Durgotsav of Jabalpur: सुरेंद्र दुबे, जबलपुर। संस्कारधानी जबलपुर का दुर्गाेत्सव व दशहरा कोलकाता व मैसूर के बाद सबसे खास होता है। कोविड काल में इसका रंग कुछ फीका अवश्य पड़ा लेकिन देवी मंदिरों में विधि विधान से पूजन-अर्चन में कोई कमी नहीं आई। इस वर्ष भी कोविड गाइडलाइन का पूर्ण पालन करते हुए देवी मंदिरों में जवारे बोने से लेकर अन्य अनुष्ठानों की तैयारी जोरों पर है। पितृपक्ष के बाद देवी पूजन के संबंध में सभी तैयारियों को अंतिम रूप दे दिया जाएगा।
पंडित वीरेंद्र दुबे बताते हैं कि कोलकाता की काली और मैसूर में विजयादशमी चल समारोह को जो गरिमा मिली है, जबलपुर में वहीं इंद्रधनुष सालों से खिलता आया है। यहां उपनगरीय क्षेत्रों से लेकर मुख्य दशहरा चल समारोह तक अलग ही छटा देखने को मिलती है। शहर के तमाम मुख्य बैंड चल समारोह को सरगम प्रदान करते हैं। देवी प्रतिमाएं भी खास हाेती हैं। प्रत्येक प्रतिमा जीवंत नजर आती है। दुर्गा समितियों की तैयारी पूरे साल चलती है। एक वर्ष गुजरा तो दूसरे वर्ष की तैयारी में मन लगा दिया जाता है। यही वजह है कि साज-सज्जा से लेकर प्रत्येक पक्ष अनूठा होता है। कन्या पूजन से लेकर अन्य आयोजनों में कहीं कोई कंजूसी नहीं बरती जाती।
यहां बंगाल की छटा से लेकर महाराष्ट्र के नजारे और देश के अन्य राज्य का लघु रूप साकार होता है। देवताल क्षेत्र को तो लघुकाशी की महिमा प्राप्त है ही। यहां पहाड़ पर मातारानी विराजती हैं। प्रत्येक प्रतिमा के साथ देश के नामवर स्थानों की झांकी सजाई जाती है। इस वर्ष प्रशासन के निर्देश के अनुसार सजावट को आकार प्रदान किया जाएगा।