नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। कृषि शिक्षा अब सिर्फ खेतों और फसलों तक सीमित नहीं रहेगी, इसमें अब संस्कृति की खुशबू भी शामिल होगी। राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ने ट्राइबल कल्चर एंड हेरिटेज नाम से नया कोर्स शुरू किया है। इसके जरिए छात्र जनजातीय समाज की भाषा, परंपराओं, जीवनशैली और सामाजिक ताने-बाने को समझ सकेंगे।
यह कोर्स राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत तैयार किया गया है और प्रदेश में इस तरह की पहल करने वाला यह पहला कृषि विश्वविद्यालय बन गया है। विश्वविद्यालय से संबद्ध इंदौर, मंदसौर, खंडवा, सीहोर और ग्वालियर के कृषि महाविद्यालयों के तीसरे वर्ष के करीब 590 छात्र इस कोर्स से जुड़ेंगे। इसे ऑनलाइन माध्यम से संचालित किया जाएगा। विश्वविद्यालय से जुड़े शिक्षक किसी भी महाविद्यालय के छात्रों को पढ़ा सकेंगे।
कोर्स की बड़ी बातें
छात्रों को जनजातीय समुदायों के इतिहास, भाषा, संस्कृति, सामाजिक-आर्थिक जीवन और वैश्वीकरण व आधुनिकता के प्रभाव की जानकारी मिलेगी। इससे छात्र न केवल तकनीकी ज्ञान में दक्ष होंगे, बल्कि समाज की जड़ों और ग्रामीण संस्कृति से भी जुड़ सकेंगे। यह कोर्स राष्ट्रीय शिक्षा नीति की उस भावना को मूर्त रूप देता है, जिसमें स्थानीय संस्कृति, परंपरा और ज्ञान को शिक्षा से जोड़ने की बात कही गई है।
विश्वविद्यालय प्रशासन का मानना है कि इससे छात्रों का समग्र विकास होगा और कृषि शिक्षा को सामाजिक संवेदनशीलता से जोड़ने की नई पहचान मिलेगी।
छात्रों का दृष्टिकोण होगा व्यापक
कृषि संकाय की डीन डॉ. मृदुला बिल्लौर का कहना है कि इस कोर्स का उद्देश्य छात्रों को समाज की विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि से अवगत कराना है। इस पहल से छात्रों का दृष्टिकोण व्यापक होगा और वे कृषि को केवल पेशे के रूप में नहीं, बल्कि समाज की उन्नति से जोड़कर देख सकेंगे।