Jabalpur News : जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। शहर का गुरंदी बाजार अपने आप में बिल्कुल अलग है। इस बाजार को धुंधलके से झांकती उम्मीदों का बाजार भी कहा जाता है। लोग अपने जरूरत की वस्तु को ढूंढ़ते हुए जब हर तरफ से निराश हो जाते हैं तो अपनी तलाश को पूरा करने यहां का रुख करते हैं। लोगों का मानना है कि यहां नई तो नहीं लेकिन काम चलाने के लिए पुरानी चीजें प्राय: मिल ही जाती हैं।
विशेष रूप से वाहनों के पुराने पार्ट्स, इलेक्ट्रानिक एवं इलेक्ट्रिकल्स के पार्ट यहां थोड़ी देर के भटकाव के मिल जाते हैं। गुरंदी की यह विशेषता अंग्रेजों के समय से अब तक बरकरार है। इस बाजार में हर तरह का पुराना सामान, उनके पार्ट उपलब्ध हो जाते हैं। सभी किस्म की चीजों के बाजार में अलग-अलग क्षेत्र बंटे हैं। लकड़ी और लोहा के खिड़की-दरवाजों के लिए अलग गली है। जबकि मोटर पार्ट्स के लिए अलग। मोटर पार्ट्स भी दोपहिया वाहनों के अलग स्थान पर मिलते हैं, जबकि तिपहिया या चारपहिया वाहनों के अलग स्थान पर।
यहां मिलने वाली चीजें नई नहीं होतीं, लेकिन उनकी कंडीशन अच्छी होती है। संबंधित वस्तु की कंडीशन और माेलभाव के आधार पर दाम तय होता है। इस बाजार में कारोबार करने वाले जितने हाेशियार होते हैं, उतने चतुर यहां सामान खरीदने के लिए आने वाले भी होते हैं। दोनों ही साम्य के उस बिन्दु तक पहुंच जाते हैं जहां दोनों को संतुष्टि हो। यहां कारोबार करने वाले अब्दुल शहजाद कहते हैं कि उनकी उम्र 57 साल है। वाे तब से यहां दुकान में बैठ रहे हैं, जब उनकी उम्र आठ साल रही। इस दौरान उन्होंने कभी इस बाजार से हटकर कोई अन्य कारोबार करने के बारे में सोचा तक नहीं।
गुरंदी बाजार में इलेक्ट्रिक-इलेक्ट्रािनिक्स और मोटर पार्ट्स के अलावा अन्य प्रकार की चीजें भी सड़क किनारे बिकती मिल जाएंगी। बड़े-बड़े लेखकों-उपन्यासकारों की किताबें यहां ढूंढ़ने पर मिल सकती हैं। वह भी बहुत ही कम दामोंं पर। ऐेसे ही वो सामान जो बहुत पुराना हो चुका हो या जो प्रचलन से बाहर होने की कगार पर हो- वो यहां बल्क में मिल जाता है। यहां के बाजार में नए और पुराने कपड़ाें के भी लाट लगते हैंं, जिनका न तो बहुत ज्यादा मोल होता है और न ही बहुत ज्यादा चलने की गारंटी। यहां मिलने वाले सामान को लेकर लोगों का ऐसा भी कहना रहता है कि ‘चल गया तो चांद तक, नहीं तो फिर शाम तक।’
दोपहिया वाहनों के पुराने टायर, व्हील, रिम, ब्लाक सहित अन्य पार्ट्स की यहां जमकर पूछ परख रहती है। बहुत से लोग बाजार के दाम से बहुत कम दाम होने की वजह से यहां आते हैं, तो अनेक लोग ऐसे भी होते हैं, जिनको पुराने वाहनों के पार्ट जब कहीं नहीं मिलते तो वो धुंधलाती उम्मीदों के साथ यहां का रूख करते हैं। अक्सर उनकी उम्मीदें पूरी हो जाती हैं, तो कभी उन्हें अपनी तलाश को पूरा करने के लिए एक से अधिक बार चक्कर लगाना पड़ता है।
गुरंदी बाजार के लिए कहा जाता है कि जो एक बार यहां की तासीर को समझ जाता है वो यहां से खुद को अलग नहीं कर पाता। फिर चाहे वो ग्राहक हो या दुकानदार। यहां कारोबार करने को वालों को उस समान का कुछ न कुछ मोल मिल जाता है, जिसे कबाड़ के रूप में ही बेचा जा सकता है। इस तरह से ग्राहक को भी पता होता है कि उसे बाजार से बहुत कम दाम पर काम चलाने के लिए जरूरत की चीज मिल रही है।
इतिहास के आईने में जब भी ठगों की बात होती है तो कर्नल स्लीमन का नाम जेहन में आ जाता है। ठग जिन्हें गुरंदे भी कहा जाता है। उनके आतंक को समाप्त करने स्लीमन ने ठगों काे बड़ी संख्या में फांसी पर लटकवाया, वहीं जो सुधरने योग्य थे, उनका पुनर्वास करने और उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने गलगला तालाब को पूरकर बाजार बनवाया, जिसमें गुरंदों के कारोबार की व्यवस्था की गई। बताते हैं कि अंग्रेजों को भी जब किसी मोटर पार्ट या किसी ऐसी वस्तुत की जरूरत होती थी, जो और कहीं नहीं मिलती थी, तो वे भी गुरंदों (ठगों) के इस बाजार में आया करते थे।कहा जाता है कि गुरंदों के पुनर्वास की दिशा में किए गए इस प्रयास में ठगों व उनके बच्चों की जीविका के अन्य साधन जुटाने के लिए स्लीमन व कैप्टन ब्राउन ने 1838 में स्कूल आफ इंडस्ट्री अर्थात दरीखाना नाम संस्था आरंभ की थी। इसके पीछे उद्देश्य यह रहा कि गुरंदे व उनके परिवार के सदस्य विभिन्न प्रकार के रोजगार और उद्योग-धंधों को प्रशिक्षण प्राप्त कर सम्मानपूर्वक जीवन यापन कर सकें।