इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। पांच हजार साल पहले देश में सरस्वती नदी थी जो बहना बंद हो गई। यह सिंधु नदी से भी बड़ी थी। भारत में इस समय चीन और अमेरिका से भी ज्यादा बोरिंग हो चुके हैं। इससे भूजल स्तर गिर रहा है। आज हम 800 से 1000 फीट तक बोरिंग करवा रहे हैं। नदियों के अस्तित्व को बचाना है तो बोरिंग पर निर्भरता कम करना होगी।
यह बात अर्बन प्लानर विशेषज्ञ एस. विश्वनाथन ने सोमवार शाम प्रीतमलाल दुआ सभागृह में आयोजित पर्यावरण संरक्षण व्याख्यानमाला में कही। पर्यावरण संरक्षण अनुसंधान एवं विकास परिषद् ने तीन दिनी व्याख्यानमाला का आयोजन किया है जिसमें पहले दिन सोमवार को 'स्वच्छ जल एवं उसका संरक्षण कैसे किया जाए' इस पर उन्होंने जानकारी दी। विश्वनाथन ने बताया कि नदी-तालाबों से 80 से 85 प्रतिशत पानी गांवों और शहरों में उपयोग किया जा रहा है। 1950 में नदियों पर 400 बांध थे।
अब इनकी संख्या लगभग 5 हजार हो चुकी है। विकास के लिए यह जरूरी है पर इसके साथ हमें स्वच्छ जल के इन स्रोतों को सहेजना होगा, नहीं तो नदियां सूखने का खतरा बना रहेगा। हम इस समय 250 क्यूसिक से भी अधिक पानी बोरिंग से दोहन कर रहे हैं जो चीन और अमेरिका जैसे देशों से भी अधिक मात्रा में है। 135 लीटर पानी प्रतिव्यक्ति आवश्यकता होती है लेकिन हम इससे कहीं अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं।
बारिश, तालाब और कुओं का महत्व समझना होगा। विश्वनाथन ने कहा कि पिछले 35 सालों में हमने कुओं को खो दिया है। यह जल स्तर जानने का माध्यम है। उन्होंने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से जल संरक्षण के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग व अन्य तरीके भी बताए। कार्यक्रम के दौरान भालू मोंढे, आईडीए अध्यक्ष शंकर लालवानी, प्रीतमलाल दुआ, सीईपीआरडी सचिव संदीप नारूलकर व अन्य लोग उपस्थित रहे।
हलमा परंपरा से कर रहे जागरूक
शिव गंगा विकास जतन संस्था झाबुआ के हरिसिंह सिंघड़ ने बताया कि झाबुआ में जल संवर्धन को लेकर विशेष काम किया है। आदिवासी हलमा परंपरा को मानते हैं जिसमें किसी के खेती करने या घर बनाने में समर्थ नहीं होने पर गांव वाले मदद करते हैं। इसी परंपरा को अपनाकर हम झाबुआ जिले में काम कर रहे हैं, जिसके माध्यम से सात तालाब व तीन स्टॉप डेम बनाए गए।
180 बावड़ियां बन चुकी डस्टबिन
सीईपीआरडी उपाध्यक्ष अनिल भंडारी ने कहा कि स्वच्छ जल सभी के लिए जरूरी है। शहर में पहले 180 बावड़ियां थी जो आज डस्टबिन बन चुकी हैं। 22 तालाबों में से 20 प्रतिशत ही सही हैं, बाकी में गाद जमा हो गई या पट गए। जो नर्मदा जल हम 150 रुपए प्रतिमाह में पीते हैं, उसे घरों तक पहुंचाने में 600 रुपए खर्च आता है। इसका प्रयोग वाहन धोने और सड़क पर छिड़कने में नहीं करना चाहिए।
साफ पानी देना जिम्मेदारी
सीईपीआरडी अध्यक्ष आनंद मोहन माथुर ने कहा- हमने कभी भी वैज्ञानिक सोच के साथ काम नहीं किया। लोकल अथॉरिटी टैक्स वसूल कर रही है। इसके बाद भी कई जगह गंदा पानी आ रहा है। साफ पानी देना अथॉरिटी की जिम्मेदारी है। विकास ऐसा होना चाहिए जिससे लोगों को कुछ मिल सके।