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नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर: भोपाल में पेड़ काटने के मामले में हाई कोर्ट ने सख्त आदेश जारी किया है कि राजधानी में हाई कोर्ट की अनुमति के बिना कोई भी पेड़ न काटा जाए। यह आदेश युगलपीठ, मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ ने सुनाया। मामले की अगली सुनवाई 26 नवंबर को होगी।
इस दौरान कार्यपालक अभियंता पीडब्ल्यूडी, अंडर सेक्रेटरी, विधानसभा सचिवालय, एडमिनिस्ट्रेटिव अफिसर-कम-अंडर सेक्रेटरी, आयुक्त नगर निगम भोपाल, प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट, प्रमुख सचिव विधानसभा सचिवालय और महाप्रबंधक पश्चिम मध्य रेलवे को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है।
मामला भोजपुर-बैरसिया रेलवे प्रोजेक्ट अंतर्गत रोड निर्माण से जुड़ा है। शुरुआत में यह खबर आई थी कि 488 पेड़ काटे गए हैं, लेकिन सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि वास्तविक संख्या 8000 से अधिक है। कोर्ट ने इस प्रकरण में सख्ती बरतते हुए किसी भी विभाग या प्रोजेक्ट को पेड़ काटने या ट्रांसप्लांट करने से रोका।
कोर्ट ने कहा कि अब फाइलों के माध्यम से नहीं, बल्कि संबंधित अधिकारियों को कोर्ट में बुलाकर वस्तुस्थिति का निरीक्षण किया जाएगा। साथ ही ट्रांसप्लांट किए गए पेड़ों की फोटो भी पेश करने के निर्देश दिए गए हैं।
सुनवाई के दौरान यह जानकारी भी मिली कि सड़क चौड़ीकरण के लिए लोक निर्माण विभाग, रायसेन ने बिना अनुमति के 488 पेड़ काट दिए। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दिशा-निर्देशों के तहत पेड़ काटने से पहले राज्य सरकार को नौ सदस्यीय समिति की अनुमति लेना अनिवार्य है।
हालांकि इस मामले में ऐसी कोई अनुमति नहीं ली गई। राज्य सरकार की तरफ से बताया गया कि कलेक्टर द्वारा 448 पेड़ ट्रांसप्लांट करने की अनुमति दी गई थी, जबकि 253 पेड़ों का प्रत्यारोपण किया गया है।
हस्तक्षेपकर्ता नितिन सक्सेना ने कोर्ट को बताया कि तस्वीरों में स्पष्ट है कि पेड़ काटे गए हैं और जमीन में गड़े हुए हैं, जिसमें कुछ में अंकुर निकलने लगे हैं। कोर्ट ने निर्देश दिए कि प्रत्यारोपित पेड़ों की GPS और सेटेलाइट फोटो प्रस्तुत की जाए।
सुनवाई में यह तथ्य भी सामने आया कि भोपाल में मंत्री और विधायकों के रेजिडेंशियल काम्प्लेक्स के लिए 244 पेड़ काटने की मांग की गई थी। पेड़ों को शिफ्ट करने के नाम पर एक नया तरीका अपनाया गया है, जिसमें पेड़ काटने और ट्रांसप्लांट करने का दावा किया जाता है, जबकि वास्तविकता में जीवित रहने की संभावना नगण्य होती है। राज्य सरकार ने कोई ट्री-ट्रांसप्लांटेशन पॉलिसी लागू नहीं की है और बड़े पैमाने पर लकड़ी का इस्तेमाल किया जा रहा है।
इस आदेश से स्पष्ट है कि हाई कोर्ट ने पर्यावरण संरक्षण कानून की अवहेलना को गंभीरता से लिया है और राजधानी भोपाल के हर पेड़ की सुरक्षा के लिए सभी विभागों को चेतावनी दी है।