पंकज तिवारी, जबलपुर। भेड़ाघाट व लम्हेटाघाट की चट्टानें यूनेस्को के विश्व धरोधर सूची में शामिल होने के करीब पहुंच गई हैं। जिसके बाद नर्मदा तट पर बसे जबलपुर की प्राचीन धरा को अब पूरी दुनिया में पहचान मिलेगी। भूगर्भ शास्त्र के अनुसार दो हजार करोड़ वर्ष पुरानी जबलपुर के नर्मदा तट की चट्टानें सदियों से पृथ्वी की कई संरचनाओं के निर्माण की गवाह रही हैं।
कुछ वर्ष पहले यूनेस्को ने भेड़ाघाट और लम्हेटाघाट (भूगर्भशास्त्र में लमेटा फार्मेशन के नाम से विख्यात) की चट्टानों को विश्व धरोहर सूची में शामिल करने का निर्णय किया और वर्ष 2021 में लम्हेटा यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल हुआ। संगमरमर के पत्थरों को चीरकर निकलती नर्मदा के इस तट को दुनिया के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों की सूची में लाने के लिए वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया (डब्ल्यूआइआइ), जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया, मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड समेत राष्ट्रीय स्तर की अन्य एजेंसी कार्य कर रही हैं।
विशेषज्ञों का एक दल ने भेड़ाघाट, लम्हेटा का दौरा किया और इस बात पर सहमति जताई कि यह स्थल अगले दो वर्ष के अंदर यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में स्थायी रूप से नाम दर्ज करवा लेगा। डब्ल्यूआइआइ के विषय विशेषज्ञ भूमेश सिंह भदौरिया ने बताया कि यह साइट प्राकृतिक श्रेणी में भूगर्भ के महत्व के लिहाज से देश की पहली अति प्राचीन धरोहर होगी।
इधर, डब्ल्यूआईआई द्वारा तैयार प्रारंभिक मूल्यांकन को यूनेस्को ने स्वीकार कर लिया है। इसके साथ ही नामांकन प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। आगे यूनेस्को से प्रारंभिक मूल्यांकन की रिपोर्ट आने के बाद नामांकन डोजियर यूनेस्को को सौंपा जाएगा। डोजियर जमा होने के बाद यूनेस्को के इंटरनेशनल यूनियन फार कंजर्वेशन आफ नेचर (आइयूसीएन) का मूल्यांकन दल स्थल का निरीक्षण करेगा। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग दो वर्ष का समय लगेगा।
भेडाघाट और इसके निकट दो हजार से बाइस सौ करोड़ वर्ष पुरानी चट़टानों से लेकर पंद्रह लाख वर्ष पुरानी चट्टानें मौजूद हैं। इस समयावधि के बीच पृथ्वी में हुई भू वैज्ञानिक गतिविधियों के प्रमाण यहां मौजूद हैं। यहां की इगनिंग बराइट नाम की चटटानें इस बात का प्रमाण हैं कि यहां कभी ज्वालामुखी फटने जैसी घटनाएं भी हुई थीं।
यहां नर्मदा नदी का प्रवाह के परिवर्तन प्रमाण में देखने मिलते हैं जिसे नदी अपहरण कहा जाता है। नर्मदा के इस तट को पूरे विश्व में लमेटा फार्मेशन के नाम से जाना जाता है। भूगर्भ शास्त्रियों के लिए यह स्थल बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यहां विभिन्न समय कालखंड की चट़टानों के साथ-साथ डायनासोर के अंडों के फासिल भी मिले हैं।
केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के निर्देश पर शुक्रवार को विभिन्न विभागों के अधिकारियों ने भेड़ाघाट, लम्हेटाघाट के स्थलों का निरीक्षण किया। दल में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया के विज्ञानी डा. गौतम तालुकदार, विषय विशेषज्ञ भूमेश सिंह भदौरिया, प्रोजेक्ट एसोसिएट दीपिका सायरे एवं स्नेहा पांडे, जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया के डा. सुहेल अहमद, सर्वे आफ इंडिया के जयप्रकाश पाटीदार, कुलदीप सिंह बागरी, हेमंत तथा भेडाघाट नगर परिषद के सीएमओ विक्रम सिंह तथा मध्य प्रदेश टूरिज्म कार्पोरेशन के मार्केटिंग प्रमुख योगेंद्र रिछारिया, जीएम अमित सिंह आदि शामिल थे।
लम्हेटाघाट में 2200 करोड़ साल पुरानी चट्टानें हैं इन्हें महाकोशल राक कहा जाता है। करोड़ों साल पहले यहां समुद्र था जिसके किनारे नमी में डायनासोर प्रजनन करते थे। अंडे देते थे। करीब 65 करोड़ साल पहले लम्हेटा में ज्वालामुखी फटा जिसका लावा ठंडा होकर लम्हेटाघाट की चट्टानों में बदल गया। प्राकृतिक रूप से यह अदभुत है कि यहां की चट्टानों में खड़े हो तो एक पैर जिस चट्टान पर होगा वह 22 करोड़ साल पुरानी होगी वहीं दूसरा पैर जिस पर रखा होगा वह 65 करोड़ साल पुरानी। ये बेहद दुर्लभ है। देश में प्राकृतिक श्रेणी में भूगर्भीय महत्व वाली यह पहली साइट है। - भूमेश सिंह भदौरिया, विषय विशेषज्ञ, वर्ल्ड हेरिटेज
मां नर्मदा पृथ्वी पर सबसे प्राचीन और पवित्र नदियों में से एक हैं। नर्मदा घाटी अपने आप में अनेक रहस्य समेटे हुए है जो मानव सभ्यता के उन अनजान पहलुओं से अवगत कराती है जिसकी खोज में आधुनिक मानव निरंतर प्रयत्नशील है। नर्मदा मैया के तट पर संगमरमर की चट्टानें करोडों वर्ष के भूगर्भीय परिवर्तन की मूक गवाह हैं जो मानव मात्र को अचंभित कर देती है। जबलपुर का लम्हेटा और भेड़ाघाट यूनेस्को की विश्व धरोहरों की स्थायी सूची में अपना गहरा हस्ताक्षर दर्ज कराने की कगार पर है। इस स्थल को विश्व पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए मध्य प्रदेश पर्यटन निरंतर प्रयत्नशील है।- शिव शेखर शुक्ल, पर्यटन सचिव, एमडी मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड