इटारसी नवदुनिया प्रतिनिधि।आदिवासी विकासखंड केसला के गरीब पिछड़े आदिवासियों को आज भी कोरोना के इलाज से ज्यादा झाड़फूंक तंत्र-मंत्र और अंधविश्वास पर यकीन है। महामारी ने जब गांवों तक दस्तक दी तो इलाज की बजाए ग्रामीण पड़ियारों की शरण में पहुंच गए, कोई इसे दैवीय प्रकोप बता रहा है, तो किसी को डर है कि कोरोना जांच नहीं कराना है। प्रशासन की टीम अब प्रभावित गांवों में पूरी मेहनत पर संक्रमण की चेन तोड़ने का प्रयास कर रही है।
करीब एक माह बाद शहरी क्षेत्र में कोरोना संक्रमण घटते ही ग्रामीण अंचलों में कोरोना ने पैर पसार रहे हैं। आदिवासी विकासखंड केसला में इन दिनों इस महामारी का संक्रमण भयानक तरीके से फैल रहा है। हर गांव और घर में सर्दी, खांसी एवं बुखार से पीड़ित मरीजों की संख्या ज्यादा है। अशिक्षा और जागरूकता की कमी के चलते ऐसे मरीजों की जांच और इलाज में प्रशासन को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कोरोना से बचाव के लिए भी आदिवासियों को दवाओं से ज्यादा झाड़फूंक और पड़ियारों पर भरोसा हैं, कई ग्रामीण गले में माला पहनकर घूमते नजर आए, जिन्हें देख अतिरिक्त तहसीलदार निधि पटेल ने उनकी कोरोना जांच करा दी।
गांव में घूम रहे संक्रमित मरीजः
कोरोना पॉजिटिव होने के बावजूद कुछ मरीज पूरे गांव में घूम रहे हैं, तो कुछ कोविड टेस्ट कराने को राजी नहीं हैं, कुछ मनमानी करते हुए झोलाछाप डॉक्टर्स का इलाज ले रहे हैं, तो कई आदिवासी कोविड सेंटर में भर्ती होने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे कई मरीजों को प्रशासन ने जबरिया ढंग से किसी तरह समझाकर पवारखेड़ा में भर्ती कराया है। सूत्रों के अनुसार कई गांवों में आज भी कुछ मरीज सर्दी-बुखार होने पर झाड़फूंक, ताबीज और झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज ले रहे हैं।
जहां दस से ज्यादा मरीज वहां नोडल बनेः
एसडीएम मदन सिंह रघुवंशी ने महामारी फैलने के बाद तय किया है कि जिस भी गांव में कोरोना के दस से ज्यादा एक्टिव केस हैं, उन्हें कोरोना हॉट स्पाट बनाकर वहां नोडल अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई है। ग्राम पथरोटा के लिए अतिरिक्त तहसीलदार निधि पटेल, केसला के लिए सीईओ जनपद वंदना कैथल, सुखतवा के लिए बीएमओ डॉ. सपन गोयल,कालाआखर के लिए उद्यानिकी विभाग से केके रघुवंशी, भरगदा-रैसलपाठा के लिए विकासखंड शिक्षा अधिकारी आशा मौर्य एवं पांडरी नागपुर के लिए बीआरसी धर्मेन्द्र परमार को नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है।
कई डॉक्टर हुए लापताः
गांवों में संक्रमण बढ़ने के बाद जब मौत के आंकड़े बढ़े तो घबराकर कई बंगाली डॉक्टर, कंपाउडर और ग्रामीण क्षेत्र में क्लीनिक चलाने वाले भाग गए। प्रशासन ने तय किया है कि ऐसे लोगों पर कार्रवाई होगी, इसकी भनक लगने के कारण भी कई बंगाली चिकित्सक लापता हो गए हैं। बिना डिग्री सामान्य बीमारियों का इलाज करने वाले इन कथित चिकित्सकों के पास कोरोना संक्रमण के मामले में कोई अनुभव नहीं है, लक्षणों के आधार पर ये मनमाने ढंग से दवा और इंजेक्शन लगाकर प्रेक्टिस करते हैं। कोरोना प्रोटोकाल और जांच में काम आने वाले उपकरण भी इन लोगों के पास नहीं है, इस वजह से ये लोग मरीजों की जान से खिलवाड़ करते हैं।
नोडल अधिकारी आशा मौर्य बताती हैं कि भरगदा और रैसलपाठा दोनों गांव में 12-13 संक्रमित मरीज हैं, जब टीम आदिवासियों के घर पहुंची तो पता चला कि तीन चार परिवार में कई लोग बीमार हैं, इसके बावजूद वे घर से बाहर घूम रहे हैं। इलाज के लिए भी राजी नहीं हैं। गांव की आंगनबाड़ी और एनएएम ने समझाइश देकर उन्हें इलाज के लिए पवारखेड़ा में भर्ती कराया, कुछ परिवारों को होम आइसोलेट कर दवाएं बांटी गईं। हर मरीज का ऑक्सीजन स्तर जांचा जा रहा है।
40 पर आ गया ऑक्सीजन भर्ती नहीं हुएः
सुखतवा गांव में लापरवाही के चलते 35 वर्षीय युवक की सोमवार को मौत हो गई। घर में युवक की मां भी बीमार थी, लेकिन दोनों ने गंभीरता से जांच नहीं कराई और अस्पताल भर्ती नहीं हुए। सोमवार को युवक को उल्टी दस्त बढ़ गए, तब आंगनबाड़ी कार्यकर्ता जबरदस्ती उसे अस्पताल ले गई, यहां ऑक्सीजन स्तर 40 पर आ जाने से युवक की जान नहीं बचाई जा सकी। इस तरह की लापरवाही ग्रामीण कर रहे हैं।
गले में लटकी थी मालाः
अतिरिक्त तहसीलदार निधि पटेल बताती हैं कि हालात बेकाबू होने के बाद अब गांव-गांव सैंपलिंग कराई गई है, इससे मरीज घट रहे हैं। मसलन पिछले दिनों पथरोटा पंचायत में 26 एक्टिव केस थे, जांच और इलाज के दौरान कई मरीजों की मौत भी हुई, अब हालत सुधरी है। वर्तमान में सिर्फ 7 मरीज हैं, जिनका आइसोलेशन पीरियड भी आज खत्म हो जाएगा।
रैसलपाठा में कई मरीजों का ऑक्सीजन स्तर 94 से कम था। हालत बिगड़ने से पहले प्रशासन ने गजपुर के 7, रैसलपाठा, सुखतवा के कई मरीजों को पवारखेड़ा कोविड सेंटर में एबुलेंस से पहुंचाया। रैसलपाठा पहुंची टीम ने देखा कि कई ग्रामीण गले में एक माला पहने घूम रहे हैं। एएनएम ने बताया कि ये लोग किसी पड़ियार के यहां झड़वाने गए थे, ऐसे सारे लोगों के सैंपल पटेल ने करा दिए। चूंकि इन्हें सर्दी, खांसी या अन्य लक्षण होने की आशंका थी।
हर साल होती हैं हत्याएं:
आदिवासी बाहुल्य विकासखंड में अंधविश्वास और जादू-टोने का इतना प्रभाव है कि हर साल इस क्षेत्र में करीब आधा दर्जन से ज्यादा हत्याएं और झगड़े जादू-टोने के शक में ही होते हैं। जादू-टोने को लेकर गांवों में लोग एक दूसरे पर संदेह करते हैं, कई बार यहां इसी बात पर गंभीर वारदातें हो चुकी हैं।
समझाइश दी हैः
आज भी ग्रामीण झाड़फूंक पर भरोसा कर रहे हैं। गांव में कई लोग माला और ताबीज पहनकर घूम रहे हैं, इस बीमारी को दैवीय आपदा मान रहे हैं। हम सभी ग्रामीणों को लगातार समझा रहे हैं, जो भी संदिग्ध या संक्रमित मरीज हैं, उनके ऑक्सीजन स्तर के हिसाब से भर्ती कराया जा रहा है। हालत धीरे-धीरे सुधर रहे हैं। पुराने मरीजों की रिकवरी भी हो रही है।
निधि पटेल, अतिरिक्त तहसीलदार केसला।