दुष्कर्म पीड़िता की गर्भावधि 32 सप्ताह से अधिक होने पर बच्चे के जीवित होने की संभावना, हाई कोर्ट ने कहा गर्भपात की अनुमति नहीं
हाई कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा पारित आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि 24 सप्ताह से ज़्यादा के प्रेग्नेंसी को खत्म करने पर विचार किया जा सकता है। जिसमें प्रेग्नेंसी खत्म करने के लिए महिला की पसंद और महिला की फिजिकल हेल्थ कंडीशन सहित दूसरे सोशल-इकोनॉमिक फैक्टर देखना आवश्यक है।
Publish Date: Fri, 28 Nov 2025 10:21:51 PM (IST)
Updated Date: Fri, 28 Nov 2025 10:30:19 PM (IST)
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट।HighLights
- हाई कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा पारित आदेश का हवाला देते हुए कहा है
- कि 24 सप्ताह से ज़्यादा के प्रेग्नेंसी को खत्म करने पर विचार किया जा सकता है।
- फिजिकल हेल्थ कंडीशन सहित, सोशल-इकोनॉमिक फैक्टर देखना आवश्यक है।
नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने अपने एक आदेश में कहा कि दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग उम्र 16 साल से कम है और गर्भावधि 32 सप्ताह से अधिक है। मेडिकल बोर्ड ने बच्चे के जीवित होने की संभावना व्यक्त करते हुए डिलीवरी कराने का अभिमत व्यक्त किया है। पीड़िता के बयान रिकार्ड में नहीं हैं और गर्भपात से उसकी जान को खतरा है। इस स्थिति में गर्भपात की अनुमति प्रदान नहीं कर सकते हैं।
यह है पूरा मामला
दरअसल, एक जिला न्यायालय के द्वारा दुष्कर्म पीड़िता किशोरी के गर्भपात की अनुमति के लिए हाई कोर्ट को पत्र लिखा गया था। पत्र की सुनवाई संज्ञान याचिका के रूप में करते हुए हाई कोर्ट ने पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट पेश करने के आदेश जारी किए थे। मेडिकल बोर्ड की तरफ से पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया था कि किशोरी की उम्र 15 साल पांच माह है और गर्भावधि 32 सप्ताह से अधिक है। गर्भ में जीवित बच्चे होने के संकेत हैं। हाई रिस्क में गर्भपात किया जा सकता है और बच्चे के जीवित होने पर वह अपरिपक्व होगा। वह मानसिक व शारीरिक रूप से दिव्यांग हो सकता है। इसलिए मां व बच्चे की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए डिलीवरी कराया जाना उचित होगा।
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हाईकोर्ट ने यह कहा
- हाई कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा पारित आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि 24 सप्ताह से ज़्यादा के प्रेग्नेंसी को खत्म करने पर विचार किया जा सकता है।
- इसमें प्रेग्नेंसी खत्म करने के लिए महिला की पसंद और महिला की फिजिकल हेल्थ कंडीशन सहित दूसरे सोशल-इकोनॉमिक फैक्टर देखना आवश्यक है।
- रिकार्ड में पीड़िता के कोई बयान नहीं हैं और उसकी जान के संभावित खतरे को देखते हुए मां ने गर्भपात से इन्कार कर दिया है।
- मेडिकल रिपोर्ट, डाॅक्टरों की राय, पीड़ित की मां के बयान के साथ-साथ पीड़ित की उम्र, भ्रूण और उनकी हेल्थ कंडीशन को देखते हुए प्रेग्नेंसी खत्म करने की इजाजत नहीं दे सकते हैं।
- बच्चे के जन्म के बाद वह ब्रेस्टफीडिंग के लिए मां के कस्टडी में रहेगा।
- इसके बाद संबंधित अधिकारी उसकी कस्टडी लेकर हर सावधानी बरते हुए परवरिश करेंगे। कानून के मुताबिक बच्चे को इच्छुक परिवार को गोद देने के लिए स्वतंत्र होगा।