जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। सरकारी कॉलेज में अनुपयोगी सामग्री परेशानी बन रही है। इनका रखरखाव ही सालाना लाखों रुपये का पड़ रहा है। कॉलेज प्रबंधन के पास पर्याप्त कक्ष नहीं है लेकिन कबाड़ को रखने के लिए कई कमरे आरक्षित करने पड़े हैं जबकि कक्षाओं में बैठक के लिए कमरों की आवश्यक्ता बनी हुई है। इधर नियमों के पेंच की वजह से प्राचार्य चाहकर भी कबाड़ को बेचने का अधिकार नहीं ले पा रहे हैं।
क्या है मामला: सरकारी कॉलेजों में एक साल में प्राचार्य सिर्फ पांच हजार रुपये कीमत की सामग्री को कबाड़ घोषित कर सकता है। ये राशि की गणना वस्तु के खरीदी के आधार पर तय होगी। अब कार,ब्लेक बोर्ड,टेबिल-कुर्सी, कम्प्यूटर, फ्रिज, कूलर, टीवी, एलईडी, कैमरा समेत कई तरह की सामग्री अनुपयोगी समय के साथ होती जा रही है। इन्हें भंडार में कबाड़ के तौर पर जमा किया गया है। एक-एक कॉलेज में कई टन कबाड़ जमा हो चुका है। अब साल में सिर्फ पांच हजार रुपये की कीमत का सामान कबाड़ घोषित करने में एक कुर्सी या टेबिल ही बमुश्किल कबाड़ के तौर पर चिन्हित होती है कम्प्यूटर, प्रिंटर, फोटोकापी मशीन जैसे महंग उपकरण सालों बाद भी प्राचार्य के अधिकार से बाहर होते हैं।
इससे ज्यादा राशि का कबाड़ घोषित करने का अधिकार आयुक्त स्तर पर होता है। जिनके पास प्रस्ताव बनाकर भेजा जाता है जहां से मंजूरी मिलने पर ही पांच लाख रुपये कीमत की सामग्री को कबाड़ घोषित किया जा सकता है। शासकीय साइंस कॉलेज,महाकोशल कॉलेज,होमसाइंस कॉलेज,मानकुंवर बाई महिला कॉलेज समेत कई कॉलेजों में अनुपयोगी सामग्री का अंबार लगा हुआ है।
कक्षाएं पड़ रही कम: कबाड़ काफी तादात में रखा होने की वजह से कई कमरों में इसे सुरक्षित ढ़ंग से रखा गया है ताकि कोई इसे ले न जाए। इस दौरान कई कॉलेजों में सीट बढ़ने की वजह से विद्यार्थी अधिक हो गए है जिन्हें बैठाने के लिए अलग कक्ष की आवश्यक्ता है लेकिन कबाड़ भरा होने के कारण कमरे नहीं मिल पा रहे हैं।
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कॉलेजों में उपकरण महंगे होते हैं जो कई साल बाद अनुपयोगी होते हैं लेकिन प्राचार्य के पास सालाना पांच हजार रुपये की सामग्री को ही अनुपयोगी करने का अधिकार है इसलिए मुश्किल होती है।
एएल महोबिया, प्राचार्य शासकीय साइंस कॉलेज