ब्रजेश शुक्ला. जबलपुर। जैसे सिद्ध तांत्रिक मठ देश में केवल तीन हैं, जिनमें एक बाजनामठ तथा दूसरा काशी और तीसरा महोबा में हैं। तांत्रिकों के मतानुसार जबलपुर का बाजनामठ ऐसा तांत्रिक मंदिर है, जिसकी हर ईंट शुभ नक्षत्र में मंत्रों द्वारा सिद्ध करके जमाई गई है। बाजनामठ का निर्माण 1520 ईस्वी में राजा संग्राम शाह द्वारा बटुक भैरव मंदिर के नाम से कराया गया था। उस समय राज्य के ज्यादातर लोग यहां पूजन करने पहुंचते थे।
प्राकृतिक तरंगों से जागृत होती है शक्ति :
कहते हैं कि इस मठ के गुंबद के त्रिशूल से निकलने वाली प्राकृतिक ध्वनि-तरंगों से शक्ति जागृत होती है। जिसका अहसास यहां पहुंचने वालों को होता है। इसका वास्तु शिल्प अद्भुत है। मंदिर से जुड़े भक्त बताते हैं कि यहां तेल व पुष्प चढ़ाने से शनि व राहु की पीड़ा से राहत मिलती है। यहां भैरव बाबा को लोग झंडे भी चढ़ाते हैं।
मनोकामना होती है पूरी :
पूजन पद्धति से जुड़े लोग बताते हैं कि मंदिर में कोई भी सात दिन एक ही समय में पूजन करने से मनोकामना पूरी होती है। यहां मनोकामनाएं पूरी होने पर भक्त भैरव को भोग लगाकर भंडारा का प्रसाद वितरित कर करता है।
गर्भगृह में रहता है अंधेरा:
मंदिर की विशेषता यह है कि यह प्राचीन पद्धति पर बना है। इसमें एक ही दरवाजा है और कहीं भी छेद नहीं हैं। ऐसे में अंदर आवाज गूंजती है। अगरबत्ती के धुएं के कारण गर्भगृह में अंधेरा रहता है। बिजली व्यवस्था से यहां उजाला कर बिजली के पंखे से धुआं बाहर किया जाता है।
शिव के 11 अवतारों में शामिल:
शिव के 11 अवतार हैं। इन्हीं में से एक है बटुक भैरव, अन्य रूपों की तरह ही महादेव का ये स्वरूप भक्तों की पुकार सुनने में तनिक भी देरी नहीं करता। जबलपुर स्थित बाजनामठ में बटुक भैरव के दर्शन होते हैं। यह देश का दुर्लभ तांत्रिक मंदिर है।
शनि-राहू से मिलती है राहत:
भैरव मंदिर के भक्त मंडल से जुड़े सदस्य बताते हैं कि बाजनामठ में पूजा-अर्चना से लोगों को चमत्कारिक लाभ हुए हैं। यहां तेल व पुष्प चढ़ाने से शनि व राहु की पीड़ा से राहत मिलती है। इसी उम्मीद से हजारों की संख्या में भक्त आते हैं और उनकी मुराद पूरी भी होती है। प्राचीन मंदिर में आज भी जबलपुर सहित आसपास के जिलों से बड़ी संख्या में लोग शनिवार को तेल चढ़ोने के लिए आते हैं। इनमें महिलाएं भी शामिल हैं।
राजा को मिला था अजेय रहने का आशीर्वाद:
राजा संग्राम शाह भैरव के अनन्य उपासक थे। उन्हें भक्ति स्वरूप अजेय रहने का आशीर्वाद मिला था। यही कारण था कि राजा संग्राम शाह कभी भी कोई युद्ध नहीं हारे थे। इसीलिए उनके राज्य में यह मंदिर अतिप्रचलित था और यहां दूर-दूर से से लोग पूजन करने के लिए पहुंचते थे।
भैरव की क्रीड़ा स्थली:
बाजनामठ को भैरव की क्रीड़ा स्थली भी कहा जाता है। यहीं कारण है कि गोलकी विवि में तंत्र विद्या प्राप्त करने वाले इस मंदिर में पहुंचते थे। यहां भैरव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तांत्रिक कई दिनों तक धूनी रमाए रहते थे। यह एक अनुसंधान केंद्र था।
कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को हुई थी उत्पत्ति:
कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी। ऐसा उल्लेख शिव महापुराण में है। इस तिथि को भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहां तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा। तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई।
मंदिर के पास है आम ए खास:
गोंड राजाओंका इस मंदिर से विशेष जुड़ाव था। मंदिर के दाएं तरफ तालाब है। इसके बीचोंबीच आम ए खास बना था। जहां राजा अपने मंत्रियों और सलाहकारों के साथ गुप्त मंत्रणा करता था। समय के साथ-साथ आम ए खास दुर्दशा का शिकार हो गया।
पूजन से मिलती है सफलता:
ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ दुबे बताते हैं कि दुनिया में कितना भी बड़ा तांत्रिक हो वह इस मंदिर में एक बार यहां आहुति देने जरूर आता है तभी उसे सिद्धि प्राप्त होती है। यह मंदिर कई प्रकार की समस्याओं से दूर करता है। भूमि, भवन, कोर्ट, कचहरी आदि विवाद में विजय पाने के लिए यहां लोग विशेष रूप से पूजन करने पहुंचते हैं। जो कामना के साथ यहां पहुंचते हैं उन्हें सफलता भी मिलती है।
मंदिर का संरक्षण जरूरी :
प्रसिद्ध इतिहासकार डा. आनंद सिंह राणा बताते हैं कि इसका संरक्षण होना चाहिए। पूजन पाठ मंदिर में हो सकता है लेकिन पुर्निर्माण नहीं हो सकता। इसके लिए मंदिर का होना जरूरी है। यद्यपि इस तांत्रिक पीठ का इतिहास अति प्राचीन है, तथापि मंदिर निर्माण के स्थापना का श्रेय गोंडवाना के महान शासक राजा संग्राम शाह को जाता है। वास्तु शिल्प का संयोजन आध्यात्मिक एवं विज्ञानिक दृष्टि से किया गया है। ऐसा मंदिर अन्यत्र नहीं है इसलिए इसे विश्व धरोहर घोषित किया जाना चाहिए। राजा संग्राम शाह ने भैरव की उपासना की और किसी भी शासक से पराजित नहीं हुआ। जबलपुर के लिए यह गौरव की बात है कि इतने सिद्ध तांत्रिक मठ में हमें पूजन करने का सौभाग्य मिल रहा है।