इटारसी नवदुनिया प्रतिनिधि। ग्राम केसला खुर्द में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा का विश्राम हुआ। समापन कथा सुनाते हुए कथाकार पं. भगवती प्रसाद तिवारी ने कहा कि यह शरीर हम सभी का हर पल मर रहा है, क्यों न उसकी पहचान करें ,जो कभी नहीं मरता है। उसे ही आत्मानुभूति, आत्मानंद , आत्मस्वरुप, आत्मशांति के नाम से जाना जाता है।
परमात्मा के बनाए संपूर्ण जगत में प्रत्येक जीवात्मा सुख शांति आनंद को प्राप्त करना चाहता है। समापन अवसर पर भंडारा एवं प्रसाद वितरण भी हुआ। श्रीमद्भागवत कथा में स्यमंतक मणि, जरासंध वध, युधिष्ठिर राजा द्वारा राजसूय यज्ञ, शिशुपाल वध, सुदामा चरित्र, परीक्षित मोक्ष कथा प्रसंग सुनाई गई। सतगुरु श्री शुकदेव जी महाराज ने राजा परीक्षित जी को कहा संसार में कोई भी ऐसा सुख नहीं है ,जिसे भोगने के बाद दुखों का अंत हो जाए। सर्व प्रथम मनुष्य मात्र को यह जानना जरूरी है कि जीवन में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण काम क्या है। वेद, शास्त्र, उपनिषदों में ईश्वर प्राप्ति को सर्वोपरि बताया गया है ।कथा-सत्संग में भगवान के महत्व को समझाया जाता है। किसी का भी महत्व जानने के बाद फिर तो कठिन परिस्थितियों में भी कोशिश कर हम सब उन चीजों को हासिल कर ही लेते हैं। हो सकता है संसार में कोशिश करने पर भी मनुष्य को कोई चीज, वस्तु,पद,पैसा, परिवार चाहने पर भी नहीं मिले, लेकिन जिन्हें सच्चा संत सतगुरू मिल जाए ओर वह ईश्वर को महत्वपूर्ण मानकर सच्ची भक्ति साधना करें तो ईश्वर की प्राप्ति होती है। भगवान की जरूरत तो सभी को पड़ेगी, हमें भगवान का ज्ञान देने वाले सच्चे संत गुरुदेव की आवश्यकता है। भगवान का ज्ञान हमें पूरा चाहिए,अधूरा ज्ञान नहीं हो। मुक्ति तन के मरने पर नहीं मन के मरने पर मुक्ति प्राप्त होती है, किसी की सलाह से रास्ता तो मिल जाता है, लेकिन चलना तो स्वयं को पड़ेगा तब मंजिल मिलेगी। इस संसार में हमारे आत्मकल्याण के लिए बहुत ही कम सीमित समय है, इसलिए समय का आदर सम्मान करें, समय पूज्यनीय है। भगवान सभी को अपने जीवन को सफल बनाने का अवसर देते हैं। समझदार लाभ लेता है और मूर्ख मनुष्य देखता रहता है।