जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। महाराष्ट्र समाज में भाद्र मास का विशेष महत्व है। इस मास में विशेष रूप से गौरी पूजन किया जाता है। पूजन के लिए अनुराधा नक्षत्र में महालक्ष्मी का आगमन होता है। महालक्ष्मी का श्रृंगार नयी नववारी, पैठणी और सुंदर सी साडी पहनाकर आभूषणों से सुसज्जित कर स्थापना की जाती है। महाराष्ट्र ब्रह्मवृन्द समाज के पंडित नीलेश दाभोलकर ने बताया कि ज्येष्ठा गौरी महालक्ष्मी आवाहन मुहुर्त 12 सितंबर को
सुबह 9:49 के बाद शुरू हुआ जिसमें कुलाचार की परंपरानुसार स्थापना की गई। 13 सितंबर को पूजन अर्चन, 56 भोग अर्पित कर, सहस्त्रार्चन, विशेष पूजन किया जाएगा। 14 सितंबर को विसर्जन शाम 7:05 बजे के बाद होगा।
सप्तमी तिथि में होती है स्थापना : भाद्रपद मास में सप्तमी तिथि अनुराधा नक्षत्र में महालक्ष्मी, गौरी की प्रतिमा की स्थापना की जाती है। अष्टमी में ज्येष्ठा नक्षत्र में कुल परिवार की रीतियों से पूजन अर्चन कर महानैवेद्य अर्पित किया जाता है। तीसरे दिन मूल नक्षत्र में विसर्जन किया जाता है। गौरी के महालक्ष्मी स्वरूप का ज्येष्ठा नक्षत्र में पूजन अर्चन के कारण ज्येष्ठा गौरी कहलाती हैं। मराठी समाज में माता महालक्ष्मी की विशिष्ट पूजन किया जाता है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी से नवमी तक महालक्ष्मी ज्येष्ठा गौरी का पूजन किया जाता है। महालक्ष्मी के पूजन अर्चन के पूर्व सुचिता और साफ-सफाई का ध्यान विशेष रूप से किया जाता है। 90 वर्षीय मालती शिंदे बताती हैं कि सोला का खाना बनाने वाली महिलाओं को सुचिता और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। मन मस्तिष्क से पूर्ण मनोयोग से भोग बनाने से महालक्ष्मी जल्द-से-जल्द भोग ग्रहण करती हैं। तीन पीढि़यों से महालक्ष्मी पूजन कर रहे 80 वर्षीय पुरुषोत्तम माने बताते हैं कि भक्तिभाव से भगवती प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं, जिससे धन धान्य और पुत्र संतति की उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। मराठी समाज के विध्येश भापकर ने कहा कि पीढ़ी दर पीढ़ी परंपराओं को आगे बढ़ाने से सनातन संस्कृति आगे बढ़ रही है।