Jabalpur News: जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। हाई कोर्ट में वर्ष 2013 से लंबित सिविल रिवीजन स्वामी शंकराचार्य पक्ष द्वारा वापस ले ली गई। इसी के साथ अब सिविक सेंटर, मढ़ाताल, जबलपुर स्थित बगलामुखी मंदिर (पुरानी संस्कृत पाठशाला) की भूमि के स्वामित्व का निर्धारण सिविल कोर्ट करेगी। न्यायमूर्ति द्वारकाधीश बंसल की एकलपीठ ने शंकराचार्य द्वारा सिविल रिवीजन वापस लेने का आग्रह स्वीकार करते हुए उसे निरस्त कर दिया। इसी के साथ सिविल कोर्ट की सुनवाई पर लगी रोक भी स्वमेव हट गई। हालांकि हाई कोर्ट ने शंकराचार्य को सिविल कोर्ट में दावा निरस्त करने का आवेदन दायर करने की अनुमति दे दी है।
उल्लेखनीय हे कि हाई कोर्ट में यह सिविल रिवीजन ब्रह्मलीन जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने दायर की थी। अब उनके स्थान पर ज्योतिषमठ के जगतगुरू स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद केस लड़ेंगे। वर्ष 2013 में आशीष त्रिपाठी सहित कुछ किराएदारों ने सिविल कोर्ट में जमीन का दावा दायर किया था। इसके विरुद्ध स्वामी स्वरूपानंद ने हाई कोर्ट में सिविल रिवीजन दायर की थी। हाई कोर्ट ने 2013 में सिविल कोर्ट में लंबित दावे पर रोक लगा दी थी। आशीष व अन्य की ओर से अधिवक्ता उमेश त्रिपाठी ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि वर्ष 2000 में स्वामी स्वरूपानंद ने दुकानें खाली कराने सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर किया। कोर्ट ने खाली करने के आदेश दिए। इसी बीच विश्वनाथ त्रिपाठी के नाती आशीष त्रिपाठी ने उक्त भूमि का दावा करते हुए सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर किया।
सिविक सेंटर स्थित इस जमीन पर पंडित विश्वनाथ त्रिपाठी की देखरेख में गायत्री संस्कृत ब्रम्हचर्य पाठशाला का संचालन होता था। तत्कालीन कलेक्टर ने शास्त्री को सर्वराहकार नियुक्त किया था, जिन्होंने बाद में दिल्ली में शंकराचार्य का पदभार संभाला। पंडित विश्वनाथ यहां 52 किराएदारों से किराया लेते थे। तत्कालीन शंकराचार्य ने विश्वनाथ को कहा कि यह भूमि ज्योतिषपीठ बद्रिकाश्रम की है, इसलिए वे किराया नहीं लें। मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा। हाईकोर्ट ने 1963 में शतानंद की अपील निरस्त कर दी। इसके बाद 1974 में नगर सुधार न्यास ने जमीन अधिग्रहित कर ली। नगर पंडित सभा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र के सहयोग से उक्त जमीन शासन के भू-अर्जन से मुक्त करवाकर विश्वनाथ को दिलवाई। इसके बाद ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद के समय उक्त 52 दुकानों में से अधिकतर तोड़ दी गईं। दुकानदारों ने हाई कोर्ट की शरण ली। हाई कोर्ट ने कार्रवाई को अवैध निरूपित किया और उसके बाद कुछ दुकानें फिर से काबिज हो गईं।