जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। शहर के शिव मंदिरों में सावन मास में विशेष रूप से भक्तों का मेला लगता है। यहां के मंदिर अपनी भव्यता और प्राचीनता के लिए विशेष रूप से पहचाने जाते हैं। कुछ मंदिरों का इतिहास पुराणों में भी मिलता है। यहां सावन मास में प्रतिदिन भगवान भोलेनाथ का अभिषेक किया जाता है और शाम के समय विशेष श्रृंगार किया जाता है।
कचनार सिटी विजय नगर:
विजय नगर क्षेत्र के कचनार सिटी मेंभगवान शिव की प्रतिमा 76 फीट ऊंची है। यहां परिसर में हरे-भरे पेड़-पौधों के बीच भगवान की प्रतिमा की भव्यता देखते ही बनती है। यहांप्रतिमा का निर्माण 2004 में पूरा हुआ था। इसके बाद 15 फरवरी 2006 मेंअनुष्ठान के साथ भक्तों के लिए दर्शन शुरू हुए। यहां सावन के प्रत्येक सोमवार को मेला भरता है जिसमें दो किलोमीटर पहले से वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है। यहां सुबह से रात तक हजारों की संख्या में भक्त अनुष्ठान करने पहुंचतेहै। विशाल प्रतिमा के नीचे ही एक गुफा है जिसमें द्वादश ज्योर्तिलिंग की स्थापना की गई है।
गुप्तेश्वर मंदिर :
शिवजी की आराधना के लिए गुप्तेश्वर महादेव मंदिर का शहर में विशिष्ट स्थान है। सावन में यहां प्रतिदिन भगवान का अभिषेक पूजन व श्रृंगार किया जाता है। पूरे श्रावण मास में हर दिन यहां भक्त आते हैं। गुप्तेश्वर पीठाधीश्वर स्वामी डा. मुकुंददास महाराज ने बताया कि भगवान श्रीराम और लक्ष्मण जब सीता माता की खोज में निकले थे तब एक बार वे मां नर्मदा तट पर भी आए थे। पुराणों में इस बात का उल्लेख भी मिलता है। कहा जाता है कि जब भगवान श्रीराम को जाबालि ऋषि से मिलने की इच्छा हुई तो वे संस्कारधानी जबलपुर के नर्मदा तट पर आए थे। इसी दौरान उन्होंने अपने आराध्य महादेव का पूजन वंदन किया था। जिसके लिए रेत से शिवलिंग का निर्माण किया। मंदिर सन 1890 में अस्तित्व में आया। कोटि रूद्र संहिता में प्रमाण है कि रामेश्वरम के उपलिंग स्वरूप हैं गुप्तेश्वर महादेव। मत्स्य पुराण, नर्मदा पुराण, शिवपुराण, बाल्मिकी रामायण, रामचरित मानस व स्कंद पुराण में गुप्तेश्वर महादेव के प्रमाण मिलते हैं।
साकेतधाम के महादेव में प्राकृतिक है त्रिपुंड :
नर्मदा के पावन तट ग्वारीघाट में सावन मास में विशेष रूप से रामेश्वरम महादेव का पूजन किया जाता है। वैसे तो यहां सालभर धार्मिक अनुष्ठान होते हैं , लेकिन शिव जी का अभिषेक करने के लिए लोग विशेष तौर पर पहुंचते हैं। मंदिर से नर्मदा का सौंदर्य भी देखने लायक होता है। गर्मी में शाम का सुहाना दृश्य हो या ठंड में कुहरे का नजारा या फिर बारिश की अमृत धारा के बीच शिव आराधना लोगों को सुकून देती है। साकेतधाम के अधिष्ठाता स्वामी गिरीशानंद सरस्वती बताते हैं कि रामेश्वरम महादेव का शिवलिंग प्राकृतिक रूप से अपने ऊपर त्रिपुंड लगाए हुए हैं। जिलहरी में सर्प आकृतियां बनी हुई हैं। मां नर्मदा की गोद से यह शिवलिंग ओंकारेश्वर से लाया गया है। जिसकी प्राण प्रतिष्ठा 18 वर्ष की गई थी।
कुशावर्तेश्वर महादेव :
नर्मदा तट जिलहरीघाट पर कुशावर्तेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है। इसके निर्माण का वास्तविक काल की जानकारी तो किसी के पास नहीं है, लेकिन मंदिर के बारे में बताया जाता है कि इस मंदिर में सेवा 565 वर्षों से की जा रही है। यह मंदिर जबलपुर में नर्मदा नदी के उत्तर तट पर स्थित सभी प्राचीन मंदिरों से भी प्राचीन हैं। यहां सावन में हर साल बड़ी संख्या में लोग भोले का अभिषेक करने के लिए पहुंचते हैं।
केदारेश्वर महादेव गुफा :
सावन मास में शिवालयों में प्रतिदिन सुबह से ही ॐ नम: शिवाय की गूंज सुनाई देती है। सोमवार को तो यह गूंज सुबह से रात तक श्रद्धालुओं के कानों में भक्ति रस घोलती है। शिव आराधना के लिए मेडिकल कालेज के समीप भगवान बद्री नारायण शिखर स्थित केदारेश्वर महादेव गुफा का शहर में विशिष्ट स्थान है। पूरे सावन मास में यहां विराजमान स्वयंभू केदारेश्वर महादेव का श्रृंगार और महाभिषेक किया जाता है तथा पूरे दिन शिवभक्तों के आने के सिलसिला जारी रहता है।