MP News: प्रमोशन में आरक्षण मामले की सुनवाई हाईकोर्ट ने 16 अक्टूबर तक बढ़ाई
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण मामले की सुनवाई 16 अक्टूबर तक बढ़ा दी है। आज दिनांक 25/9/25 को कोर्ट न. 01 मे सीरियल क्र.32 से 32.38 पर समय 11:30 बजे से सुनवाई थी,लेकिन सुबह एडिशनल एडवोकेट जनरल हरप्रीत रूपराह ने मेंशन करके दिनांक 16/10/25 की तारीख़ लगवाई है।
Publish Date: Thu, 25 Sep 2025 01:49:58 PM (IST)
Updated Date: Thu, 25 Sep 2025 06:42:26 PM (IST)
मध्य प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण का मामला।HighLights
- निर्णय सरकार के पक्ष में आया तो दिसंबर तक पदोन्नतियां दे दी जाएंगी।
- सरकार का जोर है कि नौ वर्ष से बंद पदोन्नति का सिलसिला प्रारंभ हो जाए।
- सुप्रीम कोर्ट में केस विचाराधीन है। पदोन्नति अंतिम निर्णय के अधीन रहेगी।
राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। प्रदेश सरकार द्वारा बनाए गए नए पदोन्नति नियम को लेकर हाई कोर्ट जबलपुर की सुनवाई में सरकार का जोर इस बात पर है कि नौ वर्ष से प्रदेश में पदोन्नतियां बंद हैं। इससे कर्मचारी हतोत्साहित हैं। सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन प्रकरण को ध्यान में रखते हुए जब तक अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक सशर्त पदोन्नति दी जाएगी। यदि सब-कुछ ठीक रहा और निर्णय सरकार के पक्ष में आया तो दिसंबर तक सभी पात्र कर्मचारियों को एक-एक पदोन्नतियां दे दी जाएंगी।
हाई कोर्ट जबलपुर में सरकार की ओर से गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन की अनुपस्थिति को आधार बनाकर सुनवाई की तिथि आगे बढ़ाने का आग्रह किया, जिसे स्वीकार किया गया। सरकार का जोर इस बात पर है कि सशर्त ही सही पर नौ वर्ष से बंद पदोन्नति का सिलसिला प्रारंभ हो जाए। वैसे भी सुप्रीम कोर्ट में मामला विचाराधीन है, इसलिए पदोन्नति दी भी जाती है तो वह अंतिम निर्णय के अधीन ही रहेगी। इसमें किसी को कोई परेशानी भी नहीं होनी चाहिए क्योंकि प्रभावित तो सभी वर्ग के कर्मचारी हो रहे हैं।
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वहीं, सामान्य वर्ग के याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका को वापस ना लेने पर प्रश्न खड़ा कर रहे हैं। सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संस्था (सपाक्स) का कहना है कि जब सरकार ने यह मान लिया है कि पुराने नियम दोषपूर्ण थे और हाई कोर्ट ने उन्हें जो निरस्त किया वह सही था तो फिर याचिका वापस लेने में आपत्ति क्या है। जब नियम ही गलत थे तो जो पदोन्नतियां उससे हुईं वे वापस ली जानी चाहिए यानी पदोन्नत अधिकारियों-कर्मचारियों को पदावनत करके वरिष्ठता सूची तैयार की जाए और फिर पदोन्नतियां हों। अभी जो स्थिति है, उसमें तो सामान्य वर्ग का नुकसान ही नुकसान है।
ये पहले ही विसंगतिपूर्ण पदोन्नति नियम के कारण पिछड़ गए हैं और अब फिर वही स्थिति बनाने का प्रयास हो रहा है। जो नए नियम हैं वे भी सामान्य वर्ग के हितों का संरक्षण नहीं करते हैं। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश के नियमित साढ़े सात लाख अधिकारियों-कर्मचारियों में से साढ़े तीन से चार लाख कर्मचारी पदोन्नति के पात्र होंगे। नए नियम बनाने के साथ ही इन्हें पदोन्नति देने की तैयारियां भी विभागों ने प्रारंभ कर दी थी।
विभागीय पदोन्नति समिति के गठन के साथ कर्मचारियों के सेवा अभिलेख के आधार पर प्रस्ताव भी तैयार हो चुके हैं। नगरीय विकास एवं आवास, लोक निर्माण सहित अन्य विभागों और विधानसभा सचिवालय ने तैयारी करके रखी है। यदि जल्द ही नियम को हरी झंडी मिल जाती है तो दिसंबर तक पात्र अधिकारियों-कर्मचारियों को एक पदोन्नति दे दी जाएगी।
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यथास्थिति भी होगी स्पष्ट
सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट में यथास्थिति को भी स्पष्ट करने के लिए कहा है। दरअसल, सपाक्स का कहना है कि भले ही नए नियम बना दिए गए हैं लेकिन जब तक यथास्थिति है, तब तक पदोन्नति नहीं हो सकती है। वहीं, सरकारी पक्ष का कहना है कि यथास्थिति संदर्भ में है जिसमें पदोन्नत कर्मचारियों को पदावनत करने की बात उठाई जा रही है।
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पदोन्नति नियम को लेकर हाई कोर्ट में लगी याचिका के महत्वपूर्ण बिंदु
- पदोन्नति नियम को लेकर हाई कोर्ट जबलपुर में गुरुवार को सुनवाई हुई। सरकार ने हाई कोर्ट के निर्देश पर नियम के संबंध में विस्तृत जानकारी दी है। इसके साथ ही यह भी कहा है कि प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने के कारण सशर्त पदोन्नति दी जाएगी।
- पदोन्नति नियम को सामान्य वर्ग के कर्मचारियों ने चुनौती है। याचिका में कहा गया है कि जब सरकार ने नए नियम बना लिए हैं तो यह स्पष्ट है कि 2002 के नियम निरस्त करने का निर्णय सही था।
- ऐसे में इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका को वापस क्यों नहीं लिया जा रहा है। इससे भ्रम की स्थिति बन रही है।
- दरअसल, पुराने नियम से जो पदोन्नतियां हुई हैं, उन्हें सरकार वापस नहीं लेना चाहती है इसलिए याचिका वापस नहीं ली जा रही है। इससे स्थायी समाधान नहीं निकलेगा।
- जबकि, सरकार नौ वर्ष से रुकी पदोन्नति प्रारंभ करना चाहती है। नए नियम सुप्रीम कोर्ट द्वारा विभिन्न मामलों में दिए गए निर्देशों की रोशनी में तैयार किए गए हैं। इसमें सभी वर्गों के हितों का ध्यान रखा गया है।
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ओबीसी आरक्षण मामले में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की 15 हजार पेज की रिपोर्ट
- प्रदेश में सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इसके पहले सरकार की ओर से न्यायालय में लगभग 15 हजार पेज की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए समय की मांग की, जिसे न्यायालय ने स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई के लिए आठ अक्टूबर की तिथि नियत की।
उधर, सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मध्य प्रदेश की सुनवाई अलग से करने की मांग रखी, जिसे स्वीकार किया गया। अभी छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के मामले की सुनवाई साथ-साथ हो रही थी।
ओबीसी महासभा की राष्ट्रीय कोर कमेटी सदस्य एवं याचिकाकर्ता लोकेंद्र गुर्जर ने बताया कि देश के अटार्नी जनरल तथा राज्य सरकार की ओर से उपस्थित अधिवक्ताओं ने पक्ष रखते हुए अंतरिम आदेश के तहत लागू स्थगन को हटाने का निवेदन प्रस्तुत किया। वहीं, ओबीसी समाज की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने मध्य प्रदेश मामले में अंतरिम आदेश पारित करने की मांग रखी।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने कहा कि अनेक नए दस्तावेज प्रस्तुत किए गए हैं, जो हमें एक दिन पहले ही मिले हैं। इनका अध्ययन के लिए अतिरिक्त समय दिया जाए।
इसे न्यायालय ने स्वीकार कर आठ अक्टूबर से नियमित सुनवाई निर्धारित की। मुख्य सचिव अनुराग जैन ने ओबीसी आरक्षण और पदोन्नति के मामले को लेकर अधिकारियों से फीडबैक लिया। कई रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट की प्रस्तुत
मंत्रालय सूत्रों के अनुसार राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण को लेकर कई रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसमें 1983 में बने रामजी महाजन आयोग के साथ राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के 1994 से लेकर 2011 तक के प्रतिवेदन, पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन की अध्यक्षता में गठित हुए पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट के साथ डा.बीआर आंबेडकर सामाजिक विश्वविद्यालय द्वारा मध्य प्रदेश के अन्य पिछड़े वर्गों की सामाजिक-आर्थिक, शैक्षणिक व राजनैतिक स्थिति एवं उनके पिछड़ेपन के कारणों का सर्वेक्षण तथा समाज वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत किया।
एक सप्ताह में तैयार हुई रिपोर्ट
सरकार ने 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के पक्ष में लगभग 15 हजार पेज की रिपोर्ट एक सप्ताह में तैयार करके सुप्रीम कोर्ट में जमा की। पिछले सप्ताह सरकार ने सामान्य प्रशासन विभाग में पदस्थ अपर सचिव अजय कटेसरिया प्रकरण के लिए प्रभारी अधिकारी नियुक्त किया था। सूत्रों के अनुसार उन्होंने ओबीसी आरक्षण को लेकर जितनी भी रिपोर्ट तैयार हुईं, उनका अध्ययन करके वरिष्ठ अधिवक्ताओं के साथ दिल्ली में दो दिन बैठक की और फिर समग्र रिपोर्ट तैयार की गई।
...तो 63 प्रतिशत को जाएगा आरक्षण
- यह मामला इसलिए महत्वपूर्ण है कि यदि ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत हो जाता है तो फिर प्रदेश में एससी को 20, एसटी को 16 और ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा यानी कुल आरक्षण 63 प्रतिशत हो जाएगा।
- इसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए अलग से निर्धारित दस प्रतिशत आरक्षण शामिल नहीं है।
- बता दें, कांग्रेस की तत्कालीन कमल नाथ सरकार ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए बड़ा सियासी दांव खेलते हुए ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया था।
- इस पर जबलपुर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। तब से मामला लंबित है।
भाजपा ने छह साल से आरक्षण लागू नहीं होने दिया : पटवारी
- प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा कि भाजपा का चाल, चरित्र और चेहरा ओबीसी समाज के सामने आ चुका है।
- भाजपा सरकार ने छह साल से 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण लागू नहीं होने दिया।
- इसके लिए करोड़ों रुपये खर्च किए। यह बताता है कि भाजपा ओबीसी विरोधी है और उनके वोट लेती है।
- सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के समय मैं और पार्टी के वकील उपस्थित रहेंगे। ओबीसी के हक को लेकर रहेंगे।