जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। भारत देश में अक्सर लोग शारीरिक स्वास्थ्य को अंतिम प्राथमिकता में रखते हैं। ऐसे में उपचार की नई तकनीक, नई दवाओं की उन्हें जानकारी नहीं हो पाती है। श्वसन तंत्र संबंधी बीमारियों को लेकर लोगों में जागरूकता का अभाव देखा जाता है। यही वजह है कि संबंधित बीमारियों के उपचार के लिए जो दवाएं दी जाती हैं कई मरीजों में उनकी स्वीकार्यता को लेकर असमंजस की स्थिति रहती है। श्वांस रोगों के उपचार में इनहेलर सटीक व कारगर है। परंतु मरीजों में भ्रांति रहती है कि यह कम असरदार होती है तथा इसकी आदत बन जाती है। लंबे समय तक इनहेलर लेने पर इसे छोड़ना मुश्किल हो जाता है। यह कहना है कि श्वांस एवं छाती रोग विशेषज्ञ डा. दीपक शुक्ला का जिन्होंने नईदुनिया के हेलो डाक्टर कार्यक्रम में पाठकों के सवालों का जवाब दिया।
नईदुनिया कार्यालय में फोन कर पाठकों ने डा. शुक्ला से श्वांस संबंधी बीमारियों को लेकर सवाल पूछे। डा. शुक्ला ने कहा कि निमोनिया जैसी समस्याएं वैक्सीन लगाकर रोकी जा सकती हैं। वैक्सीन के बारे में लोगों को जानकारी नहीं रहती। उन्होंने कहा कि यादा से ज्यादा लोगों में फेफड़े, श्वांस, एलर्जी एवं छाती से संबंधित रोगों के लिए जागरूकता बढ़े इसके लिए नईदुनिया का यह आयोजन कारगर साबित होगा। डा. शुक्ला से जबलपुर समेत कटनी, नरसिंहपुर, दमोह, शहडोल, उमरिया, मंडला, डिंडौरी जिलों से पाठकों ने फोन पर श्वांस संबंधी बीमारियों का समाधान पूछा। डा. शुक्ला ने जोर देकर कहा कि श्वांस रोगों के उपचार में इनहेलर काफी कारगर है। इसके जरिए दवा सीधे वहां दी जाती है जहां तकलीफ हो। इनहेलर को अच्छी आदत की तरह उपयोग करना चाहिए। इसके साइड इफेक्ट न के बराबर हैं। इसकी आदत नहीं लगती तथा दवा के कम डोज में असरदार इलाज होता है। कुछ मरीजों में फेफड़ों की बीमारी लंबे समय तक चलती है ऐसी स्थिति में इनहेलर बहुत कारगर होता है।
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सवाल-सीओपीडी क्या होता है। इसके उपचार के दौरान इनहेलर के साइड इफेक्ट तो नहीं हैं।- अतुल कुमार, डिंडौरी
जवाब-जो व्यक्ति लंबे समय तक धुंए के संपर्क में रहते हैं या धूम्रपान करते हैं, उनमें आगे चलकर श्वांस संबंधी तकलीफ एवं खांसी की शिकायत हो सकती है। यह समस्या किसी खास मौसम में अथवा संक्रमण के कारण अचानक बढ़ जाती है। श्वसन संबंधी समस्याओं में जो दवाएं दी जाती हैं उनमें इनहेलर सटीक व उचित उपचार है। यह दवा को सीधे फेफड़ों तक पहुंचाती है। जिससे दवा के कम डोज में मरीज को अच्छा लाभ होता है। इसे कभी भी छोड़ सकते हैं। सीओपीडी को धुंआ व धूम्रपान के एक्सपोजर को कम कर रोका जा सकता है।
सवाल-दता क्या होता है। निमोनिया, सीओपीडी या कोई अन्य बीमारी है तो उसे हम कैसे समझ सकते हैं। क्योंकि किसी भी कारण से यदि फेफड़ों में तकलीफ होगी तो सांस फूलेगी ही।- पंकज मिश्रा, मंडला
जवाब-दमा, निमोनिया, सीओपीडी कोई भी बीमारी हो, जब प्रकट होती है तो उसके कारण सांस लेने में तकलीफ होती है खांसी आती है। दमा एलर्जिक बीमारी है, जिसमें श्वांस नली में सूजन आ जाती है। यह किसी विशेष मौसम में किसी एलर्जन के एक्सपोजर के कारण होती है। इससे वर्षों तक सांस की तकलीफ रह सकती है। वहीं निमोनिया फेफड़े का संक्रमण है जो अचानक किसी जीवाणु, विषाणु या फंगस के कारण हो सकता है। कुछ एंटीबायोटिक, एंटीवायरल या एंटीफंगल दवाओं से इसे ठीक किया जा सकता है। किसी भी बीमारी को ठीक करने के लिए उसकी सही पहचान आवश्यक है।
सवाल- मैं दो बार कोरोना से संक्रमित हुआ। क्या इसकी वजह से फेफड़ों की बीमारी हो सकती है।- अर्जुन उइके, उमरिया
जवाब-कोरोना संक्रमण से पूर्व सर्दी जुकाम संबंधी समस्याओं में 20 प्रतिशत तक संक्रमण कोविड वायरस के कारण ही होता था। परंतु कोरोना काल में जो संक्रमण हुआ वह काफी तीव्र था। जो मरीज कोरोना से संक्रमित हुए और उन्हें आक्सीजन देनी पड़ी उनमें लंग फाइब्रोसिस जैसी बीमारी देखी जा रही है। सांस लेने में तकलीफ व खांसी की समस्या बनी रहती है। इसे नजरअंदाज न कर चिकित्सीय परामर्श लेना चाहिए।
सवाल- जिन्हें अक्सर खांसी आती रहती है क्या उन्हें टीबी की जांच करानी चाहिए।-अभिलाष कुमार, शहडोल
जवाब-जिस प्रकार हर खांसी में टीबी नहीं होता उसी प्रकार हर टीबी में खांसी नहीं आती। लेकिन जिन मरीजों को फेफड़ों की टीबी हो चुकी है उन्हेंं जब खांसी के साथ बलगम निकले तो जांच करा लेनी चाहिए। ऐसे लोगों में दोबारा टीबी होने की संभावना रहती है।
सवाल-आइएलडी या लंग फाइब्रोसिस क्या होता है, इसका क्या इलाज है।- संतोष ठाकुर, दमोह
जवाब-आइएलडी यानी इंटरस्टीशियल लंग डिसीज ऐसी बीमारी है जिसमें फेफड़े सिकुड़ने लगते हैं एवं सांस लेने में तकलीफ और सूखी खांसी आती है। यह आम समस्या नहीं है। सीटी स्कैन या लंग बायप्सी द्वारा इसका पता लगाया जाता है। बीमारी के प्रकार को देखकर चिकित्सक उपचार का निर्णय लेते हैं।
सवाल-वेंटीलेटर क्या है और किस तरह के मरीजों को इस पर रखा जाता है।-सुशील चौबे, नरसिंहपुर
जवाब-वेंटीलेटर ऐसा उपकरण है जो फेफड़ों में आक्सीजन व कार्बन डाईआक्साइड की मात्रा को नियंत्रित करता है। ऐसे मरीज जिनमें सांस लेने की शक्ति नहीं होती या सांस लेने में तकलीफ होती है अथवा शरीर में कार्बन डाईआक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है उन्हें वेंटीलेटर की आवश्यकता होती है।
सवाल-नेबुलाइजेशन क्या होता है। यह मरीज को किस तरह फायदा पहुंचाता है।-वीरेंद्र सिंह, पाटन
जवाब-इसके द्वारा दवा को आसानी से सीधे फेफड़ों तक आसानी से पहुंचाई जा सकती है। इस प्रक्रिया में दवा लिक्विड से गैस में परिवर्तित हो जाती है और सांस द्वारा फेफड़ों तक जाती है, जिससे मरीज को तुरंत आराम मिलता है।
सवाल-फेफड़े की बीमारियों का पता लगाने के लिए किस तरह की जांच की जाती है।-मुकेश तिवारी, कटनी
जवाब-फेफड़े की जांच के लिए अलग-अलग सुविधाएं हैं। एक्सरे, ब्रांकोस्कोपी, थोरेस्कोपी, ईबस, सीटी स्केन, पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट, एलर्जी टेस्ट आदि के द्वारा फेफड़े की बीमारियों का पता लगाया जा सकता है। जांचों की सलाह चिकित्सक द्वारा दी जाती है।
सवाल- इनहेलर का लगातार उपयोग करने से इसकी आदत लग सकती है क्या। एक बार इनहेलर शुरू किया तो क्या बाद में इसे बंद नहीं कर सकते।-नवीन जैन, शास्त्री नगर
जवाब- इनहेलर के जरिए दवा सीधे वहां दी जाती है जहां तकलीफ हो। इनहेलर को अच्छी आदत की तरह उपयोग करना चाहिए। इसके साइड इफेक्ट न के बराबर हैं। इसकी आदत नहीं लगती तथा दवा के कम डोज में असरदार इलाज होता है। कुछ मरीजों में फेफड़ों की बीमारी लंबे समय तक चलती है ऐसी स्थिति में इनहेलर बहुत कारगर होता है। इनहेलर से दवाएं फर्स्ट लाइन थेरेपी के रूप में दी जाती हैं।
सवाल-मौसम बदलने के समय गले में संक्रमण होता है। ठंड में तकलीफ बढ़ जाती है। खटाई का सेवन करने पर ज्यादा परेशानी होती है।- दीपक चंदेले, अधारताल
जवाब- जब मौसम बदलता है तो विषाणु की प्रजनन क्षमता बढ़ जाती है। विषाणु वातावरण में ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं। इसकी वजह से गले में संक्रमण, बुखार, सर्दी जुकाम होता है। बचाव के लिए इंफ्लुएंजा का टीका बहुत कारगर है। छह माह के बच्चे से लेकर उम्र दराज लोगों के लिए यह फायदेमंद होता है। नमक पानी का गरारा व भाप का फव्वारा फायदेमंद होता है।