नईदुनिया, जबलपुर (Jabalpur News)। निजी स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि और अनियमितताओं के खिलाफ प्रशासन-पुलिस ने एक बार फिर सोमवार को बड़ी कार्रवाई की। विजय नगर स्थित जाय सीनियर सेकेंडरी स्कूल प्रबंधन के विरुद्ध विजय नगर थाने में एफआइआर दर्ज की है। थाना विजयनगर से आरोपी विक्टोरिया के लिए रवाना किया गया।
एफआइआर दर्ज करने के साथ ही जाय एजुकेशन सोसायटी के अध्यक्ष अखिलेश मेबिन और सचिव अनुराग श्रीवास्तव गिरफ्तार कर लिया गया है। स्कूल प्रबंधन ने प्रशासन को आय-व्यय की जो जानकारी दी थी, उसमें भी हेरफेर सामने आई।
स्कूल विभाग द्वारा की गई जांच में कई चौकाने वाले तथ्या सामने आए। स्कूल ने करीब 15 हजार 600 बच्चों से 25 करोड़ 21 लाख रुपये की अवैध फीस वसूली की।
इतना ही नहीं प्रशासन और शिक्षा विभाग से स्वीकृति लिए बिना ही 10 फीसदी से ज्यादा फीस वसूली। स्कूल के अध्यक्ष से 25 करोड़ से ज्यादा की कमाई को स्कूल आय की बजाए अन्य स्त्रोत से आय दिखाकर धोखाधड़ी की।
इसके अलावा स्कूल के अध्यक्ष अखिलेश मेबिन ने करीब 30 लाख से ज्यादा प्रवेश फीस के अलावा राशि वसूली और इसे दान में दिखाया गया।
इससे पूर्व जिला प्रशासन और पुलिस ने जबलपुर के दस थानों में स्कूल के संचालक, सदस्य, प्राचार्य को गिरफ्तार किया था। इसके अलावा पुस्तक विक्रेता और प्रकाशक भी गिरफ्तार किए गए थे। इन सभी को कमीशन के खेल से जुड़ा पया गया।
अभी तक जिन स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई की गई। उन्होंने दस प्रतिशत से ज्यादा फीस में बढ़ोतरी कर अभिभावकों से वसूले। इसके अलावा विभिन्न मद में विद्यार्थियों से शुल्क लिया गया। बता दे कि बैंक स्टेटमेंट भी पुलिस ने जुटाया जिसमें पैसों का लेनदेन हुआ है। पुलिस कमीशन के पैसे को किस माध्यम से लिया गया यह भी पता लगा रही है।
मनमानी फीस और किताबों पर मुनाफाखोरी से जुड़े मामले में पांच माह बाद एक बार फिर प्रशासन ने कार्रवाई की। सोमवार को विजय नगर पुलिस ने जाय सीनियर सेकेन्ड्री स्कूल के संचालक अखिलेश मेबिन, सचिव अनुराग श्रीवास्तव और कोषाध्यक्ष कविता बलेचा के खिलाफ मामला दर्ज किया।
इस मामले में अखिलेश मेबन और अनुराग श्रीवास्तव को गिरफ्तार कर लिया गया। दोनों आरोपितों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें एक दिन की पुलिस रिमांड लिया गया है। आरोप है कि स्कूल ने 15606 विद्यार्थियों से 25 करोड़ 21 लाख रुपये से अधिक फीस वसूल की। आरोपियों को रिमांड खत्म होने पर मंगलवार को फिर से कोर्ट में पेश किया जाएगा।
जिला प्रशासन की जांच में सामने आया कि स्कूल प्रबंधन ने मनमानी फीस बढ़ाई। इतना ही नहीं अपना गड़बड़झाला छिपाने के लिए स्कूल ने एक से अधिक बुक आफ एकाउंट्स रखे। स्कूल ने दस प्रतिशत से अधिक फीस वृदि्ध की जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया गया।
स्कूल संचालक ने छात्रों से वसूली गई फीस से दो करोड 51 लाख 60 हजार 892 रुपये कीमत की चार लक्जरी गाड़ी खरीदीं। इन वाहनों के नंबर दमन एवं दीप के थे। एक गाड़ी को बेचा गया, लेकिन उससे जो रकम एक लाख 99 लाख 59 हजार 942 रुपये मिले, वह कहां गए, इसकी जानकारी जाहिर नहीं की गई है। लेकिन आडिट रिपोर्ट में वाहनों को बेचने पर 48 लाख 50 हजार 999 रुपए का घाटा बताया गया।
जाय एजुकेशन सोसायटी की बैलेंस सीट की जांच पता चला कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में दो करोड़ दस लाख रुपये सेंचुरी डेवल्पर्स से भूमि क्रय करने का विवरण उसमें है, लेकिन जब जमीन के बारे में पूछा गया, तो संचालक यह नहीं बता पाए कि आखिरकार जमीन कहां है।
प्रशासन की टीम 16 लाख 94 हजार 560 रुपए के खर्च पर पड़ी। यह खर्च दुबई टि्रप के लिए किया गया था। टि्रप का कारण जाना गया, तो टीम हैरान रह गई, छात्रों से वसूली जाने वाली फीस को प्रबंधन ने अपनी विलासिता और मनोजरंजन के लिए उपयोग किया और यह राशि उस टि्रप पर खर्च की गई।
स्कूल प्रबंधन के खिलाफ शिकायत के बाद प्रशासन ने इसकी जांच की। इसमें वित्तीय अनियमितताएं और नियमों का उल्लंघन पाया गया। जांच में पाया गया कि स्कूल प्रबंधन ने वित्तीय लेन-देन में हेराफेरी की और अभिभावकों से ली गई फीस का हिस्सा गलत खातों में जमा किया।
स्कूल फंड से करीब दो करोड़ की कार खरीदी गई। इनमें कई लग्जरी कार थीं, जिनका दुरुपयोग किया गया। इन वाहनों का उपयोग स्कूल के बजाए प्रबंधन के निजी विलासिता के लिए किया गया।
जिसे वह स्कूल की कमाई से पूरा करता था। उसने दुबई यात्रा पर ही करीब 16.94 लाख रुपए खर्च किए । इतना ही नहीं स्कूल प्रबंधन ने नियमों का उल्लंघन कर स्कूल में अवैध फीस वसूल करके इस आय को अन्य खातों में स्थानांतरित किया और भवन निर्माण से लेकर निजी उपभोग में खर्च किया गया।
नियम के मुताबिक स्कूल 15 प्रतिशत या उससे अधिक के घाटे में है तो वह जिला प्रशासन या अन्य सक्षम अधिकारी से अनुमति लेकर 15 फीसद की फीस वृद्धि तीन साल में एक बार कर सकता है।
जाय स्कूल की आडिट रिपोर्ट से पता चला है कि इस स्कूल ने 15 फीसद से अधिक लाभ के बाद भी 15 से 40 फीसद तक फीस बढो़त्तरी हर साल की। कई अभिभावक का कहना रहा कि जाॅय स्कूल कई माध्यमों से फीस वसूली करता था। वह स्कूल फीस, ट्यूशन फीस, बस की फीस, कम्प्यूटर व लैब फीस, एनुअल फंक्शन फीस, भवन निर्माण या रखरखाव फीस, टूर फीस वसूली की गई।
स्कूल के बच्चे घूमने जाए या न जाएं उन्हें टूर फीस साल में एक बार देना ही पड़ती है। यहां तक की कक्षा में तीन से चार हजार की अवैध फीस टूर के नाम पर वसूली जाती थी। यहां तक की स्कूल में यदि दो बच्चे पढ़ते थे तो उसे छूट देने से साफ मना कर दिया जाता था।
जाय स्कूल के अध्यक्ष मेबिन ने विकास प्राधिकरण की योजना क्रमांक पांच शताब्दीपुरम विजय नगर में समाजिक सरोकार के नाम पर स्कूल के लिए जमीन ली गई। समाजसेवा के नाम पर सस्ती जमीन अपने नाम करवा ली। इसमें जेडीए के अधिकारियों की भी संलिप्तता सामने आई है।
विजय नगर जैसे पाश इलाके में बडा़ भूखंड लेकर करोडो़ं की जमीन सस्ते में ली। मेबन को इस जमीन पर समाजसेवा का केंद्र बनाना था, जहां पर गरीब व मध्यम वर्ग के बच्चों को कम फीस पर अच्छी शिक्षा दी जा सकें, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
जेडीए और जनप्रतिनिधि को भी इस काम में शामिल किया गया। यहां पर स्कूल की बजाए इसे बिजनेस सेंटर बना लिया गया। यहां पर गरीब बच्चों को प्रवेश देने की बजाए उन्हें स्कूल में प्रवेश तक नहीं दिया गया।
स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों ने बताया कि जब भी वे अखिलेश मेबन के पास शिकायत करने जाता है तो वे उनसे दुरव्यवहार करता था। यहां तक की अपशब्द का भी प्रयोग करता। कार्यालय में ही बैठकर ई-सिगरेट का धुंआ उडा़ते थे।
अभिभावकों के अलावा स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों से लेकर पुलिस अफसर के नाम पर अभिभावकों को धमकी दी जाती थी। कई बार स्कूल प्रबंधक के हालात की शिकायत करने पर बच्चों को स्कूल से बाहर कर दिया गया। यहां तक की नागरिक उपभोक्ता मंच से लेकर कई सामाजिक और धार्मिक संगठन द्वारा स्कूल का घेराव भी किया गया, लेकिन उन्हें स्कूल में प्रवेश तक नहीं दिया। स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक भी अपनी वेतन नहीं मांग पाते थे।
जांच के दौरान स्कूल शिक्षा विभाग ने कई अहम दस्तावेजों को खंगाला। इस दौरान उन्हें न सिर्फ आय में गड़बड़ी मिली, बल्कि बुक संचालक से लेकर यूनिफार्म और स्टेशनरी सप्लाई करने वालों के साथ भी संलप्तिता थी। यहां तक की इन्हें अधिक भुगतान दिखाकर इनसे नकद में राशि वापस ली जाती थी, ताकि आडिट में अधिक खर्च दिखाया जा सके।
शिक्षा विभाग में भी कुछ ऐसे अधिकारी थे, जो स्कूल की शिकायत लेने से साफ मना कर दिया करते। उनके द्वारा अक्सर स्कूल के कार्य को बेहतर बताया जाता। इधर कई बार अभिभावकों ने भी स्कूल शिक्षा विभाग को स्कूल प्रबंधक और अध्यक्ष के खिलाफ शिकायत दी, लेकिन इसका कुछ नहीं किया गया।
2018-19 | 2206 | 1,11,46,720 |
2019-20 | 2194 | 2,24,81,900 |
2020-21 | 2230 | 2,22,36,600 |
2021-22 | 2275 | 3,30,28,800 |
2022-23 | 2285 | 4,68,79,700 |
2023-24 | 2240 | 5,08,32,000 |
2024-25 | 2176 | 6,55,06,320 |