मामला जबलपुर की उपभोक्ता अदालत के क्षेत्राधिकार का, इसलिए परिवाद निरस्त
परिवादी ने दमोह की उपभोक्ता अदालत में परिवाद दायर किया, जबकि मामला जबलपुर की उपभोक्ता अदालत के क्षेत्राधिकार का है।
By Ravindra Suhane
Edited By: Ravindra Suhane
Publish Date: Sun, 26 Dec 2021 02:42:46 PM (IST)
Updated Date: Sun, 26 Dec 2021 02:42:46 PM (IST)

जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। उपभोक्ता अदालत ने क्षेत्राधिकार के बिंदु पर एक परिवाद निरस्त कर दिया। परिवादी को यह स्वतंत्रता दी गई है कि वह नए सिरे से उचित क्षेत्राधिकार अंतर्गत परिवाद दायर कर सकता है। दमोह निवासी हुकुमचंद अग्रवाल की ओर से दलील दी गई कि उनके पुत्र पुरुषोत्तम के इलाज के दौरान सेवा में कमी हुई है, अत: क्षतिपूर्ति दिलाई जाए।
इसी मंशा से डायरेक्टर आशीष हास्पिटल व डा. हर्ष सक्सेना को पूर्व में लीगल नोटिस दिए गए थे। लेकिन कोई नतीजा न निकलने के कारण उपभोक्ता अदालत की शरण लेनी पड़ी। बहस के दौरान अस्पताल व डाक्टर की ओर से अधिवक्ता सुमित रघुवंशी व हेमंत चौरसिया ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि परिवादी ने दमोह की उपभोक्ता अदालत में परिवाद दायर किया, जबकि मामला जबलपुर की उपभोक्ता अदालत के क्षेत्राधिकार का है। इसलिए परिवाद निरस्त किए जाने योग्य है। इस तर्क से सहमत होकर परिवाद निरस्त कर दिया गया।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पराली संबंधी याचिका विचारार्थ स्वीकार की : राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पराली संबंधी याचिका विचारार्थ स्वीकार कर ली है। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच, जबलपुर के प्रांताध्यक्ष डा.पीजी नाजपांडे व नयागांव, जबलपुर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता रजत भार्गव ने इस याचिका के जरिये केंद्र शासन के पराली जलाने को अपराध-मुक्त किए जाने के निर्णय को चुनौती दी है। उनकी ओर से अधिवक्ता प्रभात यादव पैरवी करेंगे। उन्होंने अवगत कराया कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 की धारा-15 में पराली जलाने पर जुर्माना लगाने का प्रविधान है। लेकिन केंद्र सरकार ने आंदोलनकारी किसानों की मांग मंजूर करते हुए पराली जलाने को अपराध-मुक्त कर दिया। इस सिलसिले में आठ दिसंबर, 2021 को किसान संगठनों को पत्र भेजा गया है। यदि यह निर्णय वापस न लिय गया, तो पहले से अधिक मात्रा में पराली जलेगी। इससे पर्यावरण प्रदूषण होगा। इसीलिए व्यापक जनहित में याचिका दायर की गई है। जिसमें केंद्रीय विधि मंत्रालय व सचिव केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय को पक्षकार बनाया गया है।