जबलपुर Doctor Private Practice । मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकारी अस्पताल में कार्यरत चिकित्सकों को प्राइवेट प्रैक्टिस की अनुमति न दिए जाने के रवैये को चुनौती देने वाली याचिका को गंभीरता से लिया। इसी के साथ राज्य शासन, प्रमुख सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया। इसके लिए तीन सप्ताह का समय दिया गया है। मंगलवार को न्यायमूर्ति नंदिता दुबे की एकलपीठ के समक्ष मामला सुनवाई के लिए लगा। इस दौरान याचिकाकर्ता शाजापुर निवासी स्मिता सुरेंद्रन की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने पक्ष रखा।
उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता शासकीय जिला चिकित्सालय, शाजापुर में मेडिकल ऑफिसर बतौर पदस्थ है। वह स्त्री रोग विशेषज्ञ के साथ-साथ सोनोलॉजिस्ट भी है। उसका तर्क यह है कि सुबह 10 से शाम पांच बजे तक शासकीय अस्पताल में सेवा देने के बाद बचे हुए समय में वह प्राइवेट प्रैक्टिस क्यों नहीं कर सकती? 2017 में जारी एक सर्कुलर के आधार पर ऐसा करने से रोका क्यों जाता है। जबकि 2018 में शासकीय जीआर मेडिकल कॉलेज, ग्वालियर के डीन ने एक सर्कुलर के जरिये शासकीय चिकित्सकों को प्राइवेट प्रैक्टिस के लिए अधिकृत कर दिया था।
सवाल उठता है कि एक ही प्रदेश में दो तरह की व्यवस्थाएं क्यों? या तो 2017 का सर्कुलर अस्तित्व में रहे या फिर ग्वालियर मेडिकल कॉलेज के डीन का। विरोधाभासी व्यवस्था उचित नहीं है। कोविड के कारण शिथिल किए गए नियम अधिवक्ता आदित्य संघी ने दलील दी कि कोविड के कारण कई नियमों को शिथिल किया गया है।
लिहाजा, मेडिकल ऑफिसर्स को राहत क्यों नहीं दी जा रही है। जब प्रदेश में चिकित्सकों की भारी कमी परिलक्षित हो रही है, तो फिर शासकीय चिकित्सकों को खाली समय में निजी स्तर पर मरीजों की सेवा के लिए अधिकृत क्यों नहीं किया जा रहा है। यदि यह सुविधा दे दी जाए तो मरीजों को लाभ मिलेगा, साथ ही चिकित्सकों को कुछ कमाई भी हो जाएगी।