
नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। हाई कोर्ट के प्रशासनिक न्यायाधीश विवेक रूसिया व न्यायमूर्ति प्रदीप मित्तल की युगलपीठ ने महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत प्रतिपादित करते हुए कहा कि निजी जमीन पर बने ट्रस्ट पर सरकार रिसीवर की नियुक्ति नहीं कर सकती।
ऐसा करना पूरी तरह अवैधानिक है। इस मत के साथ कलेक्टर नर्मदापुरम को छह माह के भीतर आवेदन का निराकरण करने के निर्देश दिए गए हैं।
हाई कोर्ट ने कहा है कि आवेदन के निराकरण तक अपीलार्थी यंगेश्वर दास ट्रस्ट के प्रबंधक के रूप में कार्य करते रहेंगे। कोर्ट ने यह भी कहा कि कलेक्टर का निर्णय आने तक ट्रस्ट की जमीन खुर्दबुर्द नहीं की जाएगी और ट्रस्ट की आय का उचित रिकार्ड रखा जाएगा। नर्मदापुरम निवासी यंगेश्वर दास की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शशांक शेखर, अधिवक्ता सिद्धांत जैन व भूपेश तिवारी ने पक्ष रखा।
उन्होंने दलील दी कि वर्ष 1955 में श्री देव राम जानकी मंदिर (बड़िया वाला), पिपरिया ट्रस्ट की स्थापना मूल रूप से गुरु-शिष्य परंपरा के तहत की गई थी। ट्रस्ट की स्थापना बिना किसी सरकारी अनुदान या सार्वजनिक सहायता के की गई थी। ट्रस्ट की स्थापना महंत गोपाल दास ने की थी। स्व. सुखराम दास, गुरु गोपाल दास के शिष्य होने के नाते, यंगेश्वर दास को महंत बनाया गया।
अपीलार्थी स्व. सुखराम दास के शिष्य हैं, जिन्होंने दो अगस्त 2006 को एक पंजीकृत वसीयत निष्पादित की थी, जिसमें अपीलकर्ता को अपना उत्तराधिकारी और ट्रस्ट का सर्वहाकार नियुक्त किया गया था।
उक्त वसीयत के आधार पर अपीलकर्ता का नाम 2008 में सर्वहाकार के रूप में दर्ज किया गया था और वह तब से ट्रस्ट के मामलों और संपत्तियों का प्रबंधन कर रहे हैं। एक किराएदार ने उसे चुनौती देते हुए एसडीओ के समक्ष आवेदन दिया।
एसडीओ ने तहसीलदार को ट्रस्ट का रिसीवर नियुक्त कर दिया। गुरू-शिष्य परंपरा के तहत अपीलार्थी ट्रस्ट का प्रबंधन ठीक से और पारदर्शी रूप से देख रहा है। कोर्ट ने कहा कि पब्लिक ट्रस्ट की धारा-9 और 26 के तहत आवेदन पब्लिक ट्रस्ट रजिस्ट्रार के समक्ष लंबित हैं, इसलिए मामले की जांच किए बिना रिसीवर नियुक्त नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में रिसीवर की नियुक्ति का आदेश कानूनी रूप से गलत है।