इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। प्रदेशभर में चर्चित रहे जीतू ठाकुर हत्याकांड में सोमवार को सत्र न्यायालय का फैसला आ गया। 15 साल पहले हुए हत्याकांड के छह आरोपितों में से कोर्ट ने मुख्य आरोपित युवराज काशिद सहित तीन को बरी कर दिया। दो आरोपितों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जबकि एक आरोपित की विचारण के दौरान ही मौत हो चुकी है। अभियोजन ने प्रकरण में 93 गवाहों के बयान करवाए थे, इनमें से ज्यादतर कोर्ट में बयान से ही पलट गए। कोर्ट ने बयान से पलटने वाले तीन जेल प्रहरियों के खिलाफ अलग से परिवाद चलाने को भी कहा है।
गौरतलब है कि 23 जनवरी 2007 को महू की उपजेल में हत्या के आरोप में बंद जीतू ठाकुर की पांच लोगों ने जेल में घुसकर गोली मारकर हत्या कर दी थी। आरोपितों ने हत्याकांड को अंजाम देने से पहले जेल में जीतू की रैकी भी करवाई थी। घटना वाले दिन जीतू खिड़की पर मुलाकात ले रहा था उस दौरान पांचों आरोपित भेष बदलकर वहां पहुंचे और दनादन गोली चलाना शुरू कर दिया। गोलीकांड में जीतू की मौत हो गई और एक जेल प्रहरी हरिप्रसाद घायल हो गया। पुलिस ने इस मामले में युवराज काशिद, अशोक सूर्यवंशी, अशोक मराठा, यशवंत उर्फ बबलू, विनोद उर्फ विक्की और विनोद उर्फ विक्की के खिलाफ हत्या और हत्या के प्रयास की धाराओं में केस दर्ज किया।
पिता की मौत का बदला लेने का आरोप था
प्रकरण में मुख्य आरोपित बनाए गए युवराज काशिद के पिता और मिल मजदूर युनियन नेता विष्णु उस्ताद की सन् 2000 में हत्या हो गई थी। जीतू ठाकुर इस मामले में जेल में बंद था। अभियोजन का आरोप था कि विष्णु उस्ताद की हत्या का बदला लेने के लिए ही युवराज ने जीतू को जेल में ही मौत के घाट उतरवा दिया था। हत्याकांड के कई दिन बाद तक युवराज फरार भी रहा। बाद में उसने मिल क्षेत्र की एक बस्ती में सरेंडर किया था। युवराज की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अविनाश सिरपुरकर ने पैरवी की, उन्होंने कोर्ट को बताया कि घटना के दो दिन पहले से युवराज महाराष्ट्र की बीड़ जेल में एक अन्य मामले में बंद था।
घटना के कई दिन बाद तक भी वह जेल में बंद रहा था। ऐसी स्थिति में वह हत्या में शामिल नहीं हो सकता। कोर्ट ने युवराज की तरफ से रखे गए इस तर्क पर विश्वास करते हुए युवराज सहित तीन को बरी कर दिया है। कोर्ट ने अशोक मराठा और विनोद उर्फ विक्की को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। अभियोजन की तरफ से एजीपी गजराजसिंह चंदेल ने पैरवी की।
तीन जेल प्रहरियों के खिलाफ चलेगा परिवाद
प्रकरण में अभियोजन ने 114 गवाहों की सूची प्रस्तुत की थी। इनमें से 93 गवाहों को बयान के लिए बुलाया गया था। घटना के वक्त जेल में तैनात तीन जेल प्रहरी हरिप्रसाद, कैलाश और शैलेंद्रसिंह चंदेल कोर्ट में बयान से पलट गए। उन्होंने कहा कि उन्होंने जेल में गोली चलते हुए तो देखी थी लेकिन वे यह नहीं बता सकते कि आरोपितों ने गोली चलाई थी या नहीं। अभियोजन ने तीनों जेल प्रहरियों के खिलाफ धारा 340 के तहत आवेदन देकर परिवाद चलाने की अनुमति चाही थी। कोर्ट ने सोमवार को अभियोजन से कहा कि वह धारा 193, 186 के तहत परिवाद दायर करे।
इन आधारों पर दो को सजा और तीन को किया बरी
- घटनाक्रम में घायल लोगों ने कोर्ट में आरोपितों के संबंध में कुछ भी नहीं कहा। उन्होंने कहा कि हमने गोली चलते हुए तो देखी लेकिन यह नहीं पता कि गोली किसने चलाई थी।
-जेल प्रहरियों के सामने घटनाक्रम हुआ था लेकिन उन्होंने कोर्ट में किसी भी आरोपित की पहचान नहीं की।
-जीतू ठाकुर के शरीर से मिली गोली सिर्फ उस पिस्टल से चलाई जा सकती थी जो आरोपित विनोद के पास मिली थी। बाकी आरोपितों से मिली पिस्टल से यह गोली चलाई ही नहीं जा सकती थी। इसी आधार पर कोर्ट ने विनोद को हत्या का दोषी पाया। जेल प्रहरी हरिप्रसाद जिस गोली से घायल हुआ था वह सिर्फ आरोपित अशोक के पास से मिली पिस्टल से चलाई जा सकती थी। इसी आधार पर कोर्ट ने अशोक को हत्या के प्रयास के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
-किसी भी गवाह ने युवराज काशिद पर सीधे-सीधे हत्याकांड में शामिल होने का आरोप नहीं लगाया। कोर्ट ने माना कि युवराज हत्याकांड के दो दिन पहले से महाराष्ट्र की बीड़ जेल में बंद था और हत्याकांड के बाद भी कई दिनों तक जेल में बंद रहा।
आंकड़ों में
23 जून 2007 - को महू जेल में हुआ था हत्याकांड
5 - लोगों ने जेल में घुसकर मारी थी गोली
6 - आरोपितों के खिलाफ दर्ज हुआ था
1 - आरोपित की विचारण के दौरान हो गई मौत
3 - आरोपितों को कोर्ट ने किया बरी
2 - आरोपितों को बरी कर दिया
114 - गवाहों की सूची प्रस्तुत की थी अभियोजन ने
93 - गवाहों के बयान करवाए गए कोर्ट में
77 - गवाह हो गए थे पक्षद्रोही
03 - जेलप्रहरियों के खिलाफ चलेगा परिवाद