नईदुनिया, जबलपुर ( Madhya Pradesh High Court)। हाई कोर्ट की जबलपुर बेंच में याचिका के जरिए मध्य प्रदेश के स्वशासी आयुर्वेद कालेजों में भर्ती, स्थानांतरण सहित अन्य विषयों के लिए सरकार द्वारा बनाए गए नियम को चुनौती दी गई है। मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत व न्यायमूर्ति विवेक जैन की युगलपीठ ने गुरुवार को मामले की सुनवाई के बाद राज्य शासन, हस्तक्षेपकर्ताओं और याचिकाकर्ताओं को लिखित तर्क पेश करने के निर्देश दिए हैं।
कोर्ट ने 25 जनवरी, 2025 को मामले में अंतिम सुनवाई की व्यवस्था भी दे दी है। इससे पूर्व वर्ष 2022 में इस प्रकरण की प्रारंभिक सुनवाई करते हुए कोर्ट ने स्थानांतरण पर अंतरिम रोक लगा दी थी।
सरकार चाहे तो एक आयुर्वेद आटोनॉमस कालेज से दूसरे आयुर्वेद आटोनामस कालेज में सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर का स्थानांतरण कर सकेगी तथा भर्ती में प्रदेश स्तर की रोस्टर प्रणाली लागू की जाएगी।
इन कालेजों के सहायक अध्यापकों पर अध्यापकों और अन्य अधिकारियों कर्मचारियों का वेतन एवं भत्ते, मध्य प्रदेश सरकार के संचित निधि पर आधारित होता है। मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2010 में नियम बनाकर इन कालेज में भर्ती करने का अधिकार इन समितियां को दिया था।
इस पर मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग ने आपत्ति जताई थी। मध्य प्रदेश महालेखाकार ग्वालियर द्वारा भी इन आटोनॉमस कालेज के कर्मचारी एवं अधिकारियों को संचित निधि से वेतन एवं भत्ता दिए जाने पर आपत्ती उठाई गई थी।
वहीं दूसरे मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने एमडी-एमएस कोर्स में एडमिशन संबंधी नीट पीजी काउंसलिंग में नार्मलाइजेशन प्रक्रिया को चुनौती के मामले में नेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड फार मेडिकल साइंस (एनबीईएमएस) को नया पक्षकार बनाया गया है।
न्यायाधीश सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति अनुराधा शुक्ला की युगलपीठ ने एनबीईएमएस को तीन दिसंबर तक जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं। गुरूवार को सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने पहले राउंड की काउंसिलिंग के परिणाम घोषित करने पर पूर्व में लगाई गई अंतरिम रोक को बरकरार रखा है।
याचिकाकर्ता की ओर से एक अंतरिम आवेदन पेश कर बताया कि राज्य सरकार नार्मलाइजेशन का पूरा ठीकरा एनबीईएमएस पर फोड़ रही है। रीवा निवासी डा. अभिषेक शुक्ला व अन्य जिलों के डाक्टरों की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के तहत मैच के शुरू होने के बाद कोई नियम नहीं बदले जा सकते। सरकार ने ऐसा ही किया है।
पीजी कोर्स में दाखिले के लिए नीट ने मैरिट लिस्ट तैयार की गई थी। यह सूची नार्मलाइजेशन प्रोसेस अपनाते हुए जारी की गई थी। राज्य शासन ने मेरिट लिस्ट तैयार करने में दूसरी बार नार्मलाइजेशन प्रक्रिया अपनाई, जो कि अनुचित है। इसी वजह से नीट की मेरिट लिस्ट में अच्छी रैंकिंग होने के बावजूद भी प्रदेश की मेरिट लिस्ट में याचिकाकर्ताओं का नाम नीचे आ गए। प्रवेश प्रक्रिया में नियमों का पालन नहीं होने से पहले राउंड के रिजल्ट घोषित करने पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
अधिवक्ता के अनुसार एमडी-एमएस कोर्स में दाखिले के लिए नीट पीजी काउंसलिंग में प्रदेश के रजिस्टर्ड कैंडिडेट्स की मैरिट सूची तैयार करने में दूसरी बार नार्मलाइजेशन प्रक्रिया अपनाई गई, जो अनुचित है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस मनमानी के कारण याचिकाकर्ता नीट के मैरिट लिस्ट में अच्छी रेटिंग होने के बावजूद भी प्रदेश की मेरिट लिस्ट में नीचे हो गया।
पहले राउंड के लिए च्वाइस फिलिंग और च्वाइस लाकिंग की प्रक्रिया का रिजल्ट घोषित होना है। चूंकि एडिमिशन नियमों का समुचित पालन नदारद है अत: याचिका के निर्णय तक रोक की मांग की गई। यह सुनने के बाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के तहत पहले राउंड की काउंसलिंग कराने की इजाजत तो दी, लेकिन अगली सुनवाई तक रिजल्ट घोषित करने पर प्रारंभिक सुनवाई में रोक लगा दी थी, जो गुरुवार को आगे बढ़ा दी गई।
संचालक मेडिकल एजुकेशन की तरफ से पेश किये गए जवाब में कहा गया कि नेशनल बोर्ड आफ एग्जामिनेशन इन मेडिकल साइंस, नई दिल्ली द्वारा मैरिट लिस्ट तैयार की गई है। इसके बाद मप्र में पूरी प्रक्रिया का विधिवत पालन किया जा रहा है। इस जवाब को रिकार्ड पर लेकर हाई कोर्ट ने एनबीईएमएस को भी नोटिस जारी कर दिए।