जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। राग-द्वेष सभी मोक्ष मार्ग में बाधक हैं। राग, द्वेष, बैर, पाप और अभिमान को छोड़कर ही मोक्ष मार्ग पर चला जा सकता है। किसी के प्रति विद्वेष नहीं रखना चाहिए जो आपके बैरी है उनके प्रति भी प्यार से देखा जाए तो सब कुछ बदल जाएगा। यदि आप किसी भी प्रकार से राग- द्वेष से ऊपर उठ जाते हैं, यही वीतराग है। उक्ताशय के प्रवचन आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने मंगलवार को व्यक्त किए।
दयोदय तीर्थ तिलवारा में चल रहे चातुर्मास में आचार्यश्री ने कहा कि हम क्यों सोचें कि यह हमारा बैरी है, वह हमारा बैरी है तो हम सबको अपना बैरी मानकर अपनी धारणाएं बनाते हैं। जबकि हमें सदा सब अच्छे हैं सब हमारे हैं कि धारणा रखना चाहिए। तभी हम मोक्ष मार्ग की ओर चल सकते हैं।
बैर और मित्रता दोनों अलग : आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा एक मां के सामने बच्चा रो रहा था , मां भी परेशान थी कि कैसे अपने काम को निपटाए बच्चे को मनाने के लिए उसने कुछ खिलौने दे दिए और अपने काम पर चली गई तभी बिल से निकलकर एक काला सांप बच्चे के सामने आ गया, अनजान बच्चा उसे भी खिलौना समझकर खेलने लगा बच्चे के निर्मल भाव से सांप भी बिना कोई कष्ट दिए बच्चे के साथ उसी तरह खेल रहा था जैसे साथी हो। मां ने देखा बच्चे के सामने एक भीषण नाग फन फैलाए बैठा है, मां क्या करें बच्चे को कैसे सुरक्षित रखें मां को यह विश्वास नहीं होता कि अभी तक जब सांप ने बच्चे को कुछ नहीं किया तो आगे भी नहीं करेगा, उसे नहीं मालूम कि दुनिया में बैर और मित्रता क्या होती है मित्रता एक अलग वस्तु होती है जो निर्मल भाव से चलती है, इसमें राग द्वेष नहीं होता मां के पास एक बाल्टी थी जिसमें पानी था सांप से बच्चे को बचाने के लिए मां ने पानी बहा दिया सांप भी बह गया और अपने बिल में चला गया, तुरंत मां ने अपने बच्चे को सुरक्षित अपनी गोद में उठा लिया, बच्चा परेशान था कि उसका खिलौना चला गया। सर्प ने सोचा कि मुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया इसलिए वह अपने स्थान पर चला गया और मां को अपना बच्चा सुरक्षित मिल गया, रक्षा करना एक धार्मिक उपाय है, मां घबराती रही कि आज उसने मृत्यु के साक्षात दर्शन किए, वह सो नहीं पाई हर वक्त डर और दहशत में रही और बुरा-बुरा सोचती रही। जबकि सांप ने कुछ नहीं किया लेकिन आपके मन मे बुरे विचार आते रहे, ऐसा नहीं करना चाहिए हर वक्त बुरा नहीं सोचना चाहिए।