जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने बंधपत्र के नियम के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में नौकरी न देने के बावजूद शैक्षणिक दस्तावेज वापस न किए जाने के मामले में जवाब-तलब कर लिया है।
मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ व न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव, डीएमई व आयुक्त स्वास्थ्य सेवाएं को नोटिस जारी किए हैं। अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद निर्धारित की गई है।
याचिकाकर्ता उत्तर प्रदेश निवासी डा. दीपाली बैरवा की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने पक्ष रखा।
उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता 2017 में मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर से डिप्लोमा इन एनेस्थीसिया विषय से दो वर्ष का पीजी मेडिकल कोर्स किया था। परीक्षा परिणाम तीन मार्च, 2017 को आया था। नियमानुसार रिजल्ट आने के तीन माह के भीतर सरकार को ग्रामीण क्षेत्र में मेडिकल आफिसर के रूप में नौकरी देनी थी, जो नहीं दी गई। अब पांच साल बाद भी बॉण्ड का हवाला देकर आठ लाख रुपये जमा करने की शर्त पर ही शैक्षणिक दस्तावेज वापस करने की बात की जा रही है।
यह है निर्धारित नियम :
अधिवक्ता संघी ने बताया कि एमपी मेडिकल एण्ड पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स एडमिशन रूल्स के नियम 11 में यह स्पष्ट प्रविधान है कि पीजी डिग्री या डिप्लोमा करने वाले अभ्यर्थी को एक वर्ष की ग्रामीण सेवा करने का बंधपत्र भरना होगा। यदि ऐसा नहीं होता है तो आठ लाख रुपये जमा करने होंगे। नियम में यह भी स्पष्ट है कि परीक्षा परिणाम आने के तीन माह के भीतर आयुक्त स्वास्थ्य सेवाएं नियुक्ति पत्र देंगे और यदि ऐसा नहीं होता है तो बांड स्वमेव निरस्त माना जाएगा।