
नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ के समक्ष गुरुवार को मध्य प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट के संबंधित न्यायदृष्टांत रेखांकित कर अपना पक्ष मजबूत करने भरसक प्रयास कियाा गया।
बहस पूरी न होने के कारण शु्क्रवार को सुनवाई जारी रखने की व्यवस्था दे दी गई। याचिकाकर्ताओं की बहस पूरी होने के बाद इस प्रकरण में राज्य शासन की ओर तर्क प्रस्तुत किए जाएंगे। हाई कोर्ट ने नियत किया है कि यह मामला संवैधानिक दृष्टि से बेहस अहम है, अत: सुनवाई को द्रुतगति दी जाएगी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से हाई कोर्ट को अवगत कराया गया कि जरनैल सिंह के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने एम नागराज केस के निर्णय का पुनर्मूल्यांकन किया था। कोर्ट ने साफ किया था कि आक्षरण का समुचित लाभ तय करने के लिए उच्च पदों पर पहुंचे अधिकारियों का डेटा आवश्यक है। जब तक क्रीमीलेयर के वास्तविक आंकड़े नहीं जुटाए जाते, तब तक यह पता करना कठिन है कि पिछड़े वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व मिल रहा है या नहीं। लिहाजा, प्रमोशन में आरक्षण देने से पहले सरकार को यह साबित करना होगा कि संबंधित वर्गों का प्रतिनिधित्व कम है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि मप्र शासन ने प्रमोशन में आरक्षण लागू करने से पूर्व यह डेटा एकत्र नहीं किया था। पिछड़े वर्गों की स्थिति, प्रतिनिधित्व और क्रीमी लेयर का आकलन नहीं किया गया था। लिहाजा, 2025 का यह नया नियम संविधान के अनुच्छेद-14 और 16-1 के विरुद्ध है। कुल मिलाकर बिना डेटा जांच के आरक्षण लागू नहीं कया जा सकता।
भोपाल निवासी डॉ. स्वाति तिवारी व अन्य की ओर से दायर याचिकाओं में मध्य प्रदेश लोक सेवा पदोन्नति नियम 2025 को चुनौती दी गई है। दलील दी गई कि वर्ष 2002 के नियमों को हाई कोर्ट के द्वारा आरबी राय के केस में समाप्त किया जा चुका है। इसके विरुद्ध मप्र शासन ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट में मामला अभी लंबित है, इसके बावजूद मप्र शासन ने महज नाम मात्र का शाब्दिक परिवर्तन कर जस के तस नियम बना दिए।