नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। एक लाख लोगों में बमुश्किल एक व्यक्ति को होने वाले एक दुर्लभ रोग से पीड़ित एक 14 वर्षीय बालिका की नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल काॅलेज में सफल सर्जरी हुई। सिहोर जिले के रहने वाली इस बालिका के हाथ-पैर की शक्ति लगातार क्षीण हो रही थी। कुछ माह से वह हाथ उठा तक नहीं पा रही थी। पीड़ा बढ़ने पर गत माह स्वजन उसे भोपाल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान लेकर गए। जहां, जांच में बालिका सर्वाइकल आर्टिरिवेनस मालफोर्मेशन रोग से पीड़ित मिली।
प्रारंभिक उपचार के बाद एम्स ने पीड़ित को आगे के उपचार के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल काॅलेज रेफर कर दिया। मेडिकल काॅलेज के सुपरस्पेशलिटी हास्पिटल में जांच में पाया गया कि बालिका को तुरंत सर्जरी की आवश्यकता है। न्यूरो रेडियोलाजी विभाग के डाॅ. निष्ठा यादव और डाॅ. केतन हेडू की टीम ने गत सप्ताह बालिका की जटिल सर्जरी को सफलतापूर्वक किया। स्वस्थ होने पर बालिका को अब डिस्चार्ज कर दिया गया है।
गर्दन में नसों का गुच्छा था, रीढ़ की हड्डी पर दबाव बढ़ा रहा था
हाॅस्पिटल के न्यूरो रेडियोलाजी विभाग में विशेषज्ञ डाॅ. निष्ठा यादव ने बताया कि बालिका की गर्दन में नसों का गुच्छा बन गया था, जिसके कारण उसकी रीढ़ की हड्डी के अंदर दबाव बढ़ रहा था। इसके कारण उसे हाथ-पैर में कमजोरी महसूस हो रही थी। दोनों हाथ ने प्राय: काम करना बंद कर दिया था। इनती दुर्बलता आ गई थी वह हल्का सामान तक नहीं उठा पा रही थी। इस रोग को समझना और उपचार कठिन होता है। यह रोग बालिका को जन्मजात था। यह हास्पिटल में पहला मामला था। सर्जरी काफी जटिल थी, जिसे टीम ने सफलतापूर्वक किया। यह एक दुर्लभ रोग है, जो अनुवांशिक या फिर कुछ सिंड्रोम के कारण होता है।
लकवा होने की रहती है आशंका
चिकित्सकों के अनुसार बालिका जिस रोग से पीड़ित थी वह नसों की संरचना में असंतुलन के कारण उसके आपस में उलझने से होती है। बच्ची के गर्दन के पास नसों का गुच्छा उलझकर आपस में जुड़ गया था। रक्त को ले जाने और लाने वाली धमनियां आपस में जुड़ गई थी। एंबोलिजेशन के माध्यम से ग्लू जैसा पदाथ नसों के गुच्छों तक पहुंचाकर उन्हें सुखा दिया गया। इस प्रक्रिया में पैर में छोटा सा चीरा लगाकर कैथेटर के माध्यम से चिकित्सकीय तरल पदार्थ को निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचाना जटिल होता है। मामूली चूक होने पर भी पीड़ित को लकवा होने का खतरा रहता है।
आयुष्मान योजना में नि:शुल्क उपचार
ऐसे दुर्लभ रोगियों का सामान्यत: नई दिल्ली एम्स, चंडीगढ़ पीजीआइ और बैंगलुरू के एनआइएमएचएएनएस जैसे चिकित्सा संस्थानों में उपचार होता है। ऐसे में एम्स से रेफर होकर आए मामले में बालिका के उपचार पर मेडिकल कालेज के अधिष्ठता डाॅ. नवनीत सक्सेना और सुपरस्पेशलिटी हाॅस्पिटल के डायरेक्टर डाॅ. अवधेश प्रताप सिंह कुशवाहा ने निरंतर नजर रखी।
डाॅयरेक्टर डा. कुशवाहा के अनुसार ऐसी दुर्लभ बीमारी के उपचार पर निजी अस्पतालों में मरीज के लाखों रुपये व्यय होते है। हाॅस्पिटल में आधुनिक सुविधा और कुशल चिकित्सक उपलब्ध होने से मरीजों को बड़े शहर और निजी अस्पताल जाने की आवश्यकता नहीं है। आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत बालिका की नि:शुल्क सर्जरी की गई है।