MP News: 32 वर्ष पहले सुनाई गई सजा हाई कोर्ट से निरस्त, अदालत ने कहा- 'पहले मंशा देखना था'
मानकराम ने तीन हजार 596 रुपये का गबन किया है। ट्रायल कोर्ट ने 1993 में कर्मचारी को भादंवि की धारा 409 के तहत अदालत उठने तक की सजा व तीन हजार रुपये का जुर्माना लगाया। अब हाई कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया कि अधीनस्थ अदालत को सजा देने से पहले यह तय करना जरूरी था कि अपराध जानबूझकर किया है या नहीं।
Publish Date: Tue, 24 Jun 2025 09:48:29 PM (IST)
Updated Date: Tue, 24 Jun 2025 09:48:29 PM (IST)
32 वर्ष पहले सुनाई गई सजा हाई कोर्ट से निरस्तनईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति मनिंदर सिंह भट्टी की एकलपीठ ने शासकीय कर्मी को 32 वर्ष पूरी सुनाई गई सजा को अनुचित पाकर निरस्त कर दिया। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया कि अधीनस्थ अदालत को सजा देने से पहले यह तय करना जरूरी था कि अपराध जानबूझकर किया है या नहीं।
मानकराम पर क्या लगा था आरोप?
बैतूल निवासी मानकराम की ओर से अधिवक्ता मोहनलाल शर्मा ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता ब्रांच पोस्ट मास्टर के पद पर पदस्थ था। वर्ष 1983 में एक निरीक्षण के दौरान यह पाया गया कि कर्मचारी ने एकाउंट होल्डर से पैसे लेकर रजिस्टर में दर्ज नहीं किया। आरोप लगा था कि मानकराम ने तीन हजार 596 रुपये का गबन किया है। ट्रायल कोर्ट ने 1993 में कर्मचारी को भादंवि की धारा 409 के तहत अदालत उठने तक की सजा व तीन हजार रुपये का जुर्माना लगाया।
'गबन करने की मंशा से नहीं किया'
अपील पर सेशन कोर्ट ने सजा बरकरार रखी थी। अपील निरस्त होने पर वर्ष 2000 में हाई कोर्ट में रिवीजन पेश की। दलील दी गई कि जो पैसा लिया गया था वह एकाउंट होल्डर की पासबुक में भी दर्ज किया था। याचिकाकर्ता ने जानबूझकर या गबन करने की मंशा से कृत्य नहीं किया था। महज रजिस्टर में एंट्री नहीं होने पर प्रकरण बनाया गया, जो कि अवैधानिक है।
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