
Jabalpur News : तरुण मिश्र, नईदुनिया, जबलपुर। मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले की ग्राम पंचायत बघराजी में करीब 50 वर्ष पुरानी जल संरचना को पुनर्जीवित किया गया है। गांव की नालियों के मिलने से अनुपयोगी हो चुके जलस्रोत को अमृत सरोवर योजना के अंतर्गत जिला पंचायत ने ऐसी जलसंरचना में परिवर्तित कर दिया है, जो प्रदूषणमुक्त होकर ग्रामीणों तथा पशुओं के लिए उपयोगी होगा। इसमें बगैर किसी खर्च के जनभागीदारी से पुनर्जीवित हुए तालाब को लैगून (कुंड) पद्धति से तैयार किया गया है।

तालाब के पुनर्जीवन के कार्य में महज महीनेभर का समय लगा। सबसे पहले इसके प्रदूषित पानी को निष्कासित किया गया। इसके बाद नीचे जमी गाद को आस-पास के किसान ले गए, जिससे तालाब की सतह साफ और गहरी हो गई। गांव के उत्सर्जित पानी को स्वच्छ करने के लिए डिवाट्स तकनीक बनाई गई है, जो तीन चरणों में पानी को बिना किसी रसायन के स्वच्छ कर तालाब के पहले लैगून तक पहुंचाएगी।

तीनों लैगून का पानी मुख्य तालाब से नहीं मिलेगा, जिससे मुख्य जलस्रोत पूर्णता स्वच्छ रहेगा एवं मछली पालन, सिंघाड़ा उत्पादन आदि के लिए उपयुक्त रहेगा। हरियाली बढ़ाने के लिए तालाब के आस-पास पौधारोपण करने तथा पार्क बनाने की भी योजना है। तालाब के पुनर्जीवन के लिए लोहा, सीमेंट आदि का प्रयोग नहीं किया गया। यहां तक कि तालाब की स्टोन पिचिंग भी नहीं की गई।

गोंडवाना काल की वीरांगना रानी दुर्गावती ने जल संरक्षण के लिए काफी कार्य किए थे। जबलपुर के आस-पास तालाब इस बात के उदाहरण हैं। आदिवासी बाहुल्य कुंडम क्षेत्र के बघराजी का इतिहास भी गौरवपूर्ण है। यह 70 से अधिक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का गांव है। अत: यहां के तालाब को सर्वप्रथम पुनर्जीवत करने का कार्य किया गया है। इस तालाब के पुनर्जीवन के लिए लेक मैन आफ इंडिया आनंद मल्लिगावड की तकनीक अपनाई गई है। साथ ही स्थानीय स्तर पर कुछ प्रायोगिक परिवर्तन किए गए। बारिश में बघराजी तालाब अलग स्वरूप में दिखाई देगा।
जयति सिंह, सीईओ, जिला पंचायत जबलपुर
तालाब में तीन लैगून बनाए गए हैं, जिनका अलग-अलग उपयोग होगा। इन तीनों का पानी आपस में नहीं मिलेगा। पहले लैगून में बारिश और नालियों का साफ किया गया पानी भरेगा, जिसका उपयोग पशुओं के लिए होगा। बारिश का पानी दूसरे व तीसरे कुंड में भरा जाएगा। दूसरे कुंड का उपयोग ग्रामीण कपड़े धोने, नहाने आदि के लिए करेंगे और तीसरे कुंड का उपयोग मूर्ति विसर्जन के लिए किया जाएगा।
तालाब के निकट बन रहे डीवाट्स स्ट्रक्चर से तीन चरणों में तालाब में मिलने वाली नालियों का पानी साफ होकर तालाब में मिलेगा। बगैर किसी रसायन के उपयोग कर पानी को स्वच्छ करने विकेंद्रीकरण उपचार प्रक्रिया अपनाई जाएगी। प्रायमरी, सेकंडरी और टर्सरी टैंक पानी को स्वच्छ करेंगे। प्रायमरी टैंक (एनएरोबिक चैंबर) में ठोस अपशिष्ट नीचे बैठ जाएगा और पानी सेकंडरी टैंक में चला जाएगा यह दोनों चैंबर ऊपर से बंद रहेंगे, जहां बगैर आक्सीजन और सूर्य प्रकाश के पानी साफ होगा।
इसके बाद यह पानी टर्सरी टैंक में जाएगा, जहां रेत, मिट्टी, पत्थर से गुजरकर पानी स्वच्छ होगा। इस टैंक के बाहर हाइड्रोफिलिक पौधे से होकर यह पानी तालाब तक पहुंचेगा। केना इंडिका जैसे हाइड्रोफिलिक पौधों की जड़ें लंबी होती हैं, कम मिट्टी और ज्यादा पानी में पनपने वाले इन पौधों को प्रमुख भोजन पानी के अपशिष्ट होते हैं। पहले लैगून में जाएगा।