Leprosy : कुष्ठ रोग अब लाइलाज नहीं रहा। समय रहते नियमित उपचार से इस बीमारी को पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। इतना ही नहीं कुष्ठ के कारण शारीरिक अंगों में आई विकृति का भी निवारण संभव है। कुष्ठ को लेकर अब भी समाज में तरह-तरह की भ्रांति है। जिससे ग्रसित तमाम मरीज उपचार कराने में संकोच करते हैं और बीमारी को जटिल बना देते हैं।
यह समझना चाहिए कि कुष्ठ भी आम बीमारियों की तरह एक बीमारी है। इसे दैवीय प्रकोप से जाेड़ा जाना उचित नहीं। शरीर में जहां भी कुष्ठ रोग के दाग होते हैं वहां पसीना नहीं आता। धीमी गति से सक्रिय होने वाले बैक्टीरिया के कारण फैलने वाली इस बीमारी के लक्षण प्राय: विलंब से सामने आते हैं। बैक्टीरिया का संक्रमण हाथ, पैर, त्वचा, नाक की ऊपरी परत व नसों को प्रभावित करता है।
इस बीमारी के कारण मरीज की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं जो कि शारीरिक विकृति व अपंगता का कारण बन जाती है। कुष्ठ के कारण त्वचा का रंग बदल जाता है। त्वचा जहां प्रभावित रहती है वहां सुन्नपन आ आता है, यानि दर्द का एहसास ठंड व गर्म का असर खत्म हो जाता है। यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है।
कुछ लोग इसे छुआछूत की बीमारी कहते हैं, जबकि यह हवा में मौजूद बैक्टीरिया से फैलता है। कुष्ठ के मरीज से हाथ मिलाने, उसे छूने से संक्रमण नहीं हाेता है। यह वंशानुगत बीमारी भी नहीं है। नाक बंद होना, नाक से खून बहना, त्वचा में सूखापन, सूजन, जलन होना, पैरों में दर्द रहित अल्सर, घावों के आसपास की त्वचा मोटा होना आदि भी इसके लक्षण हैं।