उज्जवल शुक्ला, नईदुनिया, जबलपुर (Jabalpur News)। जिला छोटा होने से काम-काज बेहतर होता है लेकिन 500 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होता है सुविधाएं जुटाने पर। मध्य प्रदेश में नए जिले बनाने का दौर क्या चला कि अब कई सामाजिक संगठन और नेता अपने-अपने शहरों को जिला बनाने के लिए सरकार से मांग करने लगे हैं। इन्हीं में अब छिंदवाड़ा जिले के जुन्नारदेव को भी जिला बनाने की चर्चा तेज हो गई है।
मध्य प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव के पूर्व ही कुछ जिलों का गठन किया गया था। उस समय आलम यह था कि 40 दिन में ही राज्य में चार नए जिले बनाने की घोषणा हुई थी। जिला बनाने में अग्रणी मुख्यमंत्रियों में राजस्थान के अशोक गेहलोत के बाद मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम आता है।
शिवराज सिंह ने अपने कार्यकाल में निवाड़ी, नागदा, मऊगंज जैसे कई जिले बनाने की घोषणा की थी। उत्तर प्रदेश के बाद मध्य प्रदेश क्षेत्रफल और जिलों की संख्या, दोनों ही दृष्टि से देश का दूसरा बड़ा राज्य बन गया है। अब सवाल यह है कि क्या कर्ज में डूबा मध्य प्रदेश नए जिलों का आर्थिक बोझ उठा पाने में सक्षम है?
इस समय मध्य प्रदेश पर लगभग 4.38 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। प्रदेश में अभी करीब एक दर्जन से अधिक जिलों की मांग उठ रही है। विशेषज्ञों की मानें तो एक जिले के गठन पर 500 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आता है।
मध्य प्रदेश के गठन के समय वर्ष 1956 में 43 जिले थे। वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विभाजन के बाद प्रदेश में 45 जिले थे। अब जुन्नारदेव को 56वां जिला बनाने की कवायद शुरू हो गई है। यानी पिछले 24 साल में 10 नए जिले बनाए जा चुके हैं और 11वें की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
जानकारों की मानें तो अधिकांश जिलों का गठन वोट बैंक और चुनावी लाभ के लिए किया जाता है। छोटे जिलों में प्रशासनिक कामकाज जल्दी और बेहतर जरूर होता है, कानून-व्यवस्था पर नियंत्रण रखना आसान होता है, पर यह भी सही है कि नए जिले बनने से सरकार के खजाने पर बोझ भी बढ़ता है।
एक सेवानिवृत्त आइएएस बताते हैं कि नए जिले से लाभ केवल यह होता है कि लोगों को काम के लिए दूर नहीं जाना पड़ता, लेकिन आज के जमाने में यातायात काफी सुगम हो गया है, ऐसे में जिला बनाने का यह आधार नहीं हो सकता है।
जिला बनाने के पीछे राजनीतिक मंशा ज्यादा होती है। वे कहते हैं कि जिला बनाने की घोषणा करते समय सरकार यह भूल जाती है कि आपको कलेक्ट्रेट और कई प्रशासनिक भवन बनाने पड़ेंगे, नए जिले बनाने से खर्च बढ़ना निश्चित है।
दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी कहा था कि नए जिले मामूली राजनीतिक लाभ देते हैं, लेकिन खजाने को बड़ा नुकसान पहुंचाते हैं। सही तो ये होगा कि जिलों का गठन सिर्फ सियासी लाभ के लिए नहीं हो, वाकई जब इसकी जरूरत हो तो ही किया जाए।
हम मध्य प्रदेश की बात करें तो यहां पर चुनाव से पहले जनता की मांग पर नए जिलों के गठन की घोषणा करने की एक परंपरा सी बन गई है। वोट बैंक और लोगों को खुश करने के लिए राजनीतिक दल नए जिलों के गठन की घोषणा करते हैं।
चुनावी साल में सरकार नए जिलों के गठन का ऐलान तो कर देती है, पर वहां पर आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। न तो वहां पर विभाग, न दफ्तर, न सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं, ऐसे में स्थानीय जनता को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
विधानसभा चुनाव के पहले पांढुर्ना को जिला बनाकर कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक की नियुक्ति तो कर दी गई, लेकिन जितने भी छोटे सरकारी काम हैं, वह अभी छिंदवाड़ा मुख्यालय से ही संचालित किए जा रहे हैं। अधिकारी कर्मचारी के मुख्यालय छिंदवाड़ा में ही हैं।
पांढुर्ना में सरकारी अमला और उन्हें बैठने के लिए अभी भवनों की व्यवस्था भी नहीं की गई है। ऐसे में सरकार को कोई भी नए जिले को बनाने से पहले वहां पर पूरी सुविधाएं उपलब्ध कराना चाहिए।
नए जिलों के गठन पर भारी-भरकम खर्च को अनदेखा भी कर दें, तब भी प्रशासनिक ढांचे का एकमात्र आधार राज्य हित या जनहित ही होना चाहिए। नए जिले-तहसील आदि के गठन की एक स्पष्ट प्रक्रिया निर्धारित की जानी चाहिए। तभी वोटबैंक या चुनावी राजनीति से प्रेरित इस प्रवृत्ति पर अंकुश लग पाएगा।
शिवराज सरकार में नागदा और चाचौड़ा को जिला बनाने की घोषणा की जा चुकी है, पर ये जिले अभी अस्तित्व में नहीं आए है। मध्य प्रदेश में कई नए जिलों के गठन की मांग बढ़ रही है। सिहोरा, बड़वाह, सोनकच्छ, सिरोंज, बीना, कन्नौद, खातेगांव, बागली, जावरा सहित कई तहसीलों को जिला बनाने की मांग लंबे समय की जा रही है।