सुरेंद्र दुबे, जबलपुर। ओशो अमेरिका से निर्वासन उपरांत विश्वभ्रमण करते हुए जब पुन: भारत स्थित अपने पुणे आश्रम पहुंचे, तो कुछ समय मौन रहे। लेकिन जिस दिन उनका यह मौन टूटा, उन्होंने जो सर्वप्रथम जो शब्द जोर देकर कहे थे, वे थे, 'जबलपुर मेरा पर्वतस्थल है, जहां मैं सर्वाधिक आनंदित हुआ।' दरअसल, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि संस्कारधानी उन्हें कितनी प्रिय थी। यही वजह है कि उन्होंने जबलपुर को अलविदा कहते समय शहीद स्मारक सभागार में आयोजित अपने सम्मान समारोह में साफ शब्दों में कह दिया था कि जबलपुर मेरे हाड़-मांस में बसा है, इस शहर को भुला पाना मेरे लिए असंभव होगा।

जबलपुर में बीस वर्ष तक निवासरत रहने के दौरान आचार्य रजनीश के कई रूप सामने आये। इनमें एक मेधावी व विद्रोही छात्र, पत्रकार व प्राध्यापक, मुकुल, ज्योति शिखा व युवक क्रांति दल की पत्रिका युक्रांत का प्रकाशन, जीवन ज्योति केंद्र की स्थापना सहित अन्य संस्मरण उनके समकालीन मित्र आज भी सुनाया करते हैं। जबलपुर के पुराने सुषमा साहित्य मंदिर से किताबें खरीदने का उनका शौक भी अनूठा था।

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जीवनकाल : कुल छह दशक

जन्मभूमि कूचवाड़ा - एक दशक

गृहनगर गाडरवारा - एक दशक

कर्मभूमि जबलपुर - दो दशक

प्रचार भूमि मुंबई-पुणे - एक दशक

वैश्विक भूमि अमेरिका व भारत वापसी - एक दशक

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'ओशो ट्री' के रूप में विश्वविख्यात है 'मौलश्री' :

ओशो के प्रारंभिक दिनों के साक्षी स्वामी अगेह भारती के अनुसार जबलपुर ही तो वह शहर है, जहां भंवरताल पार्क में संबोधि वृक्ष मौलश्री स्थित है। तथागत गौतम बुद्ध के दुनिया भर में फैले करोड़ों अनुयायियों के लिए जो महत्व बोधिगया का है, वहीं देश-दुनिया में फैले करोड़ों ओशो प्रेमियों के लिए इस 'ओशो ट्री' का है।

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महाकोशल कालेज में 'ओशो चेयर'

यही वह शहर है, जहां स्थित जबलपुर के सबसे पुराने महाकोशल महाविद्यालय, पूर्व नाम राबर्टसन कालेज में अद्भुत शैली वाले अध्यापन की वजह से दर्शनशास्त्र के प्रकांड विद्वान आचार्य रजनीश के संबोधन से देश-दुनिया में नामवर हुए। इसी महाविद्यालय के पुस्तकालय में उनकी आराम कुर्सी 'ओशो चेयर' के रूप में संरक्षित होकर उनकी स्मृति को जीवंत रखे हुए है। यहां वे पुस्तकें भी संग्रहित हैं, जिन्हें पढ़ने के बाद पीछे के पृष्ठ पर आचार्य रजनीश ने टिप्पणी लिखकर हस्ताक्षर किये थे। पुस्तकें जारी करने के रजिस्टर में भी उनके हस्ताक्षर देखे जा सकते हैं।

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अध्यापन स्थली डीएन जैन व सिटी कालेज :

उन्होंने अतीत के पृष्ट पलटते हुए बताया कि कि रजनीश ने प्रारंभिक विद्यालयीन शिक्षा गृहनगर गाडरवारा में अर्जित करने के बाद महाविद्यालयीन शिक्षा जबलपुर में ही अर्जित की। इस सिलसिले में जबलपुर के डीएन जैन व सिटी कालेज में दाखिला लिया। जब स्नातक हो गये तो परास्नातक उपाधि अर्जित करने कुछ समय तक सागर प्रवास पर चले गये। वहां से उपाधि मिलने के बाद कुछ समय तक रायपुर के एक महाविद्यालय में अध्यापक नियुक्त रहे। लेकिन जबलपुर का प्रेम ऐसा कि शीघ्र स्थानांतरण कराकर यहां चले आए। फिर महाकोशल कालेज में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक हो गए।

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ओशो हाल व ओशो राक्स:

जबलपुर के नेपियर टाउन में जिस 'योगेश भवन' में आचार्य रजनीश सर्वाधिक निवासरत रहे, देश-दुनिया में फैले करोड़ों ओशो प्रेमी उसे 'ओशो हाल' के रूप में जानते हैं। भेड़ाघाट में बंदरकूदनी स्थित संगमरमरी शिला व ओशो संन्यास अमृतधाम, देवताल अंतर्गत मदनमहल पहाड़ी की शिला को संयुक्त रूप से 'ओशो राक्स' संबोधित किया जाता है।

Posted By: Mukesh Vishwakarma

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