नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति द्वारिकाधीश बंसल की युगलपीठ ने एमबीबीएस काउंसलिंग में भाग लेने वाले छात्रों से प्रोसेसिंग फीस के रूप में 10 लाख रुपये लेने के नियम को चुनौती के मामले में जवाब-तलब कर लिया है।
इस सिलसिले में मेडिकल एजुकेशन विभाग के प्रमुख सचिव, डीएमई और आरकेडीएफ मेडिकल कॉलेज, भोपाल को नोटिस जारी किए गए हैं। अमरावती निवासी तेजस रवीश अग्रवाल सहित अन्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य संघी ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि काउंसलिंग के लिए प्रोसेसिंग फीस के रूप में दस लाख रुपये लेना भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के विरुद्ध है।
ये नियम छात्र को पहले दौर की काउंसलिंग के बाद एमबीबीएस सीट सरेंडर करने और दूसरे राज्य के बेहतर कॉलेज में दाखिला लेने से रोकता है। उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता छात्रों ने डीएमई भोपाल के खाते में भागीदारी शुल्क के रूप में 10-10 लाख रुपये जमा किए और काउंसलिंग के पहले दौर में भाग लिया।
याचिकाकर्ताओं ने दूसरे राउंड की काउंसलिंग से पहले लिखित में सीट सरेंडर कर दी गई, क्योंकि इन्हें महाराष्ट्र में दाखिला मिल गया। छात्रों ने जब जमा रकम वापस मांगी तो यह कहते हुए मना कर दिया गया कि नियमों के अनुसार यह फीस वापस नहीं की जा सकती।
तर्क दिया गया कि दूसरे राउंड की काउंसलिंग शुरू होने से पहले ही जब सीट सरेंडर कर दी गई और वो सीट तत्काल अन्य उम्मीदवारों को आवंटित कर दी गई तो जमा शुल्क वापस कर दिया जाना चाहिए। दस लाख जब्त करने के स्थान पर मामूली राशि काटकर शेष रकम वापस की जानी चाहिए।