कुलदीप भावसार, नईदुनिया, इंदौर। कहावत है कि न्याय में देरी अन्याय के समान होती है। विश्व अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस के मौके पर हम न्यायालयों में बढ़ते काम के बोझ और लंबित प्रकरणों की संख्या को देखें तो यह बात सही सिद्ध होती नजर भी आती है। अकेले इंदौर के न्यायालयों में ही दो लाख 31 हजार से ज्यादा प्रकरण लंबित हैं। इनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जो पिछले 30 वर्ष से सिर्फ चल रहे हैं।
न्यायाधीशों की संख्या की बात करें तो एक अध्ययन बताता है कि प्रदेश में न्यायाधीशों के लगभग 20 प्रतिशत पद खाली हैं। मतलब यह कि हर पांचवां कोर्ट न्यायाधीश की नियुक्ति का इंतजार कर रहा है। इंदौर के न्यायालयों में 13 हजार से ज्यादा बजावरी प्रकरण चल रहे हैं। इन प्रकरणों में न्यायालय का फैसला तो आ चुका है, लेकिन इस फैसले के क्रियान्वयन के इंतजार में पक्षकार सालों से सिर्फ इंतजार कर रहे हैं।
इंदौर के न्यायालयों में करीब एक लाख 83 हजार से ज्यादा आपराधिक प्रकरण लंबित हैं। इसके अलावा 48 हजार से ज्यादा सिविल प्रकरण भी न्यायालयों में चल रहे हैं। एडवोकेट प्रो. पंकज वाधवानी ने बताया कि न्यायालयों में लंबित प्रकरणों में सबसे ज्यादा मामले प्लीडिंग, वादप्रश्न और आरोप तय करने की स्टेज पर चल रहे हैं। बजावरी प्रकरणों की संख्या फैसलों के क्रियान्वयन की प्रक्रिया में तेजी लाकर नियंत्रित की जा सकती है। इंदौर न्यायालय में लंबित प्रकरणों में लगभग 30 प्रतिशत प्रकरण 5 से 10 वर्ष पुराने हैं।
प्रो. वाधवानी ने बताया कि जिला न्यायालय में लंबित प्रकरणों के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि एक प्रकरण जो लगभग 30 वर्ष पुराना है आज भी विचाराधीन है। इसी तरह सिविल प्रकृति के 22 और आपराधिक प्रकृति के 39 प्रकरण हैं जो 20 से 30 वर्ष तक पुराने हैं।
वर्ष 1946 में महाजन परिवार की संपत्ति को लेकर बंटवारे का विवाद न्यायालय पहुंचा था, जो आज भी लंबित है। इंदौर, उज्जैन की इस संपत्ति का मूल्यांकन वर्ष 1946 में चार करोड़ रुपये किया गया था। संपत्ति को लेकर विवाद अब भी चल रहा है।
वर्ष 1987 में इस संपत्ति को लेकर फैसला आया था, जिसे चुनौती देते हुए एक अपील दायर हुई थी जो वर्तमान में हाई कोर्ट में लंबित है। इसी संपत्ति को लेकर चल रहे एक अन्य प्रकरण में 1997 में फैसला आया था जिसे चुनौती देते हुए मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।