Jabalpur News : नई दुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कालेज परिसर में स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट के पूरी तरह आकार लेने के पहले ही संस्थान को सीमित करने की कोशिश हो रही है। योजनाबद्ध तरीके से टुकुड़-टुकड़े में कैंसर मरीजों का हक छीना जा रहा है। कालेज प्रबंधन ने पहले कैंसर इंस्टीट्यूट के एक हिस्से को सेंट्रल लैब में बदल दिया। अब इंस्टीट्यूट में कैंसर मरीजों के बनाये गये आइसीयू रूम को बोनमेरो सेंटर बनाने की तैयारी कर ली है। सरकार के सर्वे में आने वाले वर्षों में कैंसर पीड़ितों की संख्या में वृद्धि का अनुमान है। सतना, रीवा, सिंगरौली, शहडोल, डिंडोरी, बालाघाट, नरसिंहपुर, नर्मदापुरम, सागर, छतरपुर से कैंसर मरीज उपचार के लिए जबलपुर आ रहे हैं।
एक-एक करके इंस्टीट्यूट के भवन में अन्य विभाग खोले जाने से कैंसर मरीजों की सुविधाओं पर कटौती होना तय है। कालेज की मनमानी से केंद्र और प्रदेश सरकार की जबलपुर में सबसे बड़े कैंसर इंस्टीट्यूट बनाने की योजना संकट में घिर गई है। मरीजों काे आधुनिक जांच, गंभीर पीड़ितों का उपचार और कैंसर संबंधी शोध कार्यों के लिहाज से आधुनिक और अग्रणी इंस्टीट्यूट बनाने का खाका कागजों से बाहर आने से पहले ही ढहता नजर आ रहा है। इधर, अंचल में कैंसर मरीजों की बढ़ती संख्या और सुविधाओं के अभाव में उनके बेहतर उपचार के लिए पीड़ित लगातार भटक रहे है।
अंचल में गरीब कैंसर मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार ने मेडिकल कालेज में स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट बनाने का निर्णय किया था। वर्ष 2015 में 135 करोड़ रुपये स्वीकृत किये थे। पुराने व नए कैंसर अस्पताल को मिलाकर 200 बिस्तर का इंस्टीट्यूट बनना था। पहले निर्माण और फिर उपकरणों की आपूर्ति में विलंब से योजना की लगभग 180 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। कैंसर मरीजों का दबाव ज्यादा होने से नवीन उपकरणों की स्थापना होने से पहले ही इंस्टीट्यूट में मरीज भर्ती करने मजबूर होना पड़ा है। लेकिन थैरेपी के लिए आधुनिक लीनियर एक्सीलेटर मशीन और एंडोस्कॉपी, ब्रांकोस्कोपी, कोलोस्कोपी, काल्पोस्कोपी सहित कई आधुनिक उपकरण अभी तक उपलब्ध नहीं हुये है। जबकि इंस्टीट्यूट काे इतना आधुनिक कैंसर डायग्नोसिस व ट्रीटमेंट सेंटर बनाने का प्रस्ताव है कि मुंबई, नागपुर, भोपाल जैसी सुविधायें यहीं उपलब्ध हो जायें।
मेडिकल अस्पताल की सेंट्रल लैब के विस्तार की आड़ में स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट की लैब पर कब्जा कर लिया गया। जगह कम होने पर कैंसर मरीजों का एक वार्ड भी लैब के लिए छीन लिया गया। जबकि इंस्टीट्यूट में सिर्फ कैँसर मरीजों की जांच के लिए लैब होना था। यह कैंसर संंबंधी शोध कार्यों के लिए भी उपयुक्त थी।
- मेडिकल कालेज को बोनमेरो सेंटर शुरू करने के लिए सरकार से नौ करोड़ रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ है। इस राशि में सेंटर निर्माण कार्य की राशि भी समाहित है। इसके बजाय कैंसर इंस्टीट्यूट के एक आइसीयू वार्ड को बोनमेरो सेंटर के लिए चुन लिया गया है। इसमें भी इंस्टीट्यूट में बोनमेरो केंद्र के प्रस्ताव की आड़ ली गई है।
- स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट निर्माण के समय पुराने कैंसर अस्पताल के 80 बिस्तरों को मिलाकर कुल 200 बिस्तर वाले संस्थान का प्रोजेक्ट बनया गया था। लेकिन नया भवन बनने के बाद पुराने कैंसर अस्पताल को खाली करा लिया गया। इसके कारण कैंसर मरीजों के लिए अब बिस्तर कम पड़ रहे है।
- स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में जिस जगह पर बोनमेरो सेंटर खोला जा रहा है, वह लगभग 15 बिस्तर का आइसीयू रूम है। गंभीर कैंसर पीड़ितों को भर्ती करने के लिए आइसीयू बिस्तर पहले ही कम है। गंभीर मरीज होने पर मेडिकल अस्पताल के मेडिसिन आइसीयू खाली होने का कैंसर पीड़ित को इंतजार करना पड़ता है।
गंभीर मरीजों को भर्ती करने पर खाली बिस्तर उपलब्ध नहीं हो पाते है। कैंसर की आधुनिक जांच और थैरेपी मशीने नहीं होने से मरीजों को मुंबई, नागपुर, भोपाल तक दौड़ भाग करना पड़ता है। स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट को शीघ्र पूर्ण क्षमता के साथ शुरू करने क बजाय उसमें अन्य विभाग खोलने संबंधी प्रश्न को लेकर मेडिकल कालेज की डीन डा. गीता गुइन से संपर्क का प्रयास किया गया, वे उत्तर देने के लिए उपलब्ध नहीं हुई।