देवशंकर अवस्थी, जबलपुर
प्राकृतिक आपदा विशेषकर बाढ़ के प्रकोप से महाकोशल अंचल प्रायः सुरक्षित ही रहा। पिछले सौ सालों की तस्वीर देखें तो एक-दो बार ही लोगों को जानमाल का नुकसान हुआ है। इसके अलावा छुटपुट बाढ़ अथवा लोगों की स्वयं की गलती के कारण ही घटनाओं का बड़ा रूप सामने आया है। बाढ़ का व्यापक रूप 1926 में सामने आया था, जिसकी विकरालता आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
नर्मदा में आई बाढ़ से मंडला से लेकर जबलपुर तक दो सैकड़ा से अधिक गांव बह गए थे। बाढ़ से सबसे ज्यादा तबाही मंडला में हुई थी। सिर्फ मंडला में ही 195 मौतें हुई थीं। मंडला से लेकर जबलपुर के बीच कितने जानमाल की हानि हुई इसका कोई लिखित प्रमाण तो नहीं है लेकिन बताते हैं कि करीब दो दर्जन से अधिक तटीय गांव नर्मदा की अथाह जलराशि में समा गए थे। इन गांवों के कई लोग बाढ़ में बह गए थे, जबकि मवेशियों की तो कोई गिनती ही नहीं।
जलप्रलय के वो तीन दिन
19-20 और 21 सितम्बर 1926 के इन तीन दिनों में बाढ़ ने मंडला और उसके निचले इलाकों में स्याह इबारत लिख दी थी। मंडला के बुजुर्ग एवं गोंडी पब्लिक ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी गिरिजाशंकर अग्रवाल बताते हैं कि यह वाक्या उन्होंने अपने बुजुर्गों से सुना था। 19 सितम्बर से पहले मंडला में डोल एकादशी की शोभायात्रा को लेकर दो समुदाय के बीच विवाद चल रहा था। गुलामी का दौर था, लिहाजा अंग्रेजी हुकूमत विवाद को सुलझाने के बजाय आग में घी डालने का काम कर रही थी। विवाद को शांत करने लोग तरह-तरह के जतन कर रहे थे।
समय के करीब आते-आते तनाव बढ़ता ही जा रहा था कि 19 सितम्बर 1926 की सुबह से मंडला और डिंडौरी क्षेत्र में तेज बारिश शुरू हो गई। बारिश ऐसी कि थमने का नाम न ले। शाम होने तक हालात बिगड़ने लगे। रात में भी बादलों ने चैन नहीं ली। दूसरे दिन 20 सितम्बर को नर्मदा में जैसे पानी का सैलाब आ गया। शहर से लगे बाहर की खाई मुहल्ला और लालीपुर में बाढ़ ने कहर ढा दिया। नर्मदा के पूर में लोगों की गृहस्थी का सामान, मवेशी और मकान के बांस-बल्ली बह रहे थे। मंडला तो जैसे टापू बन गया। चारों तरफ पानी ही पानी था। नदी का पाट मीलों लम्बा हो गया था। लोग जान बचाने उᆬंचे पहाड़ी इलाकों में जा चुके थे।
बाढ़ की विनाशलीला थमने का नाम नहीं ले रही थी। हर तरफ लोगों व मवेशियों के शव पानी में उतरा रहे थे। 21 सितम्बर का दिन भी ऐसा ही रहा, सिर्फ रुक-रुककर होती तेज बारिश और बढ़ता बाढ़ का प्रकोप। 22 सितम्बर को पूर कुछ कम हुआ, तब तक खाई मुहल्ला में 113, जबकि लालीपुर में 82 मौतें हो चुकी थीं। डिंडौरी से मंडला तक करीब 160 गांव बाढ़ की भेंट चढ़ चुके थे।
मंडला से जबलपुर तक विनाशलीला
बाढ़ ने मंडला से लेकर जबलपुर तक तट पर बसे दो दर्जन गांवों में भारी विनाशलीला मचाई। बहुत से लोगों ने पहाड़ों की शरण ली, जबकि बहुत से लोग बाढ़ में बह गए। सैकड़ों गांवों के मवेशियों के शव बाढ़ में बहते देखे गए। सगड़ा निवासी बुजुर्ग दुक्खीलाल पटेल ने बताया कि उनके सयाने बताते रहे कि बाढ़ से शाहनाला का मंदिर डूब गया था।
बरगी हिल्स कॉलोनी से लेकर तिलवाराघाट तक नर्मदा का पाट करीब सवा किलोमीटर लम्बा हो गया था। तिलवाराघाट के लोगों को गांव की पहाड़ी में रहना पड़ा। नर्मदा के तेज बहाव में कई जीवित लोग खटिया अथवा बल्लियों के सहारे बाढ़ में बहते हुए जान बचाने की गुहार लगाते रहे।
हिरन के तीखे तेवर
जबलपुर के आसपास की नदियों में हिरन नदी भी कई बार तीखे तेवर दिखा चुकी है। एक दशक पहले भी हिरन में आई बाढ़ से सिंगलदीप के आसपास कई गांवों में लबालब पानी भरने से लोगों को काफी क्षति हुई थी। हां, 1926 की बाढ़ को छोड़ दिया जाए तो महाकोशल की भौगोलिक संरचना ऐसी है कि बाढ़ जैसी आपदा से लोग शुरू से ही सुरक्षित रहे।