Railway Safety: अतुल शुक्ला, जबलपुर। रेलवे ने यात्री सुविधाओं से जुड़े अधिकांश काम निजी हाथों में सौंप दिए हैं। इनमें खाने-पीने से लेकर,सफाई, ठहराने और पीने के पानी तक की सुविधाएं हैं, हां पर रेलवे ने दावा किया था कि ट्रेनों के सुरक्षित संचालन से जुड़े कामों को निजी हाथों में नहीं दिया जाएगा, लेकिन गोपनीय तरीके से इन कामों को भी अब रेलवे निजी हाथों में दे रहा है। इसकी शुरूआत पटरियों की निगरानी और रेल फाटक पर निजी कर्मचारी को तैनात कर, कर दी गई है। अब वह यात्री कोच और मालगाड़ी के डिब्बों की मरम्मत का काम भी धीरे-धीरे निजी हाथों में दे रहा है। इतना ही नहीं इसके बाद पटरियों की मरम्मत करने वाली ट्रैक मशीन और इसकी तरह अन्य मशीनों के संचालन और मरम्मत का काम भी निजी हाथों में दे दिया जाएगा।
दरअसल रेलवे ने अपने खर्चो में कटौती की आड़ में रेल संरक्षा के महत्वपूर्ण कामों को भी निजी कंपनी, संस्था और ठेकेदारों के हवाले कर दिए हैं। इस असर यह हुआ है कि संरक्षा के काम की गुणवत्ता में न सिर्फ कमी आई बल्कि निजी कर्मचारियों की लापरवाही से कई बार दुर्घटनाएं होने से बचीं।
जबलपुर रेल मंडल के उचेहरा और बागरतवा में बड़ी लापरवाही सामने आइ। इनमें उचेहरा में पटरियाें की सुरक्षा में चूक हुई और ट्रैक से लाक चोरी हो गए। इधर बागरतवा में सिग्नल-प्वाइंट में छेेड़छाड़ हुई और मालगाड़ी ने अचानक ट्रैक बदल दिया। इतना ही नहीं कई बार तय गति से ज्यादा रफ्तार में ट्रेनें खराब ट्रैक से निगलीं, करेली और सलैया के पास रेल पुलिया की मिट्टी बह गई। यह घटनाएं 2023 जनवरी से जून के बीच हुई। इनमें भी जांच में निजी कर्मचारियों को दिए गए काम में भी लापरवाही ही सामने आई। दिक्कत यह है कि रेलवे, जिस सख्ती से अपने कर्मचारियों की लापरवाही पर कार्रवाई करता है, उतनी निजी कर्मचारियों पर नहीं कर सकता। कई बार संबंधित संस्था का ठेका रद्द कर दिया, लेकिन इनमें काम करने वाले कर्मचारी वही रहे।
एम्पलाइज यूनियन के अध्यक्ष बीएन शुक्ला बताते हैं कि यूनियन हमेशा से निजीकरण का विरोध करती रही है, लेकिन रेलवे सीधे रास्ते की बजाए उल्टे रास्ते से निजीकरण करने में अमादा रही। इसका बुरा असर अब सामने आने लगा है। संरक्षा रेलवे की सबसे बड़ी प्राथमिकता है। इसमें ट्रेनों को सुरक्षित चलाने से जुड़े काम आते हैं, लेकिन यह काम जैसे पटरियों की निगरानी, गेट की सुरक्षा, प्वाइंट-सिग्नल की मरम्मत यहां तक की ओएचई की मरम्मत भी निजी हाथों को दे दी गई है, जिसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं।