जबलरपुर, नईदुनिया रिपोर्टर। मध्यांचल समाजशास्त्र परिषद ने महिला दिवस के उपलक्ष्य में, महिला नेतृत्व के उभरते प्रतिमान विषय पर एक आनलाइन संगोष्ठी की। इसके शुरूआत में ध्रुब कुमार ने बताया कि भारतीय वीरांगना पन्ना धाय के त्याग बलिदान शौर्य को कौन नही जानता। पन्ना धाय ने राष्ट्रधर्म को प्राथमिकता देते हुए राजकुमार उदयवीर के प्राणों की रक्षा के लिए अपने पुत्र का अपनी आँखों के सामने बलिदान होते देखा।इसी ममतामयी, राष्ट्रधर्मी पन्ना धाय का जन्म आठ मार्च 1490 है।पन्ना धाय की सच्ची श्रद्धांजलि ही महिला दिवस की सार्थकता है।
महिला दिवस की शुरूआत 1908 में क्लाटा जेटकिन के नेतृत्व में न्यूयार्क की सड़कों पे आठ मार्च 1908 को 15000 महिलाओं के प्रदर्शन से मानी गई हैं। इनकी मांगे थी काम के घंटे कम करो, वेतन वृद्धि, मताधिकार दो।
संगोष्ठी में पहला शोध पत्र दमोह की शिवानी रॉय ने प्रस्तुत करते हुए कहा कि आठ मार्च आंदोलन का प्रतीक है। समानता का उत्सव है। सतना की स्वाति शुक्ला ने सायबर अपराध की चर्चा करते हुए कहा कि स्टॉडिग, फिशिंग, प्रोनोग्राफी, बुलिंग, मॉर्फिंग आदि समाज में बढ़ रहे हैं। जिनसे महिलाओं को सतर्क रहना होगा।जामिया मिलिया दिल्ली के अनिल बिट्टू ने बताया कि जिन देशों का नेतृत्व महिलाओं के हाथों में है। वहां कोरोना से बचाव का प्रबंधन बहुत उम्दा रहा है। जर्मनी, नार्वे, डेनमार्क, ग्रीस,ताइवान में कोरोना प्रबंधन उम्दा था ।कार्ल मार्क्स ने भी कहा था आधा आसमान तो महिलाओं ने ही सम्भाल रखा है।
भोपाल की सविता सिंह ने अपने शोध पत्र में बताया कि मैरिड वुमन सकारात्मक व्यवहार करती हैं।टी आर एस कॉलेज, रीवा के ड्रा अखिलेश शुक्ला ने महिला और पुरूष पुलिस कर्मियों के रीवा के अध्ययन के आधार पर बताया कि अब सोच बदल रही हैं, पहले महिला पुलिस कर्मी को मह्त्व नही दिया जाता था, लेकिन आज महिलाओं को योग्य, संवेदनशील, धर्य, का प्रतीक माना जा रहा है।
मध्यांच चल के अध्यक्ष डॉ.महेश शुक्ला ने कहा कि आठ मार्च ही नही 365 दिन महिलाओं के हैं। महिलाएं घर और समाज को एक साथ संवारती हैं। इस संगोष्ठी में 17 शोध पत्र आनलाइन प्रस्तुत किये गए।संगोष्ठी का संचालन विजय दीक्षित ने किया।