नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल व न्यायमूर्ति देवनारायण मिश्रा की युगलपीठ ने डाक्टर पति को करंट देकर मारने के मामले में प्रोफेसर पत्नी ममता पाठक को मिली उम्रकैद की सजा को कायम रखा है। कोर्ट ने पूर्व में सुनवाई पूरी होने के बाद सुरक्षित किया गया फैसला सुनाते हुए साफ किया कि घटना के दिन कोई अन्य व्यक्ति बाहर से नहीं आया था। परिस्थितियों की पूरी कड़ी इस ओर इंगित करती है कि पत्नी ने ही पहले नशीली दवा देकर पति को बेहोश किया और बाद में करंट लगाकर मौत के घाट उतार दिया।
कोर्ट ने पूर्व में सजा पर दिया गया अस्थायी निलंबन निरस्त करते हुए ममता पाठक को शेष कारावास भुगतने के लिए तत्काल ट्रायल कोर्ट में सरेंडर करने के निर्देश दिए। इस मामले में हाई कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 29 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। वर्ष 2021 में ग्वालियर में सेवानिवृत्त डॉ. नीरज पाठक की रहस्यमय परिस्थिति में मौत हो गई थी। प्रारंभ में पत्नी ममता ने बताया था कि वह बेटे के साथ झांसी गई थीं और लौटने पर पति मृत मिले, लेकिन जब जांच शुरू हुई तो कहानी में कई परतें खुलीं।
पुलिस ने आरोप लगाया कि कालेज में केमिस्ट्री की प्रोफेसर ममता पाठक ने अपने पति को पहले नींद की गोलियां दीं और फिर उन्हें करंट लगाकर मार डाला। ड्राइवर के बयान, नीरज की प्रसारित हुई एक आडियो क्लिप, जिसमें वह कह रहे हैं कि उनकी पत्नी उन्हें प्रताड़ित करती हैं, और ममता की एक पुरानी शिकायत ने इस केस को मजबूत बना दिया। 2022 में सेशन कोर्ट ने ममता को हत्या का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी, लेकिन इसके बाद उसने हाई कोर्ट में अपील दायर की और कुछ माह पहले जमानत मिल गई थी।
जब इस मामले की सुनवाई चल रही थी, तब ममता ने हाई कोर्ट में पोस्टमार्टम प्रक्रिया का रासायनिक विश्लेषण कर चौंका दिया था। कोर्ट ने उनसे सवाल किया था कि आप पर अपने पति की इलेक्ट्रिक करंट से हत्या का आरोप है, इस पर आपका क्या कहना है। यह सुनते ही ममता ने केमिस्ट्री के ज्ञान के बल पर कहना शुरू कर दिया कि सर, पोस्टमार्टम रूम में थर्मल बर्न और इलेक्ट्रिक बर्न में अंतर कर पाना संभव नहीं है। जब करंट शरीर से गुजरता है, तो मेडिकल मेटल के कण टिशू में जम जाते हैं। बाद में लैब में उसे एचसीएल या नाइट्रिक एसिड में घोलकर परीक्षण किया जाता है। वहां असली पहचान होती है कि बर्न किस कारण से हुआ।