जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनधि। नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कालेज अस्पताल में पदस्थ डा. तृप्ति गुप्ता व उनके पति डा. अशोक साहू को बर्खास्त कर दिया गया है। बायोकमेस्ट्री विभाग में प्रोफेसर चिकित्सक दंपती के खिलाफ शुक्रवार को डीन कार्यालय के आदेश पर उक्त कार्रवाई की गई। दंपती के ठिकानों पर कुछ माह पूर्व हुई ईओडब्लयू की सर्च कार्रवाई के बाद सेवा से पृथक करने की कार्रवाई को लेकर मेडिकल में तरह-तरह की चर्चा हो रही है। बर्खास्तगी के पीछे 14 वर्ष पूर्व हुई दोनों की नियुक्ति में गड़बड़ी मुख्य वजह बताई जा रही है। डीन कार्यालय से आदेश जारी होने के बाद डा. गीता गुईन ने चुप्पी साध रखी है। बताया जाता है कि दंपती के विरुद्ध मेडिकल कालेज प्रशासन ने विभागीय जांच शुरू की थी। जांच कमेटी ने दोनों के खिलाफ रिपोर्ट पेश की है, जिसके तहत दोनों को मप्र सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम-1966 के नियम-10 (आठ) के अंतर्गत सेवा से पृथक करने के आदेश जारी किए गए।
14 साल पहले नियुक्ति में गड़बड़ी का मामला-
बताया जाता है कि चिकित्सक दंपती की नियुक्ति करीब 14 वर्ष पूर्व मेडिकल कालेज अस्पताल में की गई थी। बायोकमेस्ट्री विभाग में नियुक्ति के बाद दोनों की वांछित शैक्षणिक योग्यता पर सवाल खड़े किए जा रहे थे। दोनों के खिलाफ शिकायतें भी की गई थीं। विभागीय जांच हुई तो पता चला कि डा. गुप्ता व डा. साहू बायोकेमेस्ट्री विभाग में सहायक प्राध्यापक पद की अर्हता नहीं रखते थे, उन्हें तीन वर्ष के अध्यापन का भी अनुभव नहीं था, जिसके बाद तथ्यों से पता चला कि दोनों का चयन प्रोविजनली एवं सशर्त की गई थी, परंतु तत्कालीन एमआइसी से नियुक्ति की अनुमति न मिलने पर चयन प्रक्रिया शून्य हो गई थी। इसके बाद दोनों की नियुक्ति सेवा शर्तों व स्वास्थ्य हितों के खिलाफ हो गई।
विदित हो कि डा. गुप्ता मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान चिकित्सा विश्वविद्यालय में रजिस्टार रह चुकी हैं। उनकी प्रतिनियुक्ति समाप्त कर मूल पदस्थापना स्थल मेडिकल कालेज भेजा गया था। 16 मार्च को ईओडब्ल्यू ने दंपती के ठिकानों पर सर्च कार्रवाई कर करोड़ों की संपति का पता लगाया था।
यह हैं आरोप-
मेडिकल कालेज अस्पताल में बायोकेमेस्ट्री विभाग में रिक्त पद के लिए मई 2008 में विज्ञापन जारी किए गए थे। एमसीआइ के मापदंड अनुसार डा. अशोक साहू एमडी बायोकेमेस्ट्री, बायोकेमेस्ट्री में एमएससी के साथ एमबीबीएस, एमएससी मेडिकल बायोकेमेस्ट्री विथ पीएचडी तथा एमएससी विथ डीएससी की योग्यता नहीं रखते थे। तीन वर्षीय अध्यापन का भी अनुभव नहीं था। शैक्षणिक अर्हता व अध्यापन की योग्यता न रखने के बावजूद उन्हें संविदा नियुक्ति प्रदान की गई थी। जिसके बाद 2011 में उन्हें नियमित कर दिय गया। भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद ने नियुक्ति को अयोग्य ठहराया है। नियमितीकरण की प्रक्रिया व पदोन्नाति भी अवैध घोषित की गई है। सेवा में रहते हुए डा. साहू ने बिना किसी अनुमति के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी। जो शासकीय सेवा के नियमों के विपरीत है।