
नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ ने अपने एक आदेश में साफ किया कि अधिवक्ता अधिनियम का उल्लंघन करते हुए स्टेट बार काउंसिल की सचिव गीता शुक्ला की नियुक्ति की गई है, जो कि अवैधानिक है।
हाई कोर्ट ने स्टेट बार के उन दोनों आदेशों को निरस्त कर दिया जिसके तहत गीता शुक्ला को पहले सहायक सचिव और बाद में सचिव पद पर नियुक्त किया गया था। कोर्ट ने गीता को वापस एलडीसी के पद पर रिवर्ट करने के आदेश दिए।

गीता शुक्ला
कोर्ट ने दो माह के भीतर नियमानुसार योग्य उम्मीदवार की सहायक सचिव व सचिव के पद पर नियुक्ति करने के निर्देश दिए। साथ ही कोर्ट ने कहा कि दो माह के लिए किसी योग्य उम्मीदवार को तदर्थ सचिव नियुक्त किए जाने की भी व्यवस्था दे दी।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि स्टेट बार सचिव का पद एक महत्वपूर्ण पद है और इस पद पर नियुक्ति के लिए योग्यताएं नियमों द्वारा निर्धारित की गई हैं। नियुक्ति से पहले इन्हें पूरा करना अनिवार्य है।
कोर्ट ने कहा कि स्टेट बार काउंसिल ने गीता शुक्ला को सहायक सचिव के पद पर पदोन्नत किया और फिर उन्हें सचिव के पद पर नियुक्त किया। स्पष्ट रूप से यह कार्रवाई अधिवक्ता अधिनियम, 1961, मध्य प्रदेश राज्य बार काउंसिल नियमों के विभिन्न प्रविधानों का उल्लंघन है।
एमपी स्टेट बार काउंसिल ने 31 जनवरी 2022 को गीता को एलडीसी के पद से सहायक सचिव के पद पर पदोन्नत किया। इसके बाद नौ जुलाई, 2024 को उन्हें सचिव बना दिया गया। स्टेट बार के ही कुछ सदस्यों शैलेंद्र वर्मा, अहदुल्ला उसमानी, हितोषी जय हर्डिया, अखंड प्रताप सिंह और नरेन्द्र जैन ने गीता की नियुक्ति को चुनौती दी। दलील दी गई कि गीता को बिना योग्यता आउट आफ टर्न प्रमोशन दिया गया, जो कि अवैधानिक है।