World Doctors Day: हर्षल सिंह राठौर, इंदौर (नईदुनिया)। अपना इंदौर यूं ही मेडिकल हब नहीं कहलाता। शहर को यह सम्मान दिलाने के लिए चिकित्सकों ने सेवा, समर्पण, सतर्कता और सार्थक प्रयासों की नई इबारत लिखी है। चिकित्सक इस धरती के भगवान हैं। यह बात इंदौर के चिकित्सकों ने कई बार साबित भी की। अपनी या अपनों की परवाह किए बिना किसी ने दूसरों की नब्ज थामी, तो किसी ने संवेदना के स्टेथेस्कोप से सेवा का संकल्प पूरा किया। एक वक्त था जब लोग बेहतर उपचार के लिए अन्य शहरों में जाते थे, अब अन्य शहरों से रोगी यहां आते हैं। इसकी वजह केवल आधुनिक उपकरण व उच्च शिक्षित चिकित्सक ही नहीं हैं, बल्कि रोगियों के हित में चिकित्सकों की संवेदना, समर्पित भाव और सजगता भी है। आइए, आज विश्व चिकित्सक दिवस पर इंदौर के समर्पित चिकित्सकों को प्रणाम करें।
जब बात सेवा और संवेदना की आती है, तो शहर के वरिष्ठ कैंसर सर्जन डा. दिग्पाल धारकर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। संवेदनाओं पर काबू रखना और संवेदनशील होकर उपचार करना इन्होंने अपने जीवन का ध्येय बना लिया है। वर्ष 2006 में जिस दिन इनकी माताजी का निधन हुआ, उसी दिन उन्हें एक कैंसर रोगी का आपरेशन भी करना था। वे दिन में मां का अंतिम संस्कार कर शाम को आपरेशन के लिए चले गए। डा. धारकर बताते हैं, वह आपरेशन निश्शुल्क था, किंतु मेरे लिए वह एक मनुष्य के जीवन का प्रश्न था। जहां तक बात समाजसेवा की है, तो वह भी चिकित्सक का कर्तव्य है। यही वजह है कि कैंसर रोगियों की जांच व उपचार के लिए डा. धारकर ने निश्शुल्क शिविर लगाना शुरू किया और प्रदेश ही नहीं बल्कि गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ में 287 निश्शुल्क स्वास्थ्य शिविर लगाए।
बात 16 अक्टूबर 2018 की है। मैं लखनऊ से हैदराबाद होते हुए इंदौर आ रहा था। हमारा विमान आसमान में था और तभी अचानक उद्घोषणा हुई कि विमान में कोई चिकित्सक है क्या? उस वक्त एक मैं ही चिकित्सक था। असल में विमान में सवार 76 वर्षीय महिला को हृदयघात हुआ था। उनकी हृदयगति रुक चुकी थी और विमान में सवार सभी यात्री घबरा गए थे। तब मैंने सीपीआर दिया और महिला के दिल ने दोबारा धड़कना शुरू कर दिया। यह कहना है इंदौर मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष व जनरल फिजीशियन डा. अनिल भदौरिया का। उनकी सतर्कता से न केवल एक महिला की जान बची बल्कि समाज को यह संदेश भी गया कि सीपीआर देने का ज्ञान होना कितना जरूरी है। डा. भदौरिया बताते हैं, उस दिन मुझे ऐसा लगा कि मेरा चिकित्सक होना साकार हो गया। इसके बाद शहर में अन्य स्थानों पर सीपीआर का प्रशिक्षण देना शुरू किया ताकि चिकित्सक के न होने पर भी किसी की जान बचाई जा सके।
एक चिकित्सक के समक्ष कई बार दोहरी चुनौतियां आ जाती हैं, जिनमें से उसे किसी एक को चुनना पड़ता है। ऐसे में चिकित्सक का पहला दायित्व समाज के प्रति समर्पण का होता है और उसे रोगी को ही चुनना पड़ता है। यह कहना है स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. विद्या पंचोलिया का। वे बताती हैं कि उनके जीवन में दो बार ऐसे मौके आए, जब परिवार और मरीज में से किसी एक को चुनना पड़ा और प्राथमिकता मरीज को दी गई। बात तब की है, जब मैं अस्पताल में थी और सूचना मिली की हमारी सास को हृदयघात हुआ है। ठीक उसी वक्त अस्पताल में अन्य रोगी के आकस्मिक आपरेशन की जरूरत भी सामने आ गई। एक तरफ परिवार, दूसरी तरफ मरीज। ऐसे में मुझे पहले अपने मरीज को प्राथमिकता देना पड़ी क्योंकि सास के पास तो मेरे पति भी थे। मन में यह ग्लानि थी कि मुश्किल वक्त में मैं परिवार के पास नहीं, लेकिन संतुष्टि इस बात की थी कि चिकित्सक बनने पर समाज के प्रति समर्पित रहने की शपथ को पूरा कर सकी।
ऐसा नहीं था कि शहर में पहले बेहतर उपचार नहीं होता था और ना ही यहां के चिकित्सकों की दक्षता में कमी थी। बावजूद शहर को और भी बेहतर उपचार पद्धति की जरूरत महसूस हो रही थी। खासतौर पर ब्रेन ट्यूमर के उपचार के लिए। मेरी कोशिश लंबे वक्त से थी कि शहर में न्यूरो नेवीगेशन की शुरुआत हो। यह सपना वर्ष 2014 में पूरा हो सका। यह कहना है न्यूरो सर्जन डा. रजनीश कछारा का, जिन्होंने अपने प्रयास से शहर में ब्रेन ट्यूमर के बेहतर उपचार के लिए न्यूरो नेवीगेशन (इमेज गाइडेड सर्जरी) की सुविधा देना शुरू की। वे बताते हैं, इस तकनीक की मांग लंबे वक्त से शहर में बनी हुई थी। बेहतर उपचार के लिए आधुनिक तकनीक का होना बहुत जरूरी है। शहर में इस तकनीक के आने के बाद से ट्यूमर पूरी तरह से निकालने की संभावना बहुत बढ़ गई। एक चिकित्सक का यह भी कर्तव्य है कि वह बेहतर उपचार के लिए हर सार्थक प्रयास करे। मुझे इसकी संतुष्टि है।