जबलपुर, नईदुनिया रिपोर्टर। टीवी सभी के घर का अब महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। दूरदर्शन के आधे घंटे के समाचार प्रसारण, चित्रहार, हमलोग, बुनियाद, किले का रहस्य, मुजरिम हाजिर हो, निर्मला, मालगुडी डेज के साथ रविवार की शाम को आने वाली फिल्म। इतना ही नहीं सड़कों पर कर्फ्यू की स्थिति बना देने वाले रामायण और महाभारत का प्रसारण। और भी न जाने कितने प्रसारण हैं जो टेलीविजन के शुरुआती दिनों की यादों को ताजा कर देते हैं। तब से लेकर आज तक टेलीविजन में काफी बदलाव हो चुके हैं। फिर भी मनोरंजन के तमाम साधनों के बीच शहर में आज भी टीवी देखने के शौकीनों की संख्या कम नहीं है। शहर के घरों का हाल जाने तो सुबह की शुरुआत किसी राशिफल के कार्यक्रम से होती हुई न्यूज, धारावाहिकों से गुजरता हुआ दिन रात को किसी फिल्म देखने से खत्म होता है। 21 नवंबर को विश्व टेलीविजन दिवस पर आइए जानते हैं टीवी के बारे में कुछ खास बातें और शहर में टीवी आने से जुड़े लोगों के अनुभव।
मुंबई में देखा था सबसे पहले टीवी: साहित्यकार पंकज स्वामी बताते हैं कि मेरे चाचा का स्वास्थ्य खराब था, तब हम लोग उन्हें देखने मुंबई गए थे। उस समय में चौथी क्लास में था। सबसे पहले मैंने टीवी उसी समय देखा था। इसके बाद रायपुर में 1981 में टीवी देखा। फिर 1982 में हुए एशियाड का प्रसारण टीवी पर देखा। शहर में टीवी 1984 में आ चुका था। जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई, उस समय टीवी पर लोगों ने यह समाचार देखा था।
रहता था आधे घंटे के समाचार का इंतजार: वरिष्ठ रंगकर्मी अरुण पांडे का कहना है कि समय कितना बदल गया है। जब टीवी आया था तो हम लोगों को दूरदर्शन पर आने वाले आधे घंटे के समाचारों के प्रसारण का इंतजार हुआ करता था। और अब ये हालात हैं कि दिन भर ढेरों चैनलों पर समाचार आते हैं जिनमें सच खबर होती ही नहीं। न पहले जैसा मनोरंजन ही है न ही पहले जैसे शिक्षाप्रद कार्यक्रम बचे हैं टीवी पर।
घर के आंगन में टीवी देखने लगता था मेला: समाजसेवी प्रेमलता श्रीवास्तव ने बताया कि उनके घर में 1984 में टीवी आ गया था। तब पूरे मोहल्ले में किसी के यहां टीवी नहीं था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के समाचार हों या फिर कोई फिल्म। हम लोग आंगन में टीवी रख दिया करते थे और पूरा मोहल्ला आंगन में बैठकर टीवी देखता था। ऐसा माहौल होता था जैसे घर में मेला लगा हो। उस समय टीवी को लेकर बड़ी उत्सुकता रहती थी।
क्या है टेवीविजन दिवस का इतिहास: विश्व टेलीविजन दिवस 21 नवंबर को दुनिया भर में मनाया जाता है। एक संस्था द्वारा वैश्विक स्तर पर किए गए रिसर्च द्वारा पता चला है कि वर्ष 2023 तक टीवी की संख्या 1.74 बिलियन तक हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 17 दिसंबर के दिन 21 नवंबर, 1996 को विश्व टेलीविजन दिवस के रूप में घोषित किया। इसका उद्देश्य वैश्विक सहयोग को बढ़ाने में टेलीविजन के योगदान को याद करना है। 21 नवंबर को पहले विश्व टेलीविजन फोरम की स्थापना की गई थी।
कुछ महत्वपूर्ण बातें-
- भारत में टेलीविजन प्रसारण की शुरुआत 15 सितंबर 1959 को हुई थी।
- 1972 तक टेलीविजन की सेवाएं अमृतसर और मुंबई के लिए बढ़ाई गईं।
- 1975 तक भारत के केवल सात शहरों में ही टेलीविजन की सेवा शुरू हो पाई थी।
- भारत का सबसे पुराना न्यूज चैनल डीडी न्यूज है।
- भारत में कलर टीवी और राष्ट्रीय प्रसारण की शुरुआत 1982 में हुई थी।
-टीवी के रिमोट कंट्रोल का अविष्कार यूजीन पोली ने किया था।
- टेलीविजन का अविष्कार 1924 में जॉन लोगी वेयर्ड ने किया था।
- टीवी की पहुंच देश की लगभग 90 प्रतिशत जनता तक है।
- इन 90 प्रतिशत जनता में 57 प्रतिशत लोग एक साथ बैठकर टीवी देखते हैं।
- 98 प्रतिशत घरों में सिंगल टीवी है जबकि एक से ज्यादा टीवी वाले घरों की संख्या सिर्फ दो प्रतिशत है।
- 97 प्रतिशत शहरी घरों में टीवी है।
- 99 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में टीवी है।
- 23 प्रतिशत लोग हिंदी मनोरंजन चैनल देखते हैं जबकि हिंदी फिल्में देखने के लिए 18 प्रतिशत लोग टीवी का उपयोग करते हैं।
- 11 प्रतिशत दर्शक कार्टून चैनल देखते हैं।
- सुबह 6:30 से 8:30 बजे तक दर्शकों की पहली पसंद न्यूज,राशिफल और स्वास्थ्य से जुड़े शो हैं।
- 22 से 40 वर्ष की महिलाएं अपने बच्चों के साथ टीवी देखती हैं।
- 31 से 40 साल की 30 प्रतिशत महिलाएं बच्चों के साथ सबसे ज्यादा लगभग 62 मिनट हर दिन टीवी देखती हैं।
- 25 प्रतिशत भाई-बहन हर दिन लगभग 53 मिनट एक साथ बैठकर टीवी देखते हैं।
- जबकि सिर्फ 15 प्रतिशत भाई एक साथ बैठकर टीवी देखते हैं वह भी सिर्फ 32 मिनट हर दिन।
- 52 प्रतिशत लोग इंटरटेनमेंट चैनल, 22 प्रतिशत लोग मूवी और केवल 8 प्रतिशत दर्शक ही न्यूज चैनल देखते हैं।