
जबलपुर। राज्य शासन व नर्मदाघाटी विकास प्राधिकरण ने अपर नर्मदा बांध परियोजना वापस ले ली है। इस पर वर्ष 1969-70 से काम चल रहा था, जिसने 2001 में जमीनी स्तर पर गति पकड़ी। इसी बीच हल्का-फुल्का विरोध शुरु हो गया, जो 2011 से अब तक निरंतर विकराल स्वरूप ले चुका था। एक के बाद एक किसानों की ओर से हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं और आंदोलन-प्रदर्शन किए गए। राज्य शासन व नर्मदाघाटी विकास प्राधिकरण ने इसी आधार पर अपर नर्मदा परियोजना को वापस लेने का निर्णय ले लिया है।
जिसकी जानकारी लगने के साथ ही हाईकोर्ट में याचिकाएं वापस लेने संबंधी अर्जियां दायर कर दी गई हैं। याचिकाकर्ता अपर नर्मदा बांध परियोजना संघर्ष समिति के अध्यक्ष सरपंच हरिसिंह मरावी, वीर सिंह सहित अन्य के अधिवक्ता राजेश चंद ने अवगत कराया कि पिछले 46 साल से इस परियोजना पर कछुआ गति से काम चल रहा था। 2011 में विधिवत अधिग्रहण किए बिना ही निविदा स्वीकृत कर ठेका दे दिया गया। लिहाजा, पुरजोर विरोध शुरू हो गया।
इसके फलस्वरूप नए सिरे से नए एक्ट के मुताबिक अधिसूचना जारी करने का निर्णय लिया गया। इसके विरोध में उन गांवों के सरपंचों ने हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर कर दीं, जो अपर नर्मदा बांध बनने की सूरत में डूब में आते।
27 नहीं इससे ज्यादा गांवों पर पड़ता असर- अधिवक्ता राजेश चंद के अनुसार शासकीय आंकड़े भले महज 27 गांवों के डूब में आने का दावा कर रहे थे, लेकिन इससे भी अधिक गांव डूब में आना तय था।
इससे लगभग 50 हजार किसान प्रभावित होते। ऐसा इसलिए भी क्योंकि डिंडौरी-अनूपपुर की बॉर्डर में प्रस्तावित यह बांध विशाल स्वरूप में बनना था। हालांकि विरोधियों द्वारा इसकी कोई आवश्यकता नहीं मानी जा रही थी। उनका सुझाव था कि बड़े बांध के स्थान पर छोटी नहरें बनाई जाएं तो सिंचाई आदि की सुविधा से किसान उपकृत होंगे।