कालम- जनता के रखवाले, रामकृष्ण परमहंस पांडेय। गोवंश के चार तस्करों ने जब मुंह खोलना शुरू किया तो पुलिस को अच्छा खासा भविष्य नजर आया। थाने के दो जवान उन लोगों की धरपकड़ में जुट गए जिनके तार तस्करों से जुड़े थे। वसूली अभियान शुरू हुआ तो कारोबारी परेशान होने लगे। जिसके बाद उन्होंने वसूलीबाज जवानों को सबक सिखाने का मन बना लिया। इस बीच वसूलीबाजों ने भी अपना नेटवर्क तैयार कर लिया था। उन्हें भनक लग गई कि लेनदेन करते हुए कभी भी शिकंजे में आ सकते हैं। जिस दिन उन पर शिकंजा कसना था वे इधर-उधर भागते फिरे। अंतत: अब तक बचने में कामयाब रहे। शहर के एक थाने के टीआइ के डीएसपी बनने के बाद दूसरे थाने से स्थानांतरित होकर पहुंचे थाना प्रभारी के दोनों जवान आंख-कान बताए जा रहे हैं। इनमें से एक उप निरीक्षक हैं जिन्होंने ग्रामीण थाने में पदस्थापना के दौरान खूब चांदी काटी थी।
कमाई का कोई जरिया नहीं छोड़ते दोनों साहब: प्रतिनियुक्ति पर आए दो डाक्टर मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान चिकित्सा विश्वविद्यालय में चर्चा का विषय बने हैं। चर्चा इसलिए हो रही है कि दोनों कमाई का कोई जरिया नहीं छोड़ते। रसिक मिजाज एक डाक्टर सुबह विश्वविद्यालय पहुंचते हैं और कुछ देर बाद क्लीनिक चले जाते हैं। मरीजों की नब्ज टटोलकर कमाई करने के बाद कार्यवाहक कुलपति के विश्वविद्यालय पहुंचने तक सीट पर वापस आ जाते हैं। दूसरे डाक्टर साहब भी किसी बहाने निकल जाते हैं और बच्चों का इलाज करते हैं। पहले वाले अपनी क्लीनिक पर दो दूसरे अपने घर पर विश्वविद्यालय के कामकाज से होने वाली अतिरिक्त आय के लिए सौदेबाजी करते हैं। विश्वविद्यालय के कर्मचारी कहते हैं कि पहले वाले डाक्टर साहब जिस अस्पताल को छोड़कर आए हैं, वहां निजी प्रेक्टिस करने की अनुमति नहीं थी। प्रतिनियुक्ति पर चिकित्सा विश्विविद्यालय आने के बाद चारों तरफ से कमाई करने का मौका मिल रहा है।
इतना दबाकर खाया कि सेहत बिगड़ी, गए छुट्टी पर: ग्रामीण थाने से हटाकर लाइन हाजिर किए गए एक निरीक्षक को लेकर तरह-तरह की बातें हो रही हैं। कोई कहता है कि थाना प्रभारी रहते इतना दबाकर खाया कि हजम नहीं कर पा रहे और सेहत बिगड़ गई। सेहत को दुरुस्त करने में ऐसे लगे हैं कि वीवीआइपी ड्यूटी में भी नजर नहीं आते। इसी शहर में पले बढ़े निरीक्षक जहां भी रहे चर्चा ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। ग्रामीण थाने की कमान मिली तो एक दबंग के फार्म हाउस से थाना चलाने लगे। वहीं से रेत का हिसाब-किताब रखते। यह चर्चा भी होने लगी थी कि वे स्वयं रेत का कारोबार करने लगे हैं। कप्तान ने नजरें तरेरीं और उन्हें थाने से हटा दिया। लाइन हाजिर होते ही बीमार हो गए। उनकी मनगढंत बीमारी की भनक कप्तान को लग गई है। अनुपस्थित मानकर वे कार्रवाई करने की तैयारी में हैं।
कमीशन के खेल में मरीज से किया छलावा: कमीशन के खेल में मरीजों को ठगने का नया खेल एक अस्पताल में शुरू हुआ है। शहर के नामी डाक्टर के नाम पर उपचार कराने का झांसा देकर मरीज को भर्ती कर दिया जाता है, बाद में पता चलता है वे डाक्टर अस्पताल आते ही नहीं। इस खेल में अस्पताल प्रबंधन और एम्बुलेंस चालक मुख्य भूमिका में रहते हैं। ताजा मामला माढ़ोताल स्थित संस्कारधानी अस्पताल में सामने आया। ह्दय रोग विशेषज्ञ डा. पुष्पराज पटेल से इलाज कराने के नाम पर दमोह से आए एक मरीज को भर्ती कर दिया गया। 63 साल के इस वृद्ध मरीज व स्वजन की इच्छा थी कि डा. पटेल नब्ज टटोलने आएं। उन्हीं के नाम पर वे दमोह से आए थे। एम्बुलेंस चालक ने निजी अस्पताल पहुंचाते समय बताया कि डा. पटेल यहीं आते हैं। तीन-चार दिन तक डा. पटेल नहीं पहुंचे तो स्वजन को माजरा समझ में आ गया।