सुरेंद्र दुबे, जबलपुर। नर्मदा तटीय इस शहर का पुरातन नाम जाबालिपुरम था, ऐसा इसलिए क्योंकि यहां जाबालि ऋषि ने तपस्या की थी। यहीं मटामर नामक स्थान पर भगवान परशुराम ने भी तपस्या की थी। कालांतर में इस भूमि ने हरिशंकर परसाई जैसा व्यंग्य-पुरोधा दिया। यही नहीं भावातीत ध्यान के प्रणेता महर्षि महेश योगी व सक्रिय ध्यान के प्रणेता आचार्य रजनीश ओशो की साधना स्थली भी यही शहर रहा। परसाई, महर्षि व रजनीश की त्रिपुटी ने इस शहर को विश्वविख्यात कर दिया। इन तीनों का व्यक्तित्व-कृतित्व अनूठा रहा। इसी वजह से इन्हें पढ़ने वालों की संख्या स्थानीय सीमा को लांघकर वैश्विक हो गई।
प्रत्येक समकालीन विसंगति पर कटाक्ष
हरिशंकर परसाई ने जबलपुर में निवासरत रहते हुए अपनी कलम की नाेंक प्रत्येक समकालीन विसंगति पर गड़ाई। उनके व्यंग्य देश-दुनिया में चर्चित हुए। उनकी वजह से देश-दुनिया के हिंदी साहित्यकारों के बीच जबलपुर काे विशेष सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा। जबलपुर के व्यस्ततम व्यावसायिक क्षेत्र फुहारा में एक गरीब बच्चे की धनाढ्य वर्ग द्वारा पिटाई की घटना ने परसाई के भीतर के रचनाकार को जाग्रत कर दिया और वे शिक्षक से व्यंग्य-पुरोधा बन गए। उनकी अनेक रचनाओं के नाट्य रूपांतरण भी हुए हैं।
मौलश्री भंवरताल में मिला बुद्धत्व
इसी शहर के भंवरताल पार्क में मौलश्री के वृक्ष तले आचार्य रजनीश को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई। इस तरह यह स्थल ओशो संबोधि स्थली के रूप में विश्वभर में चर्चित हो गया। यहां देश-दुनिया से प्रतिवर्ष लाखाें अोशो शिष्य एकत्र होते हैं। आचार्य रजनीश ने इसी शहर में उच्च शिक्षा अर्जित की और यहीं अध्यापन कराया। बाद में आध्यात्मिक गुरू के रूप में गरिमा अर्जित कर ली। यहां से मुंबई फिर पुणे और वहां से ओरोगन, अमेरिका जाकर वे पूरी दुनिया में छा गए। जबलपुर में अोशो राक, ओशो ट्री, अोशो हाल, ओशो संन्यास अमृतधाम देवताल, ओशो अध्यापन स्थली महाकोशल कालेज आदि हैं।
हनुमानटोरिया से हालैंड तक
जबलपुर के सुरक्षा संस्थान में नौकरी करने वाले महेश श्रीवास्तव ने हनुमानटोरिया, घमापुर और पाटबाबा में साधना करके सिदि्ध अर्जित कर ली। वे भावातीत ध्यान के गुरू के रूप में चर्चित हो गए। जबलपुर से हालैंड जाकर महर्षि महेश योगी के रूप में उन्होंने खूब प्रसिदि्ध पाई। जबलपुर में उनसे जुड़े स्थल व संस्मरणों की भरमार है।
बाजार, बागीचा व टोरिया की ख्याति
परसाई की सोच को फुहारा बाजार में नजर आए प्रताड़ना के महज एक दृश्य ने बदलकर रख दिया। वे पीडित वर्ग की आवाज बन गए। इसी तरह आचार्य रजनीश को सुबह-सबेरे बागीचे में प्रकृति के मध्य ऐसा प्रकाश मिला, जिसने उनकी सोच को प्रकाशित कर दिया। वहीं टोरिया में चढ़कर साधना करते-करते महर्षि के ज्ञान-चक्षु खुल गए और वे वेद विज्ञान का ज्ञान फैलाने विदेश चले गए।
समय-समय पर होते हैं आयोजन
जाबालि व परशुराम की तपोभूमि को वैश्विक ख्याति दिलाने वाले परसाई, महर्षि व ओशो की याद में समय-समय पर विविध आयोजन होते हैं। इस दौरान तीनों का महत्व समझने वाले प्रशंसक एकत्र होते हैं। उनसे जुड़े संस्मरण सुने-सुनाए जाते हैं। सबसे खास बात यह कि परसाई, महर्षि व रजनीश समकालीन प्रतिभा थे। तीनों की आयु में चंद वर्षों का अंतराल था। तीनों ने एक कालखंड में जबलपुर को साधना-स्थली बनाकर दुनिया भर में नाम रोशन किया।