Rewa Teere Chalte Chalte Column Jabalpur : सुरेंद्र दुबे, नई दुनिया जबलपुर। संस्कारधानी के सनातनी आस्था वाले घरों में परंपरागत रूप से कन्या-पूजन हुआ। आसपास की कन्याओं को सादर आमंत्रित किया गया। वे शारदेय नवरात्र की अष्टमी को अत्यधिक व्यस्त थीं। एक से दूसरे, फिर तीसरे और चौथे-पांचवें आदि घरों की तरफ बढ़ती रहीं। इस फेर में खीर-पुड़ी सहित अन्य जायकेदार पकवानों से प्रारंभिक चरण में ही उनका पेट भर गया। इसके बावजूद देवीभक्त परिवार पैर धुलाकर, हल्दी-कुमकुम लगाकर, टीक-पूजकर कन्याओं के सामने थालियां सजाते रहे। पहले ही पेटपूजा कर चुकी कन्याओं ने प्रसाद की भांति जरा-जरा सा चखा फिर भेंट-उपहार लेकर और आर्शीवाद देकर आगे बढ़ती चली गईं। कई परिवारों ने कन्या-पूजन की प्रक्रिया में नवाचार करते हुए कन्याओं के लिए आइसक्रीम और शीतल पेय के अलावा चाकलेट आदि का इंतजाम किया था। सबसे मजेदार बात तो यह कि कई कन्याओं के साथ उनके नन्हे-मुन्ने भैया भी कन्या-भोजन में शामिल होने चल दिए। खिलौने मिलने पर उनकी खुशी देखते ही बनी।
निराकार माटी से साकार दुर्गा प्रतिमाओं का नयनाभिराम आकार नवरात्र में श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना रहा। जयकारा मातारानी का-बोल सांचे दरबार की जय, सहित अन्य उद्घोष जमकर गूंजे। जब विदाई की बेला आई तो भक्तों की आंखें नम हो गईं। किंतु साकार के विसर्जन से निराकार में प्रवेश करने के रहस्य को अंगीकार कर वे विसर्जन जुलूस निकालने में जुट गए। ढ़ोल-नगाड़ों की धुनों के साथ भक्त सड़कों पर उतर आए। पूरे रास्ते उल्लास देखते ही बना। भक्ति-भाव से आपूरित दुर्गा समितियों के सदस्य उन विसर्जन स्थल तक पहुंचे, जिनका प्रशासन की ओर से पूर्व निर्धारण किया गया था। भटौली और तिलवाराघाट में बेहतर इंतजाम किए गए थे। संस्कारधानी की कुछ दुर्गा प्रतिमाएं मुख्य दशहरा चल समारोह में तो कुछ उपनगरीय क्षेत्रों के दशहरा चल समारोहों का हिस्सा बनकर विसर्जन की प्रक्रिया को पूरा करती हैं, जबकि शेष बहुत सारी पृथक-पृथक विसर्जन जुलूस निकालते हैैं, जिससे शक्ति की पूजा का महापर्व विराट रूप ले लेता है।
अब सनातनी परिवारों को शरदपूर्णिमा के पूर्णचंद्र की शिद्दत से प्रतीक्षा शिद्दत है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस रोज पेड़ों का भोग लगाकर पालनहार भगवान विष्णु को प्रसन्न किया जाता है। शहर के मिष्ठान प्रतिष्ठानों में एडवांस बुकिंग का नियम चलता है। यही वजह है कि कूपन हासिल कर अपने हिस्से का पेड़ा पहले ही सुरक्षित कर लिया जाता है। खोवे के पेड़ों का आकार पूर्णचंद्र सदृश सुहाना व स्वाद चांदनी की भांति मीठा होता है। संस्कारधानी के लिए शरदपूर्णिमा का महत्व देश-दुनिया में चर्चित नर्मदा महोत्सव के कारण द्विगुणित हो जाता है। यहां संगमरमरी वादियों से घिरे भेड़ाघाट के मुक्ताकाशी मंच पर गीत-संगीत व नृत्य की महफिल सजती है। इस दौरान पंचवटीघाट से बंदरकूदनी की ओर निहारने वाले प्रकृति-प्रेमियों की भरमार हो जाती है। आकाश में शरदपूर्णिमा का अनुपम चांद खिलते ही उसकी छवि नर्मदा के जल में एक और पूर्णचंद्र की प्रतीति कराने लगती है और चारू चंद्र की चंचल किरणें जल-थल-नभ में अठखेली करने लगती हैं।
इस बार दीपावली की आतिशबाजी से पूर्व लोकतंत्र के सबसे बड़े महोत्सव चुनाव की गूंज चहुंओर सुनाई पड़ रही है। सभी राजनीतिक दलों के प्रत्याशी पूर्ण मनायोग से अपनी विजय सुनिश्चित करने मतदाताअों को रिझाने में व्यस्त हैं। वादों और दावों के मामले में कोई कोर-कसर शेष नहीं रख रहे हैं। प्रत्याशियों के समर्थक व कार्यकर्ता अपने पक्ष जीत की मन्नत मांगने नर्मदा तट से लेकर हरेक धर्मस्थल पर हाजिरी दे रहे हैं। वयोवृद्ध मतदाताओं के प्रति आदर-सम्मान देखते ही बन रहा है। प्रत्याशियों द्वारा जिन संबोधनों से मतदाताओं का अभिवादन किया जा रहा है, वे अपनेपन की पराकाष्ठा को परिलक्षित करते हैं। विनम्रता की प्रतिमूर्ति बने प्रत्याशी व उनके समर्थक घर-घर दस्तक देने में जुटे हैं। मर्यादित मतदाता भी उनकी आवभगत अपने-अपने तरीके से कर रहे हैं। वे सकारात्मक व्यवहार करके यह आभास ही नहीं होने देते कि उनका अनमोल मत अंतत: किसके पाले में जाने वाला है। यही तो लोकतंत्र में मिली मतदान के अधिकार की खूबसूरती है।