है। देश में प्रचलित सांख्यकीय तरीके से ऐसा करना संभव नहीं।
3. आईएमडी के सूत्रों के अनुसार तकनीक के मामले में हम 5-10 साल पीछे हैं। हमारे पास न तो विश्व की सर्वश्रेष्ठ तकनीक है, न ही मौसम विज्ञानी। वर्तमान तकनीक फ्रांस से मिली है। सर्वश्रेष्ठ तकनीक उन्होंने नहीं दी। अमेरिका भी अपनी तकनीक नहीं दे रहा। हमें अपनी भौगोलिक परिस्थितियों के लिए नई तकनीक गढ़ने की जरूरत है। संसद तक उठ चुका है मुद्दा.. 2012 में सरकार ने संसद में माना था कि पिछले 4 सालों में मानसून अनुमान की सटीकता सिर्फ 50 प्रतिशत थी। 2011 में डुएश बैंक ने भी कहा था कि 1994 के बाद से अभी तक मौसम विभाग ने सिर्फ 5 बार बारिश का अनुमान सही लगाया।
तब और अब में फर्क
1886 में मौसम विभाग ने पहला अनुमान लगाया था। तब आधार होता था कि हिमालय में कितनी बर्फ पिघली? अब अत्याधुनिक रडार और जटिल सांख्यिकी मॉडल है। साथ में सुपर कंप्यूटर्स और सैटेलाइट डाटा भी हैं।
सीधी बात - डॉ. अनुपम काश्यपी निदेशक, भोपाल मौसम केंद्र
सवाल- हमारे मौसम संबंधी पूर्वानुमान सटीक क्यों नहीं होते?
जवाब- हमारे देश में विविधता बहुत ज्यादा है। पहाड़ियां, वनस्पति, जंगल, मैदानी इलाके अलग-अलग हैं, इसलिए पूर्वानुमान लगाना बहुत मुश्किल होता है। फिर भी भारतीय उपमहाद्वीप में मौसम का सबसे सटीक अनुमान भारत में ही लगाया जा रहा है।
सवाल- क्या तकनीकी तौर पर हम पीछे हैं?
जवाब- मौसम विज्ञान विभाग लगातार अपग्रेड हो रहा है। कंप्यूटरीकरण के साथ वेदर रडार सिस्टम और अन्य आधुनिक उपकरण लगाए जा रहे हैं।
सवाल- मई में कमजोर मानसून का अनुमान था, पर प्रदेश में अच्छी बारिश हो रही है, क्या पूर्वानुमान गलत निकला?
जवाब- जी नहीं, मौसम विभाग का पूर्वानुमान पूरे देश के लिए था। मप्र में अच्छी बारिश हो रही है तो कई राज्यों में बहुत बुरी हालत है।
सवाल- प्रदेश में आगे बारिश कैसी रहेगी? जवाब- अगस्त के दूसरे पखवाड़े व सितंबर में प्रदेश में अच्छी बारिश के आसार नहीं है।
11 साल में एक बार भी सटीक नहीं निकली मानसून आने की तारीख
केरल के तट पर कब बारिश शुरू हुई, इसे ही हम मोटे तौर पर मानसून आना कहते हैं। पिछले 11 साल में आईएमडी की यह भविष्यवाणी हमेशा गलत निकली।
वर्ष -- अनुमान-- वास्तव में कब आया
2005-- 10 जून-- 7 जून
2006-- 30 मई-- 26 मई
2007-- 24 मई-- 28 मई
2008-- 29 मई-- 31 मई
2009 26 मई 23 मई
2010-- 30 मई-- 31 मई
2011-- 31 मई-- 29 मई
2012-- 1 जून-- 5 जून
2013-- 3 जून-- 1 जून
2014-- 5 जून-- 6 जून
2015-- 30 मई-- 5 जून